उत्तर नारी डेस्क
देवभूमि उत्तराखण्ड दुनियाभर में अपनी अलग पहचान बना चुका है और यहां की सुंदरता और मनमोहक कथाएं लोगो को यहां के तीर्थस्थानों की ओर खींच लाता है और इन्हीं तीर्थस्थानों से जुड़ी देवताओं से संबंधित अनेक कथाएं दुनियाभर में प्रचलित हैं। इन्हीं में से एक देहरादून जिले के जौनसार-बावर में यमुना नदी के तट पर बसा लाखामंडल गांव भी है। लाखामंडल की प्राचीनता को कौरव-पांडवों से जोड़कर देखा जाता है। यहां एक भव्य शिव मंदिर है। जिसका निर्माण 12-13 वीं सदी में हुआ है। यह भी मान्यता है कि द्वापर युग में दुर्योधन ने पांचों पांडवों और उनकी माता कुंती को जीवित जलाने के लिए यहीं लाक्षागृह का निर्माण किया था। शिव मंदिर के अंदर एक चट्टान पर पैरों के निशान मौजूद हैं, जिन्हें माता पार्वती के पैरों के निशान माना जाता है। लाखामंडल आज भी सैकड़ों शिवलिंग व दुर्लभ मूर्तियां मौजूद है। मंदिर के अंदर भगवान कार्तिकेय, भगवान गणेश, भगवान विष्णु और हनुमान जी की मूर्तियां भी स्थापित हैं।
एएसआई को खुदाई के दौरान यहां मिले सैकड़ों शिवलिंग व दुर्लभ मूर्तियां इसकी तस्दीक करती हैं। लाखामंडल के पुरावशेषों को सबसे पहले वर्ष 1814-15 में जेम्स बेली फ्रेजर सामने लाए थे। अपनी पुस्तक 'द हिमालया माउंटेंस' में उन्होंने इस स्थल पर शिव मंदिर के अलावा पांच पांडवों के मंदिर, महर्षि व्यास व परशुराम का मंदिर, प्राचीन केदार मंदिर और कुछ मूर्तियों का उल्लेख किया है। समुद्रतल से 1372 मीटर की ऊंचाई पर स्थित लाखामंडल गांव देहरादून से 128 किमी, चकराता से 60 किमी और पहाड़ों की रानी मसूरी से 75 किमी की दूरी पर स्थित है। लाखामंडल गांव ऐतिहासिक और पौराणिक दोनों ही दृष्टि से महत्वपूर्ण है। माना जाता है कि कौरवों ने पांडवों व उनकी माता कुंती को जीवित जलाने के लिए ही यहां लाक्षागृह (लाख का घर) का निर्माण कराया था। लाखामंडल में वह गुफा आज भी मौजूद है, जिससे होकर पांडव सकुशल बाहर निकल आए थे। इसके बाद पांडवों ने 'चक्रनगरी' में एक माह बिताया, जिसे आज चकराता के नाम से जाना जाता हैं।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने लाखामंडल को ऐतिहासिक धरोहर घोषित किया हुआ है। एएसआई की ओर से की गई वैज्ञानिक सफाई में यहां बड़ी संख्या में वास्तु संरचनाओं के खंड प्राप्त हुए। इनमें पांचवीं-छठी सदी की सपाट छत के अवशेष भी मिले। यहां की शिव तांडव मूर्तियां देश के इस उत्तरी भाग को दक्षिण से जोड़ती हैं। लाक्षेश्वर मंदिर परिसर में स्थित एक शिवलिंग ग्रेफाइट का बना हुआ है और जलाभिषेक करने पर यह चमकने लगता है। इस दौरान इसमें सामने खड़े व्यक्ति की छवि साफ नजर आती है। मान्यता है कि जब सृष्टि के निर्माण हुआ था तब से यह शिवलिंग लाखामंडल में स्थापित है। लाखामंडल में मिले शिवलिंग अलग-अलग रंग के हैं। यह हजारों साल पुराने हैं, लेकिन जमीन के अंदर दबे होने के बाद भी यह पूरी तरह सुरक्षित हैं। एक बार आप भी लाखामंडल के दर्शन कर यहां के प्राचीन अवशेषों को अवश्य देखें।
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