शीतल बहुखण्डी
पहाड़ो की गोद में बसा देवभूमि उत्तराखण्ड पूरी दुनिया में अपने रीती रिवाज ऒर त्योहारों के लिए प्रसिद्ध है। वैसे तो यहाँ त्योहारों की शुरुआत बसंत ऋतु के आगमन के साथ मकर संक्रांति यानी मकराइणी से हो जाती है परन्तु बड़े त्यौहारों में होली ऒर दीपावली को ही श्रेष्ठ माना जाता है।
तो चलिए, आज हम आपको रंगों के त्यौहार, पहाडों की होली से अवगत कराते है। यूँ तो पहाडों में हर त्यौहार की एक अपनी हीं अलग पहचान है और उसे मनाने का भी अपना एक अनोखा अंदाज़ है। परन्तु होली एक ऐसा त्यौहार है कि, जब फागुन का रंग सराबोर हो उठता है तो हर कोई अपनी जाती, धर्म को भूलकर सारे मतभेदों को खत्म कर आपसी भाईचारे को बढ़ावा देते हुए इन रंगों में रंग जाता है।
बात करें पहाड़ों में मनाई जाने वाली होली की तो यहां 15 दिन पहले से ही होली मनानी शुरू हो जाती है । जहां कुछ बच्चे या युवा टोली बनाकर घर-घर गांव- गांव जाकर विभिन्न वाद्य यंत्र यानी हारमोनियम, तबले व चिमटे और गुलाल के साथ होली गायन के गीत गाते हुए सबको होली की बधाई देते हैं, जिसके बदले में उन्हें सभी घरों से भेंट स्वरूप रुपय या फ़िर चावल गुड़ इत्यादि दिए जाते है । यहीं नहीं ये सिलसिला फालगुन पूर्णिमा तक लगातार चलता रहता है। होलिका दहन तक यह युवा घर से बाहर ही रहते है और होलिका गायन करते हैं। जिस दिन होलिका का दहन होता है उसके बाद ही सभी युवा अपने अपने घरों में वापसी करते हैं। खास बात यह है कि, पहाडों की होली में रंगों के साथ हंसी ठिठोली में गोबर की होली भी खेली जाती है जिसका कोई भी बुरा नहीं मानता और इस तरह होली सम्पूर्ण होती है।
उत्तर नारी की तरफ़ से आप सभी को भी होली की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाइयां।