उत्तर नारी डेस्क
69वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों की घोषणा हो चुकी है। इस बार अवार्ड को फीचर, नॉन फीचर, और बेस्ट राइटिंग इन सिनेमा तीन केटेगरी में बाटा गया है। जिसमें उत्तराखण्ड की बेटी सृष्टि लखेरा ने बेस्ट नॉन फीचर फिल्म ‘एक था गांव’ में राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार जीता है। गढ़वाली और हिंदी भाषा में बनी इस फिल्म में घोस्ट विलेज (पलायन से खाली हो चुके गांव) की कहानी है। उत्तराखण्ड में पलायन की कितनी बड़ी समस्या है यह तो हम सभी जानते है। इसी पलायन के दर्द को फिल्म के जरिए सृष्टि लखेड़ा ने बखूबी दर्शाया है।
बता दें, कि उत्तराखण्ड के पहाड़ों के दर्द को बयां करती फिल्म "एक था गांव" को बेस्ट नॉन फीचर फिल्म की श्रेणी के लिए चयन किया गया है। जिसकी निर्माता पहाड़ की बेटी है। इससे पहले भी 'एक था गांव' फिल्म मामी फिल्म महोत्सव में भी अपनी जगह बना चुकी है। अब फिल्म को राष्ट्रीय स्तर पर भी पहचान मिली है। राज्य के लिए यह बेहद गर्व की बात है कि उत्तराखण्ड के पलायन के ऊपर बनाई गई शॉर्ट फिल्म ‘एक था गांव’ को 69वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार में बेस्ट नॉन फीचर फिल्म के लिए नवाजा गया है।
बताते चलें, सृष्टि लखेड़ा उत्तराखण्ड के टिहरी जिले के कीर्तिनगर ब्लॉक के सेमला गांव निवासी है और एक फिल्म निर्माता हैं। सृष्टि ने ज्यादातर डॉक्यूमेंट्री फिल्मों का निर्माण किया है। सृष्टि का परिवार ऋषिकेश में रहता है। सृष्टि के पिता बाल रोग विशेषज्ञ है। डॉ. केएन लखेरा ने बताया, सृष्टि करीब 13 साल से फिल्म लाइन के क्षेत्र में कार्य कर रही हैं। उत्तराखण्ड में पलायन की पीड़ा को देखते हुए सृष्टि ने यह फिल्म बनाई है। इस फिल्म की अवधि कुल 1 घंटे की है।
जैसा कि फिल्म के नाम से ही पता लग रहा है फिल्म उत्तराखण्ड की सबसे बड़ी समस्या, पलायन को दर्शा रही है। वह गांव जो कभी लोगों से आबाद हुआ करता था, अब पूरी तरह से सूना पड़ गया है। इस फिल्म में पहाड़ों की मौजूदा हकीकत और घोस्ट विलेज की कहानियों को दिखाया गया है। साथ ही इस फिल्म में पयायन और पहाड़ से जुड़े दूसरे मुद्दों को भी दिखाया गया है।
पलायन के मौजूदा हालातों को बयां करती फिल्म "एक था गांव"
एक था गांव फिल्म एक बुजुर्ग और एक किशोर पर आधारित फिल्म है। इसमें पहाड़ की कठिनाइियों से साथ ही मौजूदा हालातों को बयां किया गया है। इसमें 80 वर्षीय लीला देवी और 19 वर्षीय गोलू मुख्य भूमिका में हैं। बुजुर्ग लीला गांव में अकेली रहती है। इसकी बेटी की शादी हो चुकी है, जो देहरादून जाने की जिद करती है।
लीला इसके लिए तैयार नहीं होती। उसे अपने गांव से प्यार है। जिसके कारण वह यहां रहना चाहती है। वहीं, इस फिल्म का दूसरा किरदार गोलू पहाड़ों से निकलकर अपना जीवन जीना चाहती है। उसे पहाड़ों में कोई भविष्य नजर नहीं आता। जिसके कारण वह मैदानों की ओर जाना चाहती है। फिल्म में आखिर में लीला मजबूरी में देहरादून चली आती है। गोलू भी पढ़ाई के लिए मैदानों की ओर पहुंच जाती है, जिसके कारण गांव सूना हो जाता है।
इस फिल्म के माध्यम से दिखाया गया कैसे कोई या तो मजबूरी में या फिर जरूरत के लिए पहाड़ से निकलता है। जिसके कारण पहाड़ दिनों दिन खाली हो रहे हैं।
छह जिलों में भारी बारिश का येलो अलर्ट जारी
उत्तराखण्ड में आज शुक्रवार को भी भारी बारिश की आशंका है। मौसम विज्ञान केंद्र की ओर से देहरादून, पौड़ी, नैनीताल, चम्पावत, बागेश्वर और ऊधमसिंह नगर जिले के कई इलाकों में 25 अगस्त को भारी बारिश का येलो अलर्ट जारी किया है। जबकि, प्रदेश के अन्य जिलों में भी गर्जना और बिजली चमकने के साथ बारिश की संभावना है। 27 अगस्त के बाद सभी जिलों में बारिश से राहत के आसार हैं।
बता दें, मौसम विज्ञान केंद्र देहरादून के निदेशक बिक्रम सिंह का कहना है कि मानसून सीजन के दौरान अभी तक सामान्य तौर पर होने वाली 904.20 मिमी बारिश के सापेक्ष 1019 मिमी बारिश रिकाॅर्ड की गई है। इस हिसाब से एक जून से 23 अगस्त तक 13 फीसदी अधिक बारिश हुई है। चूंकि सामान्य से 19 फीसदी अधिक तक बारिश को सामान्य की श्रेणी में लिया जाता है। इसलिए इसे सामान्य बारिश ही माना जाएगा।