शीतल बहुखण्डी
लो पहाड़ियों, मनाओ इस पागल की बर्बादी का जश्न। अब आप सोच रहें होंगे कि ये पागल है कौन, किसकी बर्बादी का जश्न मनाया जा रहा है। तो आपको बता दें कि यह पागल और कोई नहीं एक पहाड़ प्रेमी है। जो स्वरोजगार की राह पर तो चला परन्तु आज ये नौबत आ गयी की स्वरोजगार के लिए खोली दूकान को बंद करना पड़ रहा है।
आपने देखा होगा की हमारे देश का प्रधानमंत्री हो या मुख्यमंत्री स्वरोजगार के लिए हर युवा वर्ग को प्रेरित करते नजर आते है। साथ ही कही ऐसे भी होते है जो रोजगार के लिए पहाड़ को छोड़कर जाते है तो वहीं कुछ पहाड़ प्रेमी ऐसे भी है जो पहाड़ में ही रहकर पहाड़ के बंजर खेतों में खुशहाली की फसल लहलहाते देखना चाहता है। वहां के गांव आबाद होते देखना चाहता है। जिसके लिए वह रोजगार शुरू करते है ये कहानी भी ऐसे हीं एक युवा की है जिसका नाम कपिल डोभाल है।
कपिल डोभाल अपने पहाड़ को प्रेम करता है। जिसके चलते उन्होंने गरीब क्रांति अभियान छेड़ा और पहाड़ में चकबंदी के लिए लड़ता रहा। साल दर साल निकलते रहे। चकबंदी तो हुई नहीं, लेकिन इस बीच उनकी शादी हो गयी। जिसके बाद उन्होंने एक साल पहले पर्वतीय उत्पादों की दुकान पहाड नाम से संचालित करनी शुरू की। जहां कोदा-झंगोरा, तुअर, गहथ, भट्ट, लाल चावल जैसे विशुद्ध उत्पादों की बिक्री शुरू हो गयी। जो की कम दामों पर बेचीं जा रही थी। परन्तु यह स्वरोजगार भी ना चल सका और एक साल में ही घाटे के करण दुकान बंद होने की कगार पर पहुंच गयी। जिसकी जानकारी उन्होंने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट लिख कर दी और कहा कि नया काम शुरू करने पर पहाड़ी खूब शोर मचाते हैं लेकिन असफल होने पर चुप्पी साध लेते हैं। इसलिए वो अपनी दुकान मई में बंद कर देंगे। साथ ही उन्होंने सभी से कुछ सुझाव भी मांगे हैं।
अब आप सोचिये की जो लोग पहाड़ प्रेमी हैं और पहाड़ की दुहाई देते है वें चुनिंदा लोग भी पहाड़ के सामानों कों किसी छोटी दुकान से ना खरीद बड़ी बड़ी दुकानों से खरीदना पसंद करते है। अगर आप ही स्वरोजगार शुरू करने वाले लोगों की मदत के लिए आगे नहीं आयँगे तो कैसे कोई भी छोटे रोजगार शुरू कर पाएगा। अगर आठ लाख की आबादी में, 200 लोग भी उनकी दुकान से सामान लेते तो आज वह दुकान भी चल जाती और उन्हें देख कही और युवा भी बाहर नौकरी के लिए ना जाकर यहीं स्वरोजगार की राह अपनाते।
हम महीने में हजार-दो हजार रुपये की दारू पी जाते हैं। एक हजार बीड़ी-सिगरेट पर खर्च कर देते हैं फालतू दिखावे की चीज़े और ब्रांडेड सामान लेना पसंद करते हैं लेकिन 500 रुपये के जैविक उत्पाद नहीं लेते। यदि कपिल जैसे कही स्वरोजगार शुरू करने वालों की दुकान पर महीने में 200 ग्राहक भी जाए और उनके उत्पादों को लेते तो कई दुकान आज चल जाती। लेकिन अफसोस, इस देश में आप बड़े बड़े स्टोर्स में जाकर वही सामान महंगे दामों में खरीदना पसंद करते है लेकिन जब यही सामान आपको अपने पहाड़ से शुद्धता, बेहतर क्वालिटी और कम दाम में किसी छोटी दुकान में मिलता है तो आप वहां से ना खरीद कर महंगे स्टोर्स में जाते है और पहाड़ी सामान और अपने लोगों को स्पेस ही नहीं देते की वह भी अपना सामान बेच सके।
आप सभी से यह अपील हैं की अपने पहाड़ के सामान और पहाड़ की चीज़ो कों ख़रीदे। अगर आप हीं अपने पहाड़ के सामान और पहाड़ की चीज़ो कों वरीयता नहीं देंगे तो पलायन और स्वा रोजगार करने वाले लोगो कैसे पनप पायंगे।

