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परिजनों के लिये आशंकाग्रस्त और वस्तुस्थिति जानने के लिए चिंतित लोग - हरीश रावत

उत्तर नारी डेस्क 

चमोली हादसे ने जहां एक और केदारनाथ त्रासदी की याद दिला दी तो वहीं चमोली में आयी प्राकृतिक आपदा में 197 लोग लापता है और लापता लोगो में 32 लोगो के शव भी बरामद किये जा चुके है टनल में बचाव कार्य का रेस्क्यू ऑपरेशन अब भी जारी है। 

इसी बीच पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने चमोली हादसे को लेकर ट्वीट के माध्यम से उत्तराखण्ड सरकार को ऋषिगंगा में हुई आपदा के लिए चलाए जा रहे राहत कार्यो की सरहाना की है तो वहीं स्थानीय आधार पर एक कोऑर्डिनेटेड चेन ऑफ कमांड के लिए भी सुझाव दिया है। 

उन्होंने लिखा की रैणी तपोवन की त्रासदी को 72 घंटे बीत चुके हैं। अपने परिजनों के लिये आशंकाग्रस्त और वस्तुस्थिति जानने के लिए चिंतित लोग, यह जानने के लिए किससे संपर्क करें कि गाद निकालने की स्थिति क्या है? क्या आधुनिकतम उपकरण जो ऐसे में उपयोग में लाये जाने चाहिये थे, वो उपयोग में हैं?

लोग अपने परिजनों को खोजने के लिये आ रहे हैं, उनके आंसू भरे चेहरे देखकर बहुत चिंता हो रही है, उनके रहने-खाने की व्यवस्था क्या है! उनको वस्तुस्थिति की जानकारी देने के लिये क्या माध्यम बनाया है! रैणी और उसके अगल-बगल के गांवों के चिंतित लोग जिस गांव में दरार दिखाई दे रही है, कैसे अपने घरों में रहें! जिसके ऊपर अब भी एक झील बने होने की आशंका है, उस गांव के लोग कहां सोएं! उनका अस्थाई विस्थापन सही कहां हो, कौन इसको देखेगा! जो कट-ऑफ गांव हैं उन तक खाना कैसे पहुंचे, केवल हेलीकॉप्टर ड्रॉपिंग काफी नहीं है। एक स्पष्ट चेन ऑफ कमांड मुख्यमंत्री जी हैं, मगर स्थानीय आधार पर एक कोऑर्डिनेटेड चेन ऑफ कमांड दिखाई देनी चाहिये। मैं समझता हूंँ कि जो मैसेज अपने इस ट्वीट के माध्यम से देना चाह रहा हूँ, उसको गलत नहीं समझा जायेगा जो प्रयास हो रहे हैं मैं, उनकी सराहना करता हूँ। लेकिन आपदा से जूझने का सांसद और सांसद के बाद अलग-अलग समय में जो मेरा अनुभव है, मैं उसके आधार पर इस बात को बिना कहे भी नहीं रह पा रहा हूँ। 

मैंने कल बहस की कि हमने पर्यावरण को कितनी क्षति पहुंचाई और उसका क्या परिणाम है इसकी तरफ से क्लाइमेट चेंज का मुकाबला करने के लिए हम क्या प्रयास कर रहे हैं और क्या राष्ट्रीय प्रयास हो रहे हैं?  सेंट्रल हिमालयाज और उत्तराखंड का महत्व किस तरीके से समझा जा रहा है! साइंस एंड टेक्नोलॉजी का उपयोग इस क्षेत्र के अंदर विकास की परियोजनाएं और विशेष तौर पर ऐसी परियोजनाएं जो बहुत संवेदनशील क्षेत्रों में हैं, किस सीमा तक किया जा रहा है, इस पर मंथन व चर्चा होनी चाहिये।

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