उत्तर नारी डेस्क
उत्तराखण्ड के नैनीताल जिले में असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ हिमांशु पांडे लोहनी को स्पाइडर पर आधारित शोध पर यंग साइंटिस्ट अवार्ड मिला है। जानकारी अनुसार, सातवें इंटरनेशनल कांफ्रेंस इन हाइ्ब्रिड मोड आन ग्लोबल रिसर्च इनिशिएटिव फोर सस्टेनेबल एग्रीकल्चर एंड एलाइइ साइंस पर झारखंड की राजधानी रांची में इंटरनेशनल कांफ्रेंस का आयोजन किया गया था। जहां डीएसबी परिसर जंतु विज्ञान विभाग की असिस्टेंट प्रोफेसर डा हिमांशु पाण्डे लोहनी ने स्पाइडर पर आधारित अपना शोध पत्र प्रस्तुत किया। इस शोध के लिए उन्हें यंग साइंटिस्ट पुरस्कार प्रदान किया गया। इस दौरान कुमाऊं विवि की जंतु विज्ञान विभाग की असिस्टेंट प्रोफेसर डा हिमांशु पांडे लोहनी के शोध में बताया गया है कि मकड़ी बायो कंट्रोल एजेंट है। यह एग्रो ईको सिस्टम के लिए बेहद लाभकारी है।
मकड़ी के व्यवहारा का भी अध्ययन किया गया तो पता चला कि मकड़ी पेड़-पौधों व फसलों को नुकसान पहुंचाने वाली बटरफ्लाई व कीड़े मकोड़ों को आहार बनाती है। यह फसलों के लिए प्राकृतिक कीटनाशक का काम करती है। यह भी पाया गया कि बड़ी मकड़ी मच्छर को भी आहार बना लेती है। शोध के दौरान यह देखा गया। मकड़ी से फलपट्टी को सीधा नुकसान तो नहीं होता है अलबत्ता यदि किन्हीं वजहों से मकड़ी ने लार्वा छोड़ दिया तो उससे नुकसान हो सकता है। कहा कि मकड़ी के जाल काटने या तोड़ने पर जहर छोड़ती है। यह व्यवहार उसका सामान्य है। मकड़ी अपने व्यवहार में परिवर्तन करती रहती है, लिहाजा इसका प्राकृतिक वास रहने दिया जाना चाहिए। मकड़ी के प्रजातियों के संरक्षण की भी जरूरत बताई गई है।
बता दें डॉ लोहनी ने अपने शोध में बताया कि दुनियां में स्पाइडर की करीब पांच लाख प्रजातियां पाई जाती हैं। इसमें करीब 49 हजार प्रजातियां 2021 के कैटलॉग में शामिल हैं। भारत में सेल्टी साइडी परिवार की 192 प्रजातियां तथा थोमी साइडी परिवार की मकड़ी पाई जाती है। डा लोहनी ने टीम के साथ पहले चरण में नैनीताल के खुर्पाताल, मंगोली से कालाढूंगी की बेल्ट तक स्पाइडर पर शोध कार्य किया है जबकि दूसरे चरण में मुक्तेश्वर बेल्ट में शोध होना है। पहली बार मकड़ी पर जिले में कुमाऊं विवि की ओर से शोध किया जा रहा है। शोध के अनुसार मार्च से लेकर सितंबर-अक्टूबर तक मकड़ी की प्रजातियां मिलती रही हैं।
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