उत्तर नारी डेस्क
उत्तराखण्ड के चमोली में ग्लेशियर के टूटने से बाढ़ के साथ भारी तबाही की आशंका छा गई। ग्लेशियर आमतौर पर इतने खतरनाक नहीं होते हैं। चमोली जिले की नीति घाटी में ग्लेशियर के टूटने से पास का तपोवन बैराज पूरी तरह से ध्वस्त हो गया और धौली नदी में बाढ़ की स्थिति पैदा हो गई। ग्लेशियर यानि कि हिमनद वैसे तो सिर्फ बर्फ की एक नदी होती है और खतरनाक भी नहीं होती है। लेकिन जब यह टूटने के साथ विशाल रूप लेती है तो नदियों की बाढ़ से भी ज्यादा खतरनाक हो जाती है।
ग्लेशियर वास्तव में बर्फ की विशाल मात्रा होती है जो जमीन पर धीरे धीरे बहती है। ग्लेशियर दो प्रकार के होते हैं अल्पाइन ग्लेशियर या घाटी ग्लेशियर या पहाड़ी ग्लेशियर और बर्फ की चादर। उत्तराखण्ड की घटना का संबंध पहाड़ी ग्लेशियर प्रकार से है जो ऊंचे पर्वतों के पास बनते हैं और घाटियों की ओर बहते हैं। पहाड़ी ग्लेशियर ही सबसे ज्यादा खतरनाक माने जाते हैं।
आज पृथ्वी का दस्वां हिस्सा ग्लेशियर की बर्फ से ढंका है। ग्लेशयर वहां बनते हैं जहां बर्फ हर साल जमा होती रहती है और उसके बाद पिघलने लगती है। बर्फबारी होने के बाद से बर्फ दबने लगती है और उसका घनत्व बढ़ता जाता है। वह हलके क्रस्टल से ठोस बर्फ के गोले में बदलने लगती है। नई बर्फ इसे और नीचे दबाने लगती है और कठोर घनी हो जाती है जिसे फिर्न कहते हैं। इस प्रक्रिया में ठोस बर्फ की विशाल मात्रा जमा हो जाती है। इस दबाव से वह बिना अधिक तापमान के ही पिघलने लगती है और अपने ही वजन से बहने लगती है और हिमनद का रूप लेकर घाटियों के ओर बहने लगती है।
पहाड़ी ग्लेशियर कई बार खतरनाक हो जाते हैं। वैसे तो ग्लेशियर घाटी की ओर धीरे-धीरे बहते हैं, लेकिन कुछ ग्लेशियरों में पूरी की पूरी बर्फ पहले एकदम से नहीं बहती, बल्कि हिमस्खलन का रूप ले लेती हैं जिसमें बहुत ही अधिक मात्रा में बर्फ घाटी में गिरने लगती है। जैसे चमोली की नीति घाटी में हुआ। यह विशाल मात्रा की बर्फ का एक साथ बहते हुए आना आसपास की सभी चीजों को ढक लेते हैं। इतना ही नहीं इस दौरान बर्फ के अलग अलग हिस्से अलग गति से बहते हैं। ऊपरी हिस्से में कई तरह की दरारें आ जाती हैं जो आसानी से फट जाती है। ये पर्वतारोहियों के लिए बहुत खतरनाक होती है।
वैसे तो ज्यादातर ग्लेशियर केवल कुछ सेमी प्रति दिन की रफ्तार से बहते हैं। लेकिन कुछ एक दिन में 50 मीटर की दर से बहते हैं और इस तरह ग्लेशियर खतरनाक होते है। इन्हें निगलने वाले ग्लेशियर भी कहा जाता है। ग्लेशियर का पानी के साथ मिलना इसे और ज्यादा विनाशक बना देता है। पानी का साथ मिलते ही ग्लेशियर टाइडवॉटर ग्लेशियर हो जाते हैं। ग्लेशियर का हिस्सा पानी में तैरता है जो कई मीटर ऊंचा हो सकता है और बर्फ के बड़े बड़े टुकड़े पानी में तैरने लगते हैं। इस प्रक्रिया को काल्विंग कहा जाता है जो बहुत प्रचंड रूप ले लेती है। धौली नदी की बाढ़ इसी वजह से आम नदियों के बाढ़ से ज्यादा खतरनाक होती है।
ग्लेशियर अपने आप में उतने खतरनाक नहीं होते जितने की दूसरे हालात उन्हें खतरनाक बना देते है। लेकिन फिर भी धीमे गति से बहने बावजूद ये काफी शक्तिशाली होते हैं। एक बड़े पत्थर की तरह अपने सामाने आने वाली हर चीज को कुचल देते हैं उनके आगे जंगल, पहाड़, पहाडों के किनारे कुछ भी नहीं होते। ये जमीन पर गहरी आकृतियां बना जाते हैं। ये अपने साथ बड़ी मात्रा में पानी ज्वालामुखी के होने के समय ये बहुत ही ज्यादा विनाशकारी हो जाते हैं।
ग्लेशियर कई लिहाज से उपयोगी भी होते हैं। वे शुद्ध पानी के बहुत बड़े और विश्वसनीय स्रोत होते हैं। ये बहुत ही उपजाऊ मिट्टी देने वाले माने जाते हैं इनकी जमाई रेत और छोटे पत्थरों से कंक्रीट और एस्फाल्ट बनता है। लेकिन सबसे ज्यादा उपयोगिता इनकी नदियों के स्रोत के तौर पर होती है। गंगा नदी का प्रमुख स्रोत गंगोत्री हिमनद ही है। जो भारत और बांग्लादेश में साफ पानी और बिजली के प्रमुख स्रोत है।