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उत्तराखण्ड के सामने खड़ी हुई एक गंभीर वैधानिक/संवैधानिक उलझन, राष्ट्रपति शासन या तीरथ सिंह रावत से इस्तीफा

उत्तर नारी डेस्क 

उत्तराखण्ड में एक बार फिर से सियासी हलचल तेज हो गई है। एक बार फिर से उत्तराखण्ड में नेतृत्व परिवर्तन की अटकले चलने लगी है। चर्चा यह भी है कि दो-तीन दिन में केंद्रीय नेतृत्व जल्द ही कोई बड़ा फैसला ले सकता है। इस फैसले को लेकर सियासी सुगबुगाहट भी तेज हो गयी हैं। यह बड़ा फैसला क्या है, इस पर कोई भी खुलकर नहीं बोल रहा है। तो वहीं इस बीच अचानक मुख्यमंत्री के दिल्ली दौरे के बाद से चर्चाएं और भी तेज हो गई हैं। 

वहीं पूर्व सीएम हरीश रावत ने भी तंज कस्ते हुए ट्वीट कर लिखा है कि उत्तराखण्ड के सम्मुख एक गंभीर वैधानिक/संवैधानिक उलझन खड़ी हो गई है और भाजपा की समझ में यह नहीं आ रहा है कि वो किस ऑप्शन का चयन करें! राष्ट्रपति शासन या मुख्यमंत्री जी से इस्तीफा दिलवाकर या उनको फिर से मुख्यमंत्री बनाना और उसके विषय में भाजपा के नेतृत्व को शंका है कि कोर्ट शट डाउन कर सकता है कि क्योंकि कानून की भावना को निरस्त करने के लिए आप कोई कदम नहीं उठा सकते हैं, इसको कानून की मूल भावना को निरस्त करना माना जाएगा और तीसरा उपाय यह है कि आप विधानसभा भंग करें, लेकिन उसमें भी कोर्ट सामने आएगा। क्योंकि आप अपनी राजनैतिक उलझन से बचने के लिए पूरे राज्य को उलझन में नहीं डाल सकते। मुख्यमंत्री जी लगातार दिल्ली में हैं, कुछ मौसमी तोते भी दिल्ली में आ गये हैं और राज्य के अंदर शासन व्यवस्था बिल्कुल ठप पड़ी हुई है। राज्य के लोगों की समझ में यह नहीं आ रहा है कि डबल इंजन की कैसी परिभाषा है और कैसी माया है?

बता दें कि सीएम तीरथ को सितंबर से पहले उपचुनाव लड़ना है, लेकिन कोरोना संक्रमण के कारण निर्वाचन आयोग द्वारा उप चुनावों पर रोक से असमंजस की स्थिति बनी हुई है। वहीं कांग्रेस पार्टी का दावा है कि अब मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत चुनाव नहीं लड़ सकते हैं। कांग्रेस दलील दे रही है कि लोकप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 151(क) के तहत जिस प्रदेश में आम चुनाव होने में 1 साल से कम का समय शेष हो, वहां पर उपचुनाव नहीं हो सकता। जबकि प्रदेश में मार्च 2022 में विधानसभा चुनाव है। 

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