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हरदा बोले - उत्तराखण्ड के जंगल को नुकसान पहुंचा रहे है चीड़ के पौधे, सरकार को दिए ये सुझाव

उत्तर नारी डेस्क 

पूर्व सीएम व कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव हरीश रावत सोशल मीडिया में बेहद एक्टिव रहने के साथ-साथ आये दिन किसी न किसी मुद्दे पर चर्चा भी करते रहते है। चाहे वो सत्ता पक्ष को आयना दिखाना हो या सरकार पर तंज कसना वह किसी भी मुद्दे में बोलने पर हिचकिचाते नहीं। परन्तु इस बार कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हरीश रावत ने चीड़ व जंगल के बहाने सरकार को सुझाव देने के साथ निर्णय लेने के लिए साहस दिखाने की बात भी कही।

हरीश रावत ने फेसबुक पर पोस्ट लिखा कि चीड़ के वनों का बहुुत प्रसार उत्तराखण्ड की इकोलाॅजी और फाॅरेस्ट की आन्तरिक केमिस्ट्री को गड़बड़ा/नुकसान पहुंचा रहा है। मैं कई पर्यावरणविदों के काॅमेन्ट भी पड़ता व सुनता था, वो भी चीड़ के बजाय चौड़ी पत्ती के वृक्षों को प्रोत्साहन देने की बात करते हैं या क्या करते थे। मुख्यमंत्री बनने के बाद बतौर सीएम मैंने चीड़ को लेकर के 3 निर्णय लिये।

1. पहला निर्णय तो यह लिया कि चीड़ की पत्तियां बटोर करके जो भी महिलाएं लाती हैं उनको मनरेगा वर्कर माना जायेगा क्योंकि वो एग्रीकल्चर एक्टिविटी है और वो अपनी खेती के लिये बटोर करके ला रहे हैं और इकोलाॅजी को बचा भी रहे हैं।

2-दूसरा निर्णय लिया कि अब चीड़ का कोई प्लांटेशन नहीं लगाया जाय, फाॅरेस्ट विभाग या किसी भी प्राइवेट नर्सरीज में भी चीड़ की पौंध तैयार नहीं की जायेगी, न उसका प्लांटेशन किया जायेगा।

3. तीसरा निर्णय मैंने लिया कि हम प्रत्येक रेंज में कुछ हिस्से को और विशेष तौर पर मध्य वर्तीय हिस्से को या मध्य वर्तीय से लगे हुये हिस्से को एक वेदरवर्किंगप्लान के तहत चीड़ मुक्त करेंगे और वहां जितने हिस्से को हम चीड़ मुक्त करते जायेंगे उसमें चौड़ी पत्ती वाले वृक्ष और विशेष तौर पर जो फलदार वृक्ष हैं या पुष्प वाले वृक्ष हैं, उनको लगाएंगे ताकि वन्यजीवों को खाना मिल सके और साथ-2 चौड़ी पत्ती के वृक्ष इकोलाॅजी को भी रिजर्व कर सकें और जो फाॅरेस्ट फायर निरन्तर बढ़ रही है, जब जंगलों में नमी आयेगी तो वो फाॅरेस्टफायर एक सेल्फ कंट्रोल सिस्टम 70-80 वर्ष पहले हमारे जंगलों में था, मैं उसको वापस लाना चाहता था।

जब यह प्रस्ताव भारत सरकार के पास भेजा तो उसमें हमको नेचुरूली भारत सरकार का निर्णय था कि 1000 फिट से ऊपर कोई हरा वृक्ष नहीं काटा जायेगा और काटा जायेगा तो उसकी अनुमति भारत सरकार से ली जायेगी। इन निर्णयों का प्रस्ताव बनाकर केंद्र सरकार को भेजा भी गया। लेकिन तब कुछ पर्यावरण शास्त्री आलोचना पर उतर आए।

यहां तक की लन्दन और अमेरिका से मेरे कुछ दोस्तों ने मुझको कहा कि यहां के डेलीज समाचार पत्रों में यह छपा है कि वहां की सरकार ऐसा निर्णय ले रही है और कुछ आलोचनात्मक तरीके से छपा है। मैं खुद पर्यावरण के प्रजर्वेशन, वनों को बचाने की लड़ाई आदि में सम्मिलित रहा और मैंने वन विभाग के पुरानेइकोसिस्टम को वापस लाने के लिये अपने कार्यकाल में बहुत सारे निर्णय भी लिये, लेकिन मैं इतना समझ गया कि मेरे वो सारे अच्छे निर्णय, मेरे इस निर्णय के कारण न केवल ओझल हो जायेंगे बल्कि यही निर्णय, क्योंकि इसके लिये बहुत सारे आलोचक मिल जायेंगे वो ही सामने दिखाई देगा तो अन्नतोगत्ता मैंने, चीफकंजरवेटर फॉरेस्ट और तत्कालिक वनसचिव से कहा कि आप इस इरादे को सुला दें अर्थात इस पर कोई चहल-पहल करने की जरूरत नहीं है और भारत सरकार को भी कह दिया जाय कि ठीक है, इस पर हम फाॅलो नहीं कर रहे हैं।

आज मैं इन बातों का उल्लेख इसलिये कर रहा हॅू, हो सकता है उत्तराखण्ड में सरकार जब पूरे वन स्थिति को रिव्यू करे कभी और उस पर चर्चा हो तो हमारे ये निर्णय जिनको लागू करने की हिम्मत मैं नहीं दिखा पाया, कोई साहसी व्यक्ति आये वो हिम्मत दिखा सकता है या कुछ संसोधन के साथ इन निर्णयों को लागू किया जा सकता है जो दूसरे लोगों सहित सबको स्वीकार्य हो। 

     

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