उत्तर नारी डेस्क
10 मार्च से लगेगा होलाष्टक-:
शुभ कार्यों पर लगेगी रोक
जानें इसकी पौराणिक मान्यता
होली का त्योहार 18 मार्च को मनाया जाएगा। होली के 8 दिन पहले होलाष्टक शुरू हो जाता है जो होलिका दहन तक चलता है। मान्यताओं के अनुसार होलाष्टक के दौरान कोई भी मांगलिक कार्य नहीं किया जाना चाहिए। इसलिए होली से 8 दिनों पहले सारे शुभ कार्य पर रोक लग जाती है। ऐसा माना जाता है कि होलाष्टक के समय यानी होली से 8 दिनों पहले तक सभी ग्रहों का स्वभाव उग्र रहता है। शुभ कार्यों के लिए ग्रहों की ये स्थिति अच्छी नहीं मानी जाती है. मान्यताओं के अनुसार इस अवधि में किए गए शुभ कार्यों का पूर्ण फल प्राप्त नहीं होता है।
कब से शुरू हो रहे हैं होलाष्टक:
होलाष्टक फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से प्रारंभ होता है और फाल्गुन पूर्णिमा को होलिका दहन के साथ खत्म हो जाता है। इस बार होलाष्टक 10 मार्च से लग रहा है। फाल्गुन शुक्ल अष्टमी तिथि तड़के 02:56 बजे से लग जाएगी। होलिका दहन 17 मार्च को की जाएगी और होलाष्टक का अंत भी इसी दिन के साथ हो जाएगा।
क्यों अशुभ होती है होलाष्टक की अवधि-:
हिंदू मान्यताओं के अनुसार अगर कोई व्यक्ति होलाष्टक के दौरान कोई मांगलिक काम करता है तो उसे कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। इतना ही नहीं व्यक्ति के जीवन में कलह, बीमारी और अकाल मृत्यु का साया भी मंडराने लगता है। इसलिए होलाष्टक के समय को शुभ नहीं माना जाता है।
होलाष्टक से जुड़ी पौराणिक मान्यता-:
पौराणिक कथा के अनुसार हिरण्यकश्यप ने 7 दिनों तक अपने पुत्र प्रहलाद को बहुत यातनाएं दी थीं। आठवें दिन हिरण्यकश्यप की बहन ने अपनी गोद में बिठाकर प्रहलाद को भस्म करने की कोशिश की। हालांकि भगवन विष्णु की कृपा से प्रहलाद का बाल भी बांका नहीं हुआ और तभी से होलाष्टक मनाने की परंपरा की शुरुआत हुई। इन 8 दिनों में दाहकर्म की तैयारियां शुरू की जाती है। होलाष्टक खत्म होने के बाद रंगो वाली होली मनाई जाती है और प्रहलाद के जीवित बचने की खुशियां मनाई जाती हैं। इसके बाद से ही सारे मांगलिक कार्य शुरू हो जाते हैं।
होलाष्टक को लेकर एक अन्य पौराणिक कथा भी प्रचलित है। कहा जाता है कि होलाष्टक के दिन ही भगवान शिव ने कामदेव को भस्म कर दिया था।कामदेव ने भगवान शिव की तपस्या भंग करने की कोशिश की थी जिसके चलते महादेव क्रोधित हो गए थे। इसी दौरान उन्होंने अपने तीसरे नेत्र से काम देवता को भस्म कर दिया था। हालांकि, कामदेव ने गलत इरादे से भगवान शिव की तपस्या भंग नहीं की थी। कामदेव की मृत्यु के बारे में पता चलते ही पूरा देवलोक शोक में डूब गया। इसके बाद कामदेव की पत्नी देवी रति ने भगवान भोलेनाथ से प्रार्थना की और अपने मृत पति को वापस लाने की मनोकामना मांगी जिसके बाद भगवान शिव ने कामदेव को पुनर्जीवित कर दिया था।
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होलिका दहन मुहूर्त
- होलिका दहन 17 मार्च
अवधि : 1 घंटे 10 मिनट
- भद्रा पुँछा :21:20:55 से 22:31:09 तक
- भद्रा मुखा :22:31:09 से 00:28:13 तक
- रंग की होली 18, मार्च को
आइए जानते हैं कि 2022 में होलिका दहन कब है व होलिका दहन 2022 की तारीख व मुहूर्त। होलिका दहन, होली त्यौहार का पहला दिन, फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इसके अगले दिन रंगों से खेलने की परंपरा है जिसे धुलेंडी, धुलंडी और धूलि आदि नामों से भी जाना जाता है। होली बुराई पर अच्छाई की विजय के उपलक्ष्य में मनाई जाती है।
होलिका दहन का शास्त्रोक्त नियम
फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से फाल्गुन पूर्णिमा तक होलाष्टक माना जाता है, जिसमें शुभ कार्य वर्जित रहते हैं। पूर्णिमा के दिन होलिका-दहन किया जाता है। इसके लिए मुख्यतः दो नियम ध्यान में रखने चाहिए -
1. पहला, उस दिन “भद्रा” न हो। भद्रा का ही एक दूसरा नाम विष्टि करण भी है, जो कि 11 करणों में से एक है। एक करण तिथि के आधे भाग के बराबर होता है।
2. दूसरा, पूर्णिमा प्रदोषकाल-व्यापिनी होनी चाहिए। सरल शब्दों में कहें तो उस दिन सूर्यास्त के बाद के तीन मुहूर्तों में पूर्णिमा तिथि होनी चाहिए।
होलिका दहन (जिसे छोटी होली भी कहते हैं) के अगले दिन पूर्ण हर्षोल्लास के साथ रंग खेलने का विधान है और अबीर-गुलाल आदि एक-दूसरे को लगाकर व गले मिलकर इस पर्व को मनाया जाता है।
होलिका दहन की पौराणिक कथा
पुराणों के अनुसार दानवराज हिरण्यकश्यप ने जब देखा की उसका पुत्र प्रह्लाद सिवाय विष्णु भगवान के किसी अन्य को नहीं भजता, तो वह क्रुद्ध हो उठा और अंततः उसने अपनी बहन होलिका को आदेश दिया की वह प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठ जाए; क्योंकि होलिका को वरदान प्राप्त था कि उसे अग्नि नुक़सान नहीं पहुँचा सकती। किन्तु हुआ इसके ठीक विपरीत -- होलिका जलकर भस्म हो गयी और भक्त प्रह्लाद को कुछ भी नहीं हुआ। इसी घटना की याद में इस दिन होलिका दहन करने का विधान है। होली का पर्व संदेश देता है कि इसी प्रकार ईश्वर अपने अनन्य भक्तों की रक्षा के लिए सदा उपस्थित रहते हैं।
होलिका दहन का इतिहास
होली का वर्णन बहुत पहले से हमें देखने को मिलता है। प्राचीन विजयनगर साम्राज्य की राजधानी हम्पी में 16वीं शताब्दी का चित्र मिला है जिसमें होली केपर्व को उकेरा गया है। ऐसे ही विंध