उत्तर नारी डेस्क
उधम सिंह नगर : प्रेम संग अटूट आस्था मिली तो ‘विद्रोही’ मीरा बनी। ममत्व और वीरता का मेल हुआ तो शमशीर धारी रानी लक्ष्मी बाई के रूप में दिखी। दृढ़ संकल्पित होकर काल के पंजे से पति को खींच लाने वाली सावित्री बन गई। मां काली बन दुष्टों का संहार किया। स्त्री की शक्तिशाली भुजाओं में अनंत कथाएं हैं। प्रकृति भी उस शक्ति से बखूबी परिचित है, तभी अपने अंदर एक और जान को जीवित रखने का सौभाग्य भी उसी को मिला। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस (आठ मार्च) के मौके पर उत्तरनारी ने अलग-अलग क्षेत्रों की ऐसी ही सशक्त महिलाओं को सलाम करेगी। प्रत्येक दिन नारी के अलग-अलग रूपों पर केंद्रित खबरें होंगी। जिसकी पहली कड़ी आज है।शिक्षा सशक्त समाज का आधार है। एक बेटी के पढ़ने पर दो परिवार शिक्षित होता है। इसी ज्ञान के उजियारे में एक सुशिक्षित और सशक्त समाज बनता है। ऐसा समाज जिसमें हर किसी के पास पढ़ने और आगे बढ़ने के अवसर हों। शिक्षा जगत से जुड़ीं कुछ महिलाओं के प्रयास इसी दिशा में हैं। इनका मूल मंत्र है..
व्यवहार परिवर्तन के जरिए सार्थक बदलाव
डॉ. गुंजन अमरोही ,उप शिक्षा अधिकारी, रुद्रपुर
समाज में बढ़ती बुराइयों को रोकने के लिए मानसिकता में बदलाव जरूरी है। सभ्य समाज के निर्माण में युवाओं की भूमिका अहम हो जाती है। कई बार विकृत मानसिकता के साथ वह राह से भटक भी जाते हैं। ऐसे में उनकी सोच को सही दिशा देने के संकल्प के साथ डॉ. गुंजन अमरोही बढ़ीं। सरकारी काम के व्यस्तता के बीच वह समय निकाल कर बच्चों के बीच जाती हैं। कभी कैंप तो कभी व्यक्तिगत बातचीत के जरिए उनके बीच सकारात्मकता का संचार करती हैं। उन्हें सीख देती हैं कि जीवन की मुश्किलों से कभी हार नहीं माननी चाहिए। समाज में व्यवहार परिवर्तन के जरिए सार्थक बदलाव का यह प्रयास अनुकरणीय है। डॉ. गुंजन अमरोही का मानना है कि जैसे शिक्षा बांटने से बढ़ती है, हुनर प्रशिक्षण से बढ़ता है, ठीक वैसे ही अच्छे विचार व सकारात्मक सोच भी संवाद से आगे बढ़ते हैं।
डॉ गुंजन अमरोही का मानना है कि विद्यार्थी किताबी ज्ञान तक ही सीमित न रहे। व्यावहारिक ज्ञान के साथ कला-संस्कृति को भी जानना चाहिए। अच्छा-बुरा समझने के साथ ही निर्णय लेने की क्षमता भी जरूरी है। तमाम रास्तों के बीच किस राह को चुनें, यह फैसला लेना भी आना चाहिए। डॉ गुंजन अमरोही ने कुछ इन्हीं प्रयासों के साथ विद्यार्थियों को काबिल बना रही हैं। वह छात्र-छात्रओं को सांस्कृतिक व खेलकूद से जुड़े कार्यक्रमों के लिए व्यक्तिगत स्तर पर प्रोत्साहित करती हैं। आर्थिक जरूरतें भी पूरा करती हैं। उनका मानना है कि निश्चित तौर पर शिक्षा से ही व्यक्ति के चरित्र का निर्माण होता है, मगर मौजूदा समय में सिर्फ यहीं तक सीमित रहने से काम नहीं चलने वाला। जीवन में आगे बढ़ना है और कुछ कर दिखाना है साथ ही कहाँ बच्चों के साथ समाज और महिलाओं को भी जागरूक करना चाहती हैं।