उत्तर नारी डेस्क
हिंदू धर्म में कोई भी शुभ कार्य करने से पहले मुहूर्त देखा जाता है। वर्ष में कई दिन ऐसे होते हैं जब शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं। इन्हीं में से एक है होलाष्टक। जैसा किनाम से ज्ञात है अष्टक अर्थात आठ दिन। होलिका दहन से पहले के आठ दिन शुभ कार्यो के लिए निषिद्ध होते हैं। होलाष्टक की आठ दिन की अवधि में मुंडन, गृह प्रवेश, विवाह, सगाई आदि मांगलिक कार्य टाल देना चाहिए। इस बार होलाष्टक फाल्गुन शुक्ल अष्टमी 10 मार्च से पूर्णिमा 17 मार्च 2022 तक रहेगा।
होलिका दहन से पूर्व के आठ दिन शुभ कार्यो में निंदित रहते हैं। इन आठ दिनों में भक्त प्रहलाद को कड़ी यातनाएं दी गई थीं। इसके साथ ही इन आठ दिनों में ग्रह अपने उग्र स्वरूप में होते हैं इसलिए मनुष्य की निर्णय क्षमता कमजोर हो जाती है। कार्यो का शुभ फल मिलने की जगह विपरीत असर होता है। इसी कारण इस समय कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता है। होलाष्टक के प्रथम दिन चंद्र, नवमी को सूर्य, दशमी को शनि, एकादशी को शुक्र, द्वादशी को बृहस्पति, त्रयोदशी को बुध, चतुर्दशी को मंगल और पूर्णिमा को राहु-केतु उग्र होते हैं। इसलिए इद दिनों में शुभ कार्य टाल देना चाहिए। इस दौरान गर्भवती स्ति्रयों को भी बाहर निकलने, नदी-नाले पार करने, यात्रा आदि करने से रोक दिया जाता है। फाल्गुन माह के इन अंतिम आठ दिनों में तंत्र-मंत्र की क्रियाएं अपने चरम पर होती हैं जो गर्भस्थ शिशु को हानि पहुंचा सकती है।
होलाष्टक का पौराणिक महत्व
होलाष्टक की कथा भगवान शिव और कामदेव से जुड़ी हुई है। पुराण कथा के अनुसार कामदेव ने भगवान शिव की तपस्या भंग कर दी थी। इससे क्रोधित होकर शिवजी ने कामदेव को भस्म कर दिया था। यह दिन फाल्गुन शुक्ल अष्टमी का था। अपने पति के भस्म हो जाने से दुखित रति ने भगवान शिव से कामदेव को पुनर्जीवित करने की याचना की। रति की आठ दिन की तपस्या के बाद भगवान शिव ने फाल्गुन पूर्णिमा के दिन कामदेव को जीवित कर दिया। कामदेव के जीवित होने के अवसर को सभी ने उत्सव के रूप में मनाया।
पंडित राजेंद्र प्रसाद बेबनी
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