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लालढांग-चिल्लरखाल मोटर मार्ग : स्थानीय निवासियों ने उच्चतम न्यायालय में हस्तक्षेप याचिका दायर की

उत्तर नारी डेस्क 

19 दिसंबर को कोटद्वार और आसपास के क्षेत्रों के निवासियों की आवाज माननीय उच्चतम न्यायालय तक पहुँची। अनुपम कुमार बिष्ट ने अधिवक्ता रोहित डंडरियाल के माध्यम से एक हस्तक्षेप याचिका (Intervention Application) दायर कर लालढांग-चिल्लरखाल मोटर मार्ग के विकास की तत्काल आवश्यकता पर बल दिया है। याचिका में सड़क के अभाव को मौलिक संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन बताया गया है।


जीवन का अधिकारः अनुच्छेद 21 का महत्व

हस्तक्षेपकर्ता का तर्क है कि इस मोटर मार्ग का निर्माण केवल सुविधा का विषय नहीं है, बल्कि यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत 'जीवन के अधिकार' से सीधे तौर पर जुड़ा है। याचिका के मुख्य बिंदु निम्नलिखित हैं। 


स्वास्थ्य सेवा तक पहुँचः उच्च स्तरीय चिकित्सा संस्थानों तक समय पर पहुँचना जीवन के अधिकार का एक अनिवार्य हिस्सा है।

आपदा प्रबंधनः प्राकृतिक आपदाओं के दौरान त्वरित निकासी के लिए यह सड़क अत्यंत महत्वपूर्ण है।

अनिवार्य कनेक्टिविटीः स्थानीय आबादी की व्यक्तिगत स्वतंत्रता और सामाजिक-आर्थिक अस्तित्व के लिए विश्वसनीय बुनियादी ढांचा एक अभिन्न कारक है।


ऐतिहासिक संदर्भ और वर्तमान कठिनाइयाँ

यह मार्ग ऐतिहासिक कांडी रोड का हिस्सा है, जो पिछले दो शताब्दियों से अस्तित्व में है। वर्तमान में, आधुनिक मोटर मार्ग के अभाव में स्थानीय निवासियों को देहरादून या उच्च चिकित्सा केंद्रों तक पहुँचने के लिए पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश से होकर लंबा रास्ता तय करना पड़ता है।

अधिवक्ता रोहित डंडरियाल ने कहा, "स्थानीय निवासियों को काफी लंबे और कठिन रास्तों से गुजरने के लिए मजबूर होना पड़ता है, जिससे यात्रा के समय और लागत में भारी वृद्धि होती है। चिकित्सा आपात स्थिति में यह देरी जानलेवा साबित हो सकती है।"


सतत विकास और 'ग्रीन इंफ्रास्ट्रक्चर'

याचिका में इस बात पर जोर दिया गया है कि पर्यावरण संरक्षण और सार्वजनिक बुनियादी ढांचा एक साथ सह-अस्तित्व में रह सकते हैं। माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा प्रतिपादित सतत विकास (Sustainable Development) के सिद्धांत का हवाला देते हुए, आवेदक ने 'ग्रीन इंफ्रास्ट्रक्चर' के सफल मॉडलों का सुझाव दिया है।

विशेष रूप से, पेंच टाइगर रिजर्व से गुजरने वाले नेशनल हाईवे 44 के ऊंचे कॉरिडोर (Elevated Corridors) का उदाहरण दिया गया है। यह मॉडल दर्शाता है कि वैज्ञानिक उपायों जैसे-एलिवेटेड सेक्शन, साउंड बैरियर और एनिमल अंडरपास के माध्यम से वन्यजीव गलियारों को नुकसान पहुँचाए बिना कनेक्टिविटी के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है।


न्यायालय से मांग

आवेदक ने माननीय उच्चतम न्यायालय से प्रार्थना की है कि कड़े पर्यावरणीय सुरक्षा उपायों के साथ लालढांग-चिल्लरखाल मोटर मार्ग के विकास की अनुमति दी जाए। आधुनिक इंजीनियरिंग समाधानों को अपनाकर, यह परियोजना पारिस्थितिकी की रक्षा करने और नागरिकों को बुनियादी ढांचा प्रदान करने के राज्य के कर्तव्य को पूरा करने के दोहरे उद्देश्य को सिद्ध कर सकती है।

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