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उत्तराखण्ड : रानीखेत में नजर आई विलुप्त हो चुकी दुर्लभ उड़न गिलहरी

 उत्तर नारी डेस्क


पर्यटन नगरी रानीखेत में दुर्लभ स्थिति में पहुंच चुकी उड़न गिलहरी इंडियन जाइंट फ्लाइंग स्क्वायरल नजर आयी है। सिर्फ रात में नजर आने वाला यह नन्हा प्राणी विलुप्ति के कगार पर है। इसे वन्य जीव संरक्षण अधिनियम की ''अनुसूची-2'' में रखा गया है। यह पहला मौका है जब रानीखेत में प्रकृति प्रेमियों को उड़न गिलहरी के दीदार हुए।

आपको बता दें, यह गिलहरी ओक, देवदार और शीशम के पेड़ों पर अपने घोंसले बनाती हैं। ये गिलहरियां भूरे रंग की होती हैं। यह गिलहरी इसलिए भी खास है क्योंकि यह पेड़ों के बीच ''ग्लाइड'' करता है लेकिन उड़ता नहीं। इसलिए इसका नाम उड़न गिलहरी है। इसका शरीर ऊन की तरह झब्बेदार होता है। इसे ऊनी उड़न गिलहरी भी कहा जाता है। यह अधिकतम एक बार में 40 फुट तक उड़ सकती हैं। 

साधारण गिलहरियों के मुकाबले इनका आकार एक फुट तक ज्यादा होता है। पूरे भारत में उड़न गिलहरियों की लगभग 12 प्रजातियां पाई जाती हैं। गर्दन से पूंछ तक फैली पतली झिल्ली इसकी सबसे खास पहचान है। इसकी मदद से यह पेड़ों के बीच लंबी दूरी तय कर लेती है। इसका शरीर 30–45 सेमी लंबा होता है और इसकी फूली हुई पूंछ 40–50 सेमी तक लंबी होती है। वजन लगभग 1.5 से दो किलोग्राम तक हो सकता है।

मुख्य रूप से फल, बीज, फूल, कोमल पत्तियां और कीट-पतंगे इसका आहार हैं। यह प्राणी साल में एक बार संतानोत्पत्ति करता है और एक बार में इसके 1 से 3 बच्चे जन्म लेते हैं। इस दुर्लभ जीव की तस्वीर प्रसिद्ध नेचर फोटोग्राफर कमल गोस्वामी ने रानीखेत में अपने कमरे से ली। विलुप्त के कगार पर खड़े इस जीव का दिखना शुभ भी माना जा रहा है।


उडऩ गिलहरी की दो प्रजातियां

उत्तराखण्ड में उडऩ गिलहरी की अब तक दो प्रजातियां ट्रेस हुई थी। इसमें रेड ज्वाइंट स्क्वैरल को इसी साल मुनस्यारी में व बुली स्क्वैरल को उत्तरकाशी में देखा जा चुका है। 2019 में उत्तराखण्ड वन अनुसंधान ने अनुसंधान सलाहकार समिति से इन गिलहरियों पर रिसर्च को लेकर अनुमति हासिल की थी। उसके बाद से संभावित ठिकानों पर इन्हें तलाशा गया था।

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