उत्तर नारी डेस्क
राजशाही के समय से आयोजित होने वाला ऐतिहासिक राज मौण मेला बड़े उत्साह के साथ मनाया गया। जिसमें हजारों की संख्या में लोगों ने पहुंचकर मेले में भाग लिया और मछलियां पकड़ी। शनिवार को विशिष्ट पहचान रखने वाला राजशाही मौण मेला प्रतिवर्ष की भांति इस बार भी अगलाड़ नदी में पारंपरिक वाद्य यंत्र ढोल दमाऊ के साथ तांदी नृत्य कर मौण का तिलक लगाकर दोपहर ठीक 1 बजकर 30 मिनट पर मौण कोठ नामक तोक से अगलाड़ नदी में ड़ाला गया। मौण पाऊड़र नदी में ड़ालते ही हजारो की संख्या में पहुंचे लोग नदी में मछली पकड़ने के लिए उतरे जिसमें लोगों ने कई कुंतल मछलियां पकड़ी। जैसे जैसे नदी में मौण आगे बढ़ता वैसे वैसे लोग दौड़ते हुए नदी में मछली पकड़ते रहे लगभग 4 किलोमीटर नदी में यह दौर चलता है। इस मौण मेले में सैकड़ो गाँव सहित आसपास क्षेत्र जौनसार, बिन्हार, रवाईं, गोड़र, पालीगाड़, के ग्रामीण भी भारी उत्साह व उमंग के नदी में मछली पकड़ने को शिरकत करते है। इस बार नदी में मौण डालने की पांती लालूर पट्टी के खैराड़,मरोड़,नैनगांव, भुटगांव, मुनोग, मातली और कैंथ गांव की रही।
मौण मेले में मुख्य बात यह है कि नदी में टिमरू का पाउडर डालने से मछलियां घायल हो जाती है जिसको लोग आसानी से पकड़ लेते है। और कुछ घंटों देर बाद मछली अपनी पहले की स्थिती व हरकत में आ जाती, और जिससे कोई हानी नहीं होती है। नदी में स्थानीय संसाधन में कुण्डियाला, फटियाला, जाल, फांड़ आदि उपकरणों को प्रयोग में लाए जाने वाले सबसे अधिक मछली पकड़ ले जाते है। साथ ही इस मेले में शाहाकारी लोग भी बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते है।
बुजुर्गों के मुताबिक जौनपुर में मौण मेला मनाने की यह अनूठी परंपरा टिहरी नरेश नरेंद्र शाह ने 1866 में शुरू कराई थी। बताया जाता है कि टिहरी नरेश ने स्वयं अगलाड़ नदी में आकर मौण डाला था। जौनपुर में निरंतर 158 वर्ष पूर्व से चली आ रही इस परंपरा को बड़े धूमधाम से मनाया जाता है।