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हरिद्वार : उत्तराखण्ड संस्कृत अकादमी ने आयोजित किया संस्कृत व्याख्यान माला

उत्तर नारी डेस्क


उत्तराखंड संस्कृत अकादमी हरिद्वार द्वारा संस्कृत भाषा के प्रचार- प्रसार एवं संवर्धन के लिए प्रतिवर्ष ऑनलाइन माध्यम से संस्कृत व्याख्यान माला का आयोजन किया जाता है। इसी क्रम में इस वर्ष भी महर्षिवाल्मीकिजयंती मास महोत्सव के अंतर्गत 28 अक्टूबर से 27 नवंबर तक उत्तराखंड के समस्त 13 जनपदों में ऑनलाइन संस्कृत व्याख्यानमाला का आयोजन किया गया। 27 नवंबर को कार्यक्रम के समापन दिवस के अवसर पर रुद्रप्रयाग जनपद से राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय अगस्त्यमुनि द्वारा 'वाल्मीकि रामायण में अनुशासन ' विषय पर ऑनलाइन संस्कृत व्याख्यान - माला का आयोजन किया गया, जिसमें राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय अगस्त्यमुनि की संस्कृत-विभाग की सहायक आचार्य डॉ मनीषा सिंह ने जनपद - संयोजक  की भूमिका का निर्वहन किया। व्याख्यान माला का शुभारंभ जनपद संयोजक डॉ. मनीषा सिंह के द्वारा महाकवि कालिदास द्वारा रचित रघुवंश महाकाव्य के मंगलाचरण "वागर्थाविव  संपृक्तौ"  से किया गया। तत्पश्चात राजकीय महाविद्यालय अगस्त्यमुनि के पूर्व छात्र उद्धव भट्ट द्वारा वैदिक मंगलाचरण के रूप में शिवसंकल्पसूक्त का गायन किया गया। इसके पश्चात डॉ. हरिश्चंद्र गुरुरानी, शोध - अधिकारी  उत्तराखंड संस्कृत अकादमी हरिद्वार द्वारा अकादमिक प्रास्ताविक उद्बोधन प्रदान किया गया। साथ ही, उत्तराखंड संस्कृत अकादमी हरिद्वार के सचिव श्री एस.पी.खाली द्वारा व्याख्यान - माला में जुड़े सभी महानुभावों का स्वागत करते हुए अपना वक्तव्य प्रदान किया गया।

व्याख्यान माला में सहवक्ता के रूप में कालिदास सम्मान से अलंकृत डॉ. आशुतोष गुप्त,उपाचार्य हेमवती नंदन बहुगुणा केंद्रीय विश्वविद्यालय श्रीनगर गढ़वाल द्वारा व्याख्यान माला के विषय 'वाल्मीकि रामायण में अनुशासन' पर चर्चा की गई।डॉ.आशुतोष गुप्त ने कहा कि रामायण ही अनुशासन है तथा वाल्मीकि रामायण संस्कृत साहित्य की अनूठी धरोहर है।

इस अवसर पर मुख्य वक्ता के रूप में राष्ट्रपति पुरस्कार से अलंकृत प्रो. शिव शंकर मिश्र आचार्य एवं विभागाध्यक्ष शोध विभाग, श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय नई दिल्ली ने व्याख्यान माला के विषय पर विस्तृत चर्चा की। प्रो.शिव शंकर मिश्र ने रामायण में राम की ही नहीं अपितु दशरथ,लक्ष्मण,भरत, शत्रुघ्न  अहिल्या आदि सभी पात्रों के जीवन चरित का संदर्भ देते हुए अपना ओजस्वी व्याख्यान प्रस्तुत किया।


विशिष्ट अतिथि के रूप में प्रो. पी. एस.जगवाण, प्राचार्य राजकीय महाविद्यालय गुप्तकाशी ने अपने उद्बोधन में वाल्मीकि रामायण में स्त्री पात्रों के चारित्रिक अनुशासन पर सभी का ध्यान आकर्षित करते हुए चर्चा की।

 मुख्य अतिथि के रूप में राष्ट्रीय संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से अलंकृत प्रो.दाता राम पुरोहित, पूर्व विभागाध्यक्ष अंग्रेजी एवं पूर्व निदेशक लोक प्रदर्शन एवं कला केंद्र विभाग हेमवती नंदन बहुगुणा केंद्रीय विश्वविद्यालय श्रीनगर गढ़वाल ने व्याख्यान माला के विषय पर विस्तृत चर्चा करते हुए अपने उद्बोधन में रामायण के सभी प्रचलित प्रकारों का वर्णन किया।इसके साथ ही उन्होंने पूरे भारतवर्ष में रामलीला के मंचन पर विस्तार पूर्वक चर्चा की तथा रामायण में बाह्य एवं आंतरिक दोनों प्रकार के अनुशासन पर अपना सूक्ष्म एवं गहन वक्तव्य प्रदान किया। मुख्य वक्ता ने अपने उद्बोधन में वाल्मीकि रामायण को सनातन धर्म का महत्वपूर्ण ग्रंथ बताया।

 इस अवसर पर कार्यक्रम के अध्यक्ष डॉ.सीता राम नैथानी,प्राचार्य राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय अगस्त्यमुनि ने अपने उद्बोधन में रामायण की महत्ता पर प्रकाश डाला।

अंत में जनपद सहसंयोजक डॉ. नीतू बलूनी सहायक आचार्य राजकीय महाविद्यालय देहरादून शहर द्वारा कार्यक्रम में उपस्थित समस्त अतिथियों, विषय - विशेषज्ञों तथा छात्रों का धन्यवाद ज्ञापन किया।

कार्यक्रम का संचालन जिला रुद्रप्रयाग की संयोजक डॉ.मनीषा सिंह सहायक आचार्य संस्कृत राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय अगस्त्यमुनि द्वारा किया गया।

इस अवसर पर विभिन्न प्रदेशों के प्राध्यापक, शोधार्थी  तथा उत्तराखंड राज्य में स्थित विभिन्न महाविद्यालयों के प्राचार्यगण, प्राध्यापकगण, अधिकारीगण, शोधार्थी तथा छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे।

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