उत्तर नारी डेस्क
उत्तराखण्ड को यूं ही देवभूमि नहीं कहा जाता। यहां आदिकाल से ही नारी शक्ति की पूजा की परंपरा रही है। यहां कालीमठ, सुरकंडा देवी, चंद्रबदनी देवी, चंडी देवी और मायादेवी के अलावा भी देवियों के कई मंदिर हैं तो वहीं, नंदा देवी राजजात जैसी विश्वप्रसिद्ध सांस्कृतिक धरोहर भी। यहां तक की उत्तराखण्ड राज्य गठन में भी नारी शक्ति का अहम योगदान रहा है। वर्तमान में प्रदेश के शीर्ष पद यानी राज्यपाल पद पर भी महिला ही आसीन हैं।
उत्तराखण्ड में हमेशा से ही नारी का सम्मान होता आया है। आज भी यहां आने वाले पर्यटक यहां के विश्वप्रसिद्ध देवियों के मंदिरों में दर्शन को आते हैं।
आइये आपको बता दें, उत्तराखण्ड की ऐसी महिलाओं के बारे में जिन्होंने अपने सम्मान के साथ साथ देश-दुनिया में देवभूमि का मान भी बढ़ाया है। हर बार यही प्रदर्शित किया है नारी गौरव और सम्मान का प्रतीक हैं।
गौरा देवी - पेड़ों को बचाने के लिए गौरा देवी का योगदान पूरे विश्व में एक मिसाल के रूप में पेश किया जाता है। गौरा देवी ने पेड़ों को कटने से बचाने के लिए 1970 के दशक में चिपको आंदोलन की शुरुआत की, जिसने धीरे धीरे व्यापक रूप ले लिया। इस आंदोलन का नाम चिपको आंदोलन इसलिए पड़ा क्योंकि लोग पेड़ों को कटने से बचाने के लिए इनसे चिपक जाते थे। बता दें, कि जब उत्तराखण्ड के रैंणी गांव के जंगल के लगभग ढाई हज़ार पेड़ों को काटने की नीलामी हुई, तो गौरा देवी के नेतृत्व मे रैंणी गांव की महिला मंगल दल की 21 अन्य महिलाओं ने इस नीलामी का विरोध किया। इसके बावजूद सरकार और ठेकेदार के निर्णय में बदलाव नहीं आया। जब ठेकेदार के आदमी पेड़ काटने पहुंचे, तो गौरा देवी और उनकी 21 साथियों ने उन लोगों को समझाने की कोशिश की। जब उन्होंने पेड़ काटने की जिद की तो महिलाओं ने पेड़ों से चिपक कर उन्हें ललकारा कि पहले हमें काटो फिर इन पेड़ों को भी काट लेना। अंतत: ठेकेदार को जाना पड़ा। इस तरह गौरा देवी और उनकी 21 साथियों ने चिपको आंदोलन की शुरुआत की।
उत्तराखण्ड तीलू रौतेली - उत्तराखण्ड की एक ऐसी वीरांगना जो केवल 15 वर्ष की उम्र में रणभूमि में कूद पड़ी थी और सात साल तक जिसने अपने दुश्मन राजाओं को कड़ी चुनौती दी थी। इसी बात को ध्यान में रखते हुए उत्तराखण्ड सरकार ने तीलू देवी के नाम पर एक योजना शुरू की, जिसका नाम तीलू रौतेली पेंशन योजना है। यह योजना उन महिलाओं को समर्पित है, जो कृषि कार्य करते हुए विकलांग हो चुकी हैं।
रामी बौराणी - त्याग व समर्पण की प्रतिमूर्ति पहाड की नारी है। जो उत्तराखण्डी महिला के त्याग, समर्पण, स्त्रीत्व और सतीत्व को परिभाषित करती है।
सीता और सती सावित्री की तरह रामी भी उत्तराखण्ड में सतीत्व की आदर्श प्रतिमा है। रामी का पति विवाह के बाद परदेस चला जाता है। वह वर्षों तक नहीं लौटता। जिसकी याद में वह दिन काटती रहती है।
