उत्तर नारी डेस्क
उत्तराखण्ड के बागेश्वर जिले के जाखनी गांव में एक बार फ़िर से चिपको आंदोलन शुरू हो गया है। यहाँ कमेड़ीदेवी-रंगधरा-मजगांव-चौनाला मोटर मार्ग के लिए काटे जा रहे पेड़ों को बचाने के लिए महिलाएं पेड़ों से चिपककर विरोध कर रही हैं। महिलाओं का पेड़ों से चिपककर पेड़ों को यूँ बचाने से एक बार फिर 1973 के चिपको आंदोलन की याद आ गई है। उस समय गौरा देवी के नेतृत्व में चलाया गया था।
आपको बता दें, कि चिपको आंदोलन की तर्ज पर जाखनी गांव की महिलाओं का कमेड़ीदेवी-रंगधरा-मजगांव-चौनाला मोटर मार्ग निर्माण के लिए काटे जा रहे पेड़ों को बचाने के विरोध कर रही है। सोमवार को पेड़ों को बचाने के लिए महिलाएं उनसे चिपक गई थी। बुधवार को निर्माणस्थल पर भी प्रदर्शन कर महिलाओं ने एक स्वर में कहा कि पूर्वजों के समय से संरक्षित जंगल को वह सड़क के लिए नहीं कटने देंगे। उनका आंदोलन जंगल बचाने के लिए है। लोनिवि को सड़क बनानी है तो वह दूसरी जगह से सर्वे कराए। वहीं, लोक निर्माण विभाग ने आंदोलन को देखते हुए फिलहाल निर्माण कार्य रोक दिया है। हालांकि आंदोलनकारी महिलाओं ने कहा कि जब तक लिखित आश्वासन नहीं मिलता उनका आंदोलन जारी रहेगा।
बता दें कि गांव की सरपंच कमला देवी का कहना है कि शादी के बाद से वह जंगल को संरक्षित करने का काम करती आईं हैं। उनके गांव के लोग पशुपालन और कृषि से अपनी आजीविका चलते हैं। यदि जंगल की कट जाएगा तो उनके समक्ष संकट खड़ा हो जाएगा। महिलाओं ने मौके पर पहुंचे वन दारोगा पुष्कर कार्की को ज्ञापन भी सौंपा। कहा कि पेड़ न कटने के लिखित आश्वासन पर ही वे मानेंगी। प्रदर्शन में हेमा देवी, गीता मेहता, मनुली देवी, शांति देवी, रेखा देवी, हेमा देवी, बिमला देवी, कला देवी, तुलसी देवी सहित लगभग 100 महिलाएं मौजूद थी।
प्रधान ईश्वर सिंह मेहता का कहना है कि गांव में 600 की आबादी है। 8 किलोमीटर क्षेत्रफल में फैले जंगल में बांज, बुरांश और उतीस के 10 हजार से अधिक पेड़ हैं. इसमें 90 फीसदी तो बांज के पेड़ हैं, जिन्हें ग्रामीणों ने अपने बच्चों की तरफ पाला है। जो सर्वे सड़क के लिए हुई है वह पूरी तरह से जंगल मार्ग से हुई है, जिससे वन का अधिकांश हिस्सा समाप्त हो जाएगा।