उत्तर नारी डेस्क
22 सालों से उत्तराखण्ड के लोकगीत व लोक संस्कृति की विरासत को संजोने वाली बागेश्वर जिले की लखनी गांव की रहने वाली कमला देवी की आवाज में जल्द ही लोकगीत बेडु पाको बारामासा गीत सुनने को मिलने वाला है।
आपको बता दें, कोक स्टूडियो भारत का गाना ''सोनचढ़ी'' के बाद से चर्चाओं में आईं कमला देवी के इस गीत को न सिर्फ लोगों ने पसंद किया बल्कि उत्तराखण्ड की संस्कृति को देश-दुनिया में नई पहचान मिली। अब लोक गायिका कमला देवी की आवाज से बेडु पाको बारामासा लोक गीत गूंजेगा। इस संबंध में उन्होंने कहा, बेडु पाको बारामासा... गीत हमारे प्रदेश के हर घर में होने वाले समारोह की शान है। ऐसे में वह इस गीत को आवाज देने के लिए उत्साहित हैं। इसके अलावा दर्शकों को जल्द ही नए गीत व जागर भी सुनने को मिलेंगे।
कमला देवी ने बताया, उनका बचपन गाय-भैंसों के साथ जंगल और खेत-खलिहानों के बीच बीता। छोटी उम्र में शादी हो गई तो घर, खेतीबाड़ी में ही लगी रहीं। पिता से मिली विरासत में कमला देवी न्यौली, छपेली, राजुला, मालूशाही, हुड़कीबोल आदि गीत गाती हैं। कमला देवी ने कहा, उनका सपना है कि उत्तराखण्ड के लोकगीत टीवी, रेडियो, डीजे समेत सोशल मीडिया पर गूंजें। इससे न सिर्फ उत्तराखण्डी संस्कृति का संरक्षण होगा बल्कि आने वाली पीढ़ी भी रूबरू होगी।
इसके साथ ही बताया कि, उन्हें बचपन से गाने का शौक था, लेकिन कभी मौका नहीं मिला। एक दिन प्रसिद्ध जागर गायक शिरोमणि पंत से उनकी मुलाकात हुई और उन्होंने गाने का मौका दिया। पंत ने कहा, उत्तराखण्डी लोकगीतों व संस्कृति को संरक्षित करने के लिए हम सबको मिलकर काम करना होगा। वहीं, उनके पति गोपाल राम ने कहा, कमला की आवाज ने सालों बाद उनके परिवार और गांव को नई पहचान दी है।
बताते चलें कमला देवी बागेश्वर जिले के गरुड़ तहसील स्थित लखनी गांव की रहने वाली हैं। वे कुमाऊँ के लोक विधाओं की गायिका हैं। कमला देवी उत्तराखण्ड की सांस्कृतिक धरोहर राजुला मालूशाही, जागर, हुड़की बौल, न्यौली, झोड़ा-चांचरी, शकुन आंखर जैसी कई विधाओं को संजोये हुए हैं।