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टपकेश्वर मंदिर का यह सच कर देगा आपको हैरान, जानें

शीतल बहुखण्डी 


सावन का महीना शुरू हो चुका है। यूँ तो पूरा सावन महीना ही शिव की भक्ति को समर्पित रहता है। परन्तु शिव भक्तों के लिए सावन माह सभी महीनों में सबसे पवित्र माह होता है। जो कि शिव को समर्पित होता है। साथ ही सावन का महीना ही एक ऐसा महीना होता है ज‍िस दौरान सबसे अधिक वर्षा होती है। जो शिवजी के गर्म शरीर को ठंडक प्रदान करती है।

सावन के इस श्रद्धामय सोमवार को आज हम आपको सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में से एक टपकेश्वर महादेव मंदिर के बारे में बताएंगे। टपकेश्वर महादेव मंदिर देहरादून शहर से करीब छह किलोमीटर दूर गढ़ी कैंट छावनी क्षेत्र में तमसा नदी के तट पर स्थित है। जंगल के किनारे स्थित, मंदिर का मुख्य शिवलिंग एक प्राकृतिक गुफा के अंदर है। वेद व्यास द्वारा लिखित हिंदू महाकाव्य में बताया गया है कि महाभारत के पांडवों और कौरवों के सम्मानित शिक्षक गुरु द्रोणाचार्य के तप से प्रसन्न होकर ही भगवान शिव ने उन्हें इस स्थान पर दर्शन दिए थे और गुरु द्रोण के अनुरोध पर ही भगवान शिव जगत कल्याण लिंग के रूप में यहां स्थापित हो गए। इस प्रकार गुफा का नाम उनके नाम पर द्रोण गुफा रखा गया। 



इसके बाद गुरु द्रोणाचार्य ने इस गुफ़ा में शिव की पूजा अर्चना की। जिससे शिव ने प्रसन्न होकर उन्हें पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया। जिसके बाद गुरु द्रोणाचार्य के घर में अश्वत्थामा का जन्म हुआ। कहा जाता हैं कि जब अश्वत्थामा ने अपनी माँ कृपी से दूध पिने की इच्छा जाहिर की तो उनकी यह इच्छा पूरी ना हों सकी। जिस पर अश्वत्थामा ने मंदिर की गुफा में छह माह तक एक पांव पर खड़े होकर भगवान शिव की तपस्या की। जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव प्रकट हुए और मन चाहा वरदान मांगने के लिए कहा जिस पर अश्वत्थामा ने उनसे दूध मांगा। 


भगवान ने उनकी तपस्या से प्रश्नन होकर शिवलिंग के ऊपर स्थित चट्टान में गऊ थन बना दिए और दूध की धारा बहने लगी। इसी कारण से भगवान शिव का नाम दूधेश्वर पड़ गया। कलियुग में धीरे धीरे दूध की यह धारा जल में परिवर्तित हो गई, जो आज भी निरंतर शिवलिंग पर गिर रही है। इस कारण इस स्थान का नाम टपकेश्वर महादेव पड़ गया। इसके साथ हीं मान्यता यह भी हैं कि महादेव ने यहीं पर देवताओं को देवेश्वर के रूप में भी दर्शन दिए थे। यही कारण हैं कि देश ही नहीं, बल्कि विदेशों से भी शिव भक्त और पर्यटक भगवान शिव के दर्शन को यहां आते हैं। पूरा सावन महीना यहां मेले का माहौल बना रहता है।


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