हंस फाउंडेशन की मंगला माता - मंगला माता उत्तराखण्ड में आम लोगों तक मदद पहुंचाने का काम कर रही हैं। सुदूर पहाड़ों में अस्पताल खोलकर, स्कूल खोलकर, रोजगार के नए मौके पैदा कर मंगला माता युवाओं को रोजगार के नए मौके दे रही हैं और पलायन पर रोक लगाने का काम कर रही हैं।
लोकगायिका कल्पना चौहान - कल्पना चौहान ने अपनी गीतों के माध्यम से पहाड़ को एक नई पहचान दी है। उन्होंने कई ऐसे गीत गाए हैं, जो आज भी उत्तराखंड के लोगों के दिल में बसे हैं।
अगर राज्य गठन की बात करें तो यह महिला शक्ति ही थी जिसने राज्य आंदोलन को गति देने का काम करते हुए बेहद अहम भूमिका निभाई। आज भी प्रदेश में तकरीबन पचास फीसद महिला वोटर हैं। ऐसे में सरकार गठन में महिलाओं की भूमिका की महत्ता को समझा जा सकता है। प्रदेश की राजनीतिक और प्रशासनिक मोर्चे पर महिला शक्ति को यथोचित प्रतिनिधित्व मिला है। प्रदेश में मौजूदा राज्यपाल बेबी रानी मौर्य यह पद संभालने वाली दूसरी महिला हैं। इससे पहले मार्गेट आल्वा राज्यपाल का पद संभाल चुकी हैं। सरकार में भी इस समय रेखा आर्य, महिला सशक्तीकरण एवं बाल विकास मंत्रालय का राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभार के रूप में जिम्मा संभाल रही हैं। अपर मुख्य सचिव राधा रतूड़ी, प्रमुख सचिव उद्योग मनीषा पंवार, सचिव सिंचाई भूपिंदर कौर औलख, सचिव मुख्यमंत्री राधिका झा, राज्य निर्वाचन अधिकारी सौजन्या ऐसे नाम हैं जो प्रशासनिक पदों को पूरी जिम्मेदारी के साथ निभा रही हैं। कई जिलों में जिलाधिकारी का पद भी महिलाएं ही संभाल रही हैं। पुलिस में भी महिलाएं इस समय कई अहम पदों पर हैं। डीआइजी एसटीएफ जैसा अहम पद आइपीएस रिद्धिम अग्रवाल के पास हैं। इससे पहले देहरादून और हरिद्वार में भी महिला अधिकारी वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक का दायित्व निभा चुकी हैं।
राज्यपाल बेबीरानी मौर्य ने सभी महिलाओं को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस दी शुभकामनाएं
राज्यपाल बेबी रानी मौर्य ने ‘अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस’ पर सभी महिलाओं को शुभकामनाएं दी। उन्होंने कहा कि अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस महिलाओं के सशक्तीकरण और उनके अधिकारों को समर्पित दिवस है। महिलाओं और बालिकाओं को कौशल विकास के माध्यम से आर्थिक रूप से स्वतंत्र बनाना बहुत जरूरी है। आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर महिलाएं वास्तव में सशक्त होती हैं तथा वे अपने जीवन के प्रत्येक निर्णय स्वयं ले सकती हैं। महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए लैंगिक समानता और आर्थिक स्वावलंबन अत्यंत आवश्यक है। उत्तराखण्ड के सर्वांगीण विकास में यहां की मातृशक्ति का अमूल्य योगदान है। राज्यपाल मौर्य के निर्देश पर राजभवन द्वारा इस वर्ष अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर जनपद देहरादून में कार्यरत महिला स्वास्थ्यकर्मियों, सफाईकर्मियों तथा फ्रंटलाइन वर्कर्स को कोरोना काल में उत्कृष्ट सेवाएं देने के लिए सम्मानित किया जाएगा।