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लिव इन में हुए 3 बच्चे, भरण-पोषण हुआ मुश्किल तो प्रेमी ने कर लिया ब्रेकअप

उत्तर नारी डेस्क 

आज कल लिव इन रिलेशनशिप का ट्रेंड कई शहरों में आम हो गया है। बिना शादी के साथ रहते हुए कई प्रेमी जोड़े बच्चों को जन्म तक दे देते हैं। मगर कुछ समय बाद उनका रिश्ता कमजोर होने लगता है और ब्रेकअप होने तक की नौबत आ जाती है। ऐसा ही कुछ मामला प्रदेश की राजधानी देहरादून में देखने को मिला। जहां एक महिला लिव इन रिलेशनशिप में ऐसा रम गई कि एक, दो नहीं बल्कि 3 बच्चों को जन्म दे दिया। भूल गई कि जिस रिश्ते को वह गृहस्थी समझ बैठी, उसकी कानूनी या सामाजिक मान्यता नहीं। तीन-तीन बच्चों का भरण-पोषण मुश्किल होने पर प्रेमी ने किनारा कर लिया और महिला को अकेला छोड़ दिया। अब वह महिला राज्य महिला आयोग की शरण में है


क्या है पूरा मामला?

खबरों की मानें तो महिला ने अपने प्रेमी के साथ कई साल लिव-इन रिलेशनशिप में बिताए। इस दौरान उन्होंने तीन बच्चों को जन्म दिया और यह सोचकर कि उनका रिश्ता किसी शादीशुदा जीवन से कम नहीं, अपनी पूरी जिंदगी उसी परिवार के रूप में बसा ली। लेकिन जब परिवार बढ़ा और आर्थिक जिम्मेदारियां बढ़ीं, तो प्रेमी ने धीरे-धीरे दूरी बना ली और महिला को अकेला छोड़ दिया। अब महिला राज्य महिला आयोग की शरण में पहुंची है, जहां उसके लिए कानूनी सहायता तलाशी जा रही है। 

महिला आयोग ने करवाई सुलह

अब तीन बच्चों की मां के लिए जीवनयापन मुश्किल हो गया है। परेशान होकर उसने राज्य महिला आयोग से मदद की गुहार लगाई। महिला आयोग में शिकायत दर्ज करवाते हुए महिला ने खुद को पत्नी बताया और कहा कि उसके पति ने उसे छोड़ दिया है। हालांकि मामले की जांच में पता चला कि दोनों की शादी नहीं हुई थी और वो लिव इन रिलेशनशिप में रहते थे। शिकायत मिलने के बाद महिला आयोग ने आरोपी प्रेमी को तलब किया और मामले की गंभीरता को देखते हुए उसे समझाने का प्रयास किया। आयोग के कानूनी परामर्शदाताओं ने उसे बताया कि तीन बच्चों की जिम्मेदारी से वह यूं नहीं बच सकता। फिलहाल प्रेमी ने बच्चों की देखभाल का खर्च उठाने पर सहमति जताई है, लेकिन महिला की स्थिति अभी भी पूरी तरह से सुरक्षित नहीं है। 

राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष कुसुम कंडवाल ने इस मामले को समाज के बदलते स्वरूप का एक महत्वपूर्ण उदाहरण बताया। उन्होंने कहा कि, यह उन लोगों की आंखें खोलने वाला मामला है, जो समान नागरिक संहिता (यूसीसी) में लिव-इन रिलेशनशिप के पंजीकरण की अनिवार्यता का विरोध कर रहे हैं। वहीं, उन्होंने आगे कहा कि, जिस महिला ने बिना शादी किए तीन बच्चों को जन्म दिया यदि वह यूसीसी के दायरे में पंजीकृत होती तो उसके प्रेमी से उसके भरण-पोषण, बच्चों का संपत्ति पर अधिकार व अन्य हक दिलाए जा सकते थे। बिन फेरे हम तेरे की तर्ज पर बने रिश्तों में कानूनी अधिकार दिलाने का सीधा आधार नहीं है। ऐसे मामलों से बचने के लिए लिव-इन रिलेशनशिप का रजिस्ट्रेशन बेहद जरूरी है। 

आयोग के पास हर महीने लिव इन रिलेशनशिप में उपजे विवाद के दो-तीन मामले सामने आ रहे हैं, जिसमें कानूनी राहत दिलाना मुश्किल होता है। इसलिए आयोग की सिफारिश पर यूसीसी में लिव इन रिलेशनशिप का पंजीकरण अनिवार्य किया गया है, ताकि ब्रेकअप होने पर महिला और संतान के कानूनी अधिकार रहें। अब किसी महिला के सामने ऐसा संकट न खड़ा हो।


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