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उत्तराखण्ड : पारंपरिक कला ऐपण को सहेजने का काम कर रही पूजा मेहता

उत्तर नारी डेस्क 


उत्तराखण्ड का युवा वर्ग संस्कृति के प्रचार-‌प्रसार में जुटा हुआ है। लोकसंगीत से लेकर पहाड़ की संस्कृति तक उत्तराखण्ड की हर पारपंरिक विद्या को संवारने में जुटे है। आज देवभूमि की बेटियां हर क्षेत्र में आगे है। वह सेना से लेकर खेल के मैदान तक, बॉलीवुड जगत से पहाड़ की बेटियां बखूवी कर रही है। इन्हीं नामों में से एक नाम है पूजा मेहता, जो ऐपण कला की विधा को सहेजने का काम कर रही हैं। 

बता दें, पूजा मेहता नैनीताल जिले के छोटे से गांव तवालेख (बसगांव) की रहने वाली है। वह ऐपण पर कार्य करने के साथ-साथ गाय के गोबर से निर्मित पर्यावरण-अनुकूल उत्पाद भी बनाती है, जो गौमाता के साथ-साथ पर्यावरण के लिए भी अनुकूल और लाभदायक हैं। 


पूजा गोबर, मिट्टी, प्राकृतिक गोन्द से मिलकर- दिया, मूर्तियां, राखी, घड़ी, हवन-सामग्री व कोस्टर्स भी बनाती हैं। 




गौरतलब है कि ऐपण उत्तराखण्ड के कुमाऊं क्षेत्र की एक पारंपरिक लोक कला है। कुमाऊंनी लोगों का मानना ​​है कि ऐपण कला के जरिए लोग एक दैवीय शक्ति का आह्वान करते हैं जो अच्छा भाग्य लाती है और बुराई को खत्म करती है। इस कला का उपयोग दीवारों और फर्शों पर आकर्षक रूपांकनों में किया जाता है। इसे बनाने के लिए जिसमें 'गेरू', जंगलों से इकट्ठा किया हुआ केसरिया-लाल मिट्टी का रंग और चावल का स्टार्च, जिसे स्थानीय रूप से 'बिस्वार' पेस्ट कहा जाता है, का उपयोग किया जाता है। सबसे पहले ऐपण का आधार 'गेरू' मिट्टी से तैयार किया जाता है और फिर 'बिस्वार' का इस्तेमाल करके विभिन्न डिजाइन बनाए जाते हैं।



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