उत्तर नारी डेस्क
उत्तराखण्ड को वीरों की भूमि यूं ही नहीं कहा जाता। यहां के लोकगीतों में शूरवीरों की जिस वीर गाथाओं का जिक्र मिलता है, पराक्रम के वह किस्से देश-विदेश तक फैले हैं। यह हमारे लिए गर्व की बात है कि यह देवभूमि हर साल सेना में सबसे अधिक युवाओं को भेजती है। दरअसल, उत्तराखण्डी युवाओं में देशभक्ति का जज्बा कूट-कूट कर भरा हुआ है। देश के लिए सेवा करने का जज़्बा पाले न जाने कितने ही लोग इस देवभूमि से जाते हैं और मातृभूमि की रक्षा करते हैं। आज हम आपको राज्य के एक और ऐसे ही होनहार युवा से रूबरू कराने जा रहे हैं जो भारतीय सेना में लेफ्टिनेंट बनकर मां भारती की सेवा करेंगे। हम बात कर रहे हैं श्रीनगर गढ़वाल के रहने वाले दिव्यांशु रावत की, जिसने कभी किसी कोचिंग या ट्यूशन का सहारा नहीं लिया और आज लाखों बच्चों के बीच देशभर में 78वीं रेंक हासिल करते हुए यूपीएससी द्वारा आयोजित एसएसबी की सबसे कठिनतम परीक्षा उत्तीर्ण कर ली है। दिव्यांशु ने एसएसबी की परीक्षा के सभी पैरामीटर क्लियर कर सेना की इंजिनियरिंग कोर में एंट्री पाई है। दिव्यांशु रावत अब 4 साल की ट्रेंनिग के बाद भारतीय सेना में लेफ्टिनेंट पद पर काबिज होंगे। दिव्यांशु रावत ने यह अभूतपूर्व उपलब्धि हासिल कर समूचे प्रदेश को गौरवान्वित होने का सुनहरा अवसर प्रदान किया है।
बता दें, दिव्यांशु रावत मूल रूप से रूद्रप्रयाग जिले के थाती बड़मा गांव के निवासी है। हालांकि उनका परिवार बीते काफी वर्षों से पौड़ी गढ़वाल जिले के श्रीनगर क्षेत्र में रहता है। दिव्यांशु के पिता दिलबर सिंह रावत जीजीआईसी चौकी में अध्यापक हैं और उनकी मां मंगला रावत एक कुशल गृहिणी हैं। वहीं, दिव्यांशु ने अपनी स्कूलिंग रेनबो पब्लिक स्कूल से की है और इससे पूर्व उन्होंने डीयू में एडमिशन प्राप्त करने में भी सफलता हासिल की थी, वर्तमान में वे शहीद भगत सिंह कॉलेज दिल्ली से बीए सेकेंड ईयर की पढ़ाई कर रहे हैं। उनके बड़े भाई प्रियांशु रावत सेना में जाने के लिए उनके प्रेरणाश्रोत बने। वे एनडीए के जरिए सेना में अफसर बने थे, दोनों भाई बचपन से ही सेना में भर्ती होना चाहते थे और अब दोनों सेना में अधिकारी बनकर अपने क्षेत्र का नाम रोशन कर रहे हैं। दिव्यांशु की इस उपलब्धि के बाद घर और स्कूल में खुशी का माहौल है।