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उत्तराखण्ड की राजधानी देहरादून में आज भी बच्चे नदी पार करके पहुंचते हैं स्कूल

उत्तर नारी डेस्क

आज भले ही भारत देश अपनी आजादी का 75वां जश्न मना रहा है। परन्तु आज भी उत्तराखण्ड राजधानी देहरादून से करीब मालदेवता क्षेत्र के दुबड़ा काटल गांव के कुछ लोग आजादी के इतने साल बाद भी सौंग नदी की कैद में जकड़े पड़े हैं। जी हाँ आज भी यहां के लोग सुविधाओं से वंचित है। आज भी यहां के बच्चों को पुल ना होने की वजह से नदी के तेज बहाव का सामना करते हुए रोजाना स्कूल जाना पड़ रहा है। 

आपको बता दें कि मालदेवता क्षेत्र के दुबड़ा काटल गांव में आठ परिवार रहते हैं। इस आठ परिवार के सात बच्चे मालदेवता में पढ़ते हैं। साथ ही इनमें नौंवी से 12वीं तक के पढ़ने वाले तीन बच्चे भी शामिल हैं। जिन्हें पढ़ाई करने के लिए भी रोजाना की जिन्दगी में जद्दोज़ेहद उठानी पड़ रही है। तो वहीं स्थानीय निवासी दीवान सिंह रावत बताते है कि स्कूल जाने वाले बच्चों में उनकी दो बेटियां भी शामिल है। जिन्हें वह रोजाना नदी आर-पार कराते हैं। तो उनमे एक बच्चा ऐसा भी है। जिसे अकेले ही उफनती नदी को पार करना पड़ता हैं। दीवान रावत कहते है कि सौंग नदी पर पुल नहीं है। सिर्फ नदी में ट्रॉली की (गरारी) की तार डली है, जिसकी मरम्मत भी नहीं हो रखी है। सभी गांववासी स्वयं ही पैसे जुटाकर ट्रॉली चलाते हैं। लेकिन हर साल ट्रॉली के लिए भी रस्सियां बदलनी पड़ती हैं। जिसके लिए उन्हें सरकार से अब तक कोई मदद भी नहीं मिल पायी है। इसके अलावा मरम्मत आदि करने के लिए भी 15 से 20 हजार रुपये लगते हैं। तो वहीं धन के आभाव में पिछले दो साल से अधिक होने पर भी वह ट्रॉली की मरम्मत नहीं करा पा रहे है। ऐसे में बरसात आने के दौरान नदी को पार करके जाना उनकी  मजबूरी बन जाती है। तो वहीं इस विषय में डीएम टिहरी ईवा आशीष श्रीवास्तव का कहना है कि ग्रामीण ग्राम पंचायत के माध्यम से प्रस्ताव बनाकर दें। ट्रॉली लगाने में जो भी खर्च आएगा। वह जारी कराया जाएगा।

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बताते चलें इस क्षेत्र को दूनवासी मालदेवता को पिकनिक स्पॉट के रूप में भी पहचानते हैं। गांव से तीन किमी एक पैदल रास्ता रायपुर-कद्द्खाल मोटरमार्ग पर जाता है। वहां से मालदेवता पहुंचने के लिए 13-14 किमी का फेर लगता है। इसलिए वहां रह रहे कुछ लोग नजदीक होने के चलते जान जोखिम में डालकर आये दिन नदी पार करने को मजबूर हैं। 

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