उत्तर नारी डेस्क
श्रीदेव सुमन उत्तराखण्ड विश्वविद्यालय, पण्डित ललित मोहन शर्मा परिसर ऋषिकेश में भारतीय ज्ञान परम्परा उत्कृष्टता केंद्र के तत्वाधान में गुरु-शिष्य परंपरा: भारतीय संस्कृति की धरोहर विषय पर एक दिवसीय सेमिनार आयोजित की गयी।
सेमिनार का शुभारम्भ परिसर निदेशक प्रो एम एस रावत, संकायाध्यक्ष विज्ञान प्रो जी के धींगरा, संकायाध्यक्ष कला प्रो डी सी गोस्वामी, वाणिज्य संकायाध्यक्ष प्रो कंचनलता सिन्हा, सेमिनार की संयोजक प्रो कल्पना पन्त, सहसंयोजक प्रो पूनम पाठक, आयोजक सचिव डॉ गौरव वार्ष्णेय ने दीप प्रज्जवलित कर किया। भारतीय ज्ञान परम्परा उत्कृष्टता केंद्र की निदेशक एवं सेमिनार की संयोजक प्रो कल्पना पन्त ने सभी का स्वागत करते हुए कहा कि गुरु-शिष्य परंपरा भारत की प्राचीनतम शिक्षण पद्धति है, जो ज्ञान के व्यक्तिगत और सामाजिक महत्व पर आधारित है।
इस परंपरा में गुरु एक मार्गदर्शक, शिक्षक और आदर्श होते हैं, जो शिष्य को न केवल ज्ञान प्रदान करते हैं, बल्कि उसे जीवन के हर पहलू में नैतिकता और धर्म का पालन सिखाते हैं। शिष्य, पूर्ण श्रद्धा और समर्पण के साथ अपने गुरु से ज्ञान प्राप्त करता है। प्राचीन काल में, भारत में तक्षशिला, नालंदा, और विक्रमशिला जैसे विश्वविद्यालयों के बावजूद शिक्षा का मूल केंद्र गुरुकुल ही था। गुरुकुलों में शिष्य न केवल शास्त्र और विज्ञान का अध्ययन करते थे, बल्कि जीवन के व्यावहारिक पक्षों, जैसे नैतिकता, अनुशासन, और सामाजिक जिम्मेदारियों की भी शिक्षा पाते थे।
यह परंपरा वैदिक काल से ही चली आ रही है, जिसमें ऋषि-मुनियों ने अपने आश्रमों में शिष्यों को व्यक्तिगत रूप से शिक्षा दी थी। सेमिनार के आयोजक सचिव डॉ गौरव वार्ष्णेय ने सेमिनार की रुपरेखा प्रस्तुत की।
अध्यक्षता करते हुए परिसर निदेशक प्रो एम एस रावत ने उपस्थित प्रतिभागियों को सम्बोधित करते हुए कहा कि गुरु-शिष्य परंपरा भारतीय संस्कृति की एक अनमोल धरोहर है, जो सदियों से ज्ञान के आदान-प्रदान और शिक्षा के मूल सिद्धांतों को सहेजे हुए है। गुरु भारतीय जीवन दर्शन में एक ऐसा आदर्श व्यक्तित्व है, जिसे भगवान से भी ऊंचा स्थान दिया गया है। 'गुरुर्ब्रह्मा, गुरुर्विष्णु, गुरुर्देवो महेश्वरः' श्लोक में यह स्पष्ट किया गया है कि गुरु को त्रिमूर्ति के रूप में देखा जाता है, जो सृष्टि की रचना, पालन और संहार के तीनों रूपों का प्रतिनिधित्व करते हैं। गुरु की भूमिका केवल एक शिक्षक की नहीं होती, बल्कि वह शिष्य के जीवन का सम्पूर्ण मार्गदर्शन करता है।
प्रो रावत ने कहा कि गुरु-शिष्य परंपरा भारत की अमूल्य सांस्कृतिक धरोहर है, जो ज्ञान, नैतिकता और जीवन मूल्यों की शिक्षा देती है। हमें इस परंपरा को न केवल सहेजकर रखना है, बल्कि इसे अपने जीवन में आत्मसात भी करना है। यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम इस महान परंपरा को आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाएं, ताकि वे भी इसका लाभ उठा सकें।
सेमिनार के आमंत्रित वक्ता भूगोल विभाग के प्रो ए पी दुबे ने सर्वपल्ली राधाकृष्णन को नमन करते हुए कहा कि डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन एक महान भारतीय दार्शनिक, शिक्षक, और राजनेता थे, जिन्होंने भारतीय शिक्षा और दार्शनिक चिंतन को वैश्विक स्तर पर नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया। उनके विचार और व्यक्तित्व ने भारतीय शिक्षा और समाज पर गहरा प्रभाव डाला। उनका जीवन और योगदान एक प्रेरणादायक कहानी है, जो आज भी शिक्षा और नैतिकता के प्रति लोगों को जागरूक करता है।
द्वितीय आमंत्रित वक्ता राजनीति विज्ञान विभाग की प्रो हेमलता मिश्रा ने कहा कि भारतीय संस्कृति में गुरु और शिष्य का संबंध केवल शिक्षा देने और प्राप्त करने तक सीमित नहीं है। यह एक आत्मीय, गहरा और पवित्र संबंध है। गुरु को भारतीय संस्कृति में सर्वोच्च स्थान दिया गया है, क्योंकि वह शिष्य को न केवल अकादमिक ज्ञान देता है, बल्कि जीवन जीने की कला, नैतिकता और आध्यात्मिक मार्गदर्शन भी प्रदान करता है।
सेमिनार में उपस्थित प्रतिभागियों को विज्ञान संकायाध्यक्ष प्रो जी के धींगरा, कला संकायाध्यक्ष प्रो डी सी गोस्वामी, वाणिज्य संकायाध्यक्ष प्रो कंचनलता सिन्हा, डीन छात्र कल्याण प्रो पी के सिंह भूगोल विभाग की डॉ अरुणा सूत्रधार तथा हिन्दी विभाग के प्रो अधीर कुमार ने भी सम्बोधित किया।
सेमिनार में मनीषा रांगड़, उद्धव भट्ट, आयुष कठैत, आयुषी कपरवाण, कंचन रावत, आयुष सिंह नेगी, पियाली, पूजा रावत, अभिषेक भंडारी, साक्षी कठैत आदि छात्र छात्राओं ने भी अपने विचार प्रस्तुत किये। सेमिनार की सहसंयोजक तथा भारतीय ज्ञान परम्परा उत्कृष्टता केंद्र की उपनिदेशक प्रो पूनम पाठक ने सभी का आभार व्यक्त किया।
इतिहास विभागाध्यक्ष प्रो संगीता मिश्रा ने सेमिनार का सञ्चालन किया। इस अवसर पर प्रो वी पी श्रीवास्तव,संकाय विकास केंद्र की निदेशक प्रो अनीता तोमर, IQAC के निदेशक प्रो हितेन्द्रसिंह प्रो0 नीता तिवारी, प्रो मनोज यादव, प्रो एन के शर्मा, प्रो अधीर कुमार, प्रो प्रमोद कुकरेती, डॉ अरुणा सूत्रधार, डॉ ए बी त्रिपाठी, डॉ पारुल मिश्रा सहित परिसर के प्राध्यापक एवं छात्र छात्राएं उपस्थित रहे।