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केदारनाथ में 6 साल बाद खिल उठा भगवान विष्णु जी का प्रिय नीलकमल पुष्प, जानिए इसकी ख़ासियत

उत्तर नारी डेस्क 

देवभूमि उत्तराखण्ड अपने प्राकृतिक सौंदर्य की वजह से जाना जाता है। इसी सौंदर्य को बढ़ाने वाले अनेक प्रकार के पुष्प उत्तराखण्ड के क्षेत्रों की सुंदरता को ओर भी मनमोहक बना देती है। इसी क्रम में केदारनाथ धाम के हिमालयी क्षेत्रों में उगने वाला ब्रह्मकमल उत्तराखण्ड का राज्य पुष्प है जो कि वर्ष में एक बार ही अगस्त और सितंबर के बीच खिलता है। परन्तु इस बार केदारनाथ क्षेत्र में कई सालों के बाद दुर्लभ नीलकमल के फूल भी खिले दिखे हैं। जिससे हिमालयी क्षेत्रों की सुंदरता और भी बढ़ गई हैं। प्रकृति के इस खूबसूरत चमत्कार को देख वनस्पति विज्ञानी भी काफ़ी खुश हैं। 

आपको बता दें केदारनाथ धाम के हिमालयी क्षेत्रों में पिछले दो वर्षों में मानव गतिविधियां कम होने से नीलकमल सहित अनेक प्रकार के फूल खिले हैं। इन दिनों केदारनाथ धाम से आठ किमी दूर स्थित वासुकीताल के आस-पास का क्षेत्र नीलकमल, सोसरिया, हेराक्लियम वालिचि सहित अन्य प्रकार के हिमालयी फूलों से गुलजार है। तो वहीं सोसरिया का फूल केदारनाथ के हिमालयी क्षेत्र में पहली बार पाया गया है। विलुप्ति की ओर अग्रसर इन पुष्प के लगभग छह वर्ष बाद इतनी बड़ी तादाद में नजर आने से वन विभाग भी खासा उत्साहित है। 

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हिमालय क्षेत्र में चार प्रकार के उगने वाले कमल

हिमालयी क्षेत्र में चार प्रकार के कमल पाए जाते हैं, जिनमें ब्रह्मकमल, नील कमल, फेन कमल व कस्तूरा कमल शामिल हैं। इनके दीदार को हर पर्यटक लालायित रहता है। 

1 - हिमालय में उगने वाले कमल पुष्पों में ब्रह्मकमल (सौसुरिया ओबव्ल्लाटा) सबसे प्रमुख है। इसे उत्तराखण्ड के राज्य पुष्प का दर्जा हासिल है। वेदों में भी इस पुष्प का उल्लेख मिलता है। इसलिए इसे देव पुष्प कहा गया है। भगवान शिव के प्रिय पुष्प के तौर पर ब्रह्मकमल को मान्यता मिली है।

2 - फेन कमल (सौसुरिया सिम्पसोनीटा) हिमालयी क्षेत्र में 4000 से 5600 मीटर तक की ऊंचाई पर जुलाई से सितंबर के मध्य खिलता है। इसका पौधा छह से 15 सेमी तक ऊंचा होता है और फूल प्राकृतिक ऊन की भांति तंतुओं से ढका रहता है। फेन कमल बैंगनी रंग का होता है। 

3 - ऐसा ही एक कमल बर्फ की तरह सफेद होता है, जिसे कस्तुरा कमल कहते हैं। कस्तूरा कमल (सौसुरिया गॉसिपिफोरा) भी फेन कमल की प्रजाति में ही आता है। 

4 - हिमालय का चौथा कमल नील कमल (जेनशियाना फाइटोकेलिक्स) है। काफी दुर्लभ है और समुद्रतल से 3500 मीटर से लेकर 4500 मीटर तक की ऊंचाई पर मिलता है। जानकारी के अभाव में कम ही पर्यटक नील कमल को पहचान पाते हैं। तो वहीं हिंदू पुराणों के अनुसार नीलकमल को भगवान विष्णु का प्रिय पुष्प माना जाता है।

केदारनाथ वन्य जीव प्रभाग के डीएफओ अमित कंवर ने बताया कि वह वन विभाग की टीम के साथ वासुकीताल क्षेत्र के भ्रमण पर गए थे। वहां ब्रह्मकमल के साथ नील कमल भी बहुतायत में खिला है। लगभग छह वर्ष बाद इतनी बड़ी तादाद में यहां नील कमल दिखाई दे रहा है, यह निश्चित रूप से शुभ संकेत है। इसके साथ ही हिमालयी पुष्प की जड़, तना, पत्ती व फूल कई बीमारियों के इलाज में रामबाण भी साबित होते हैं। 

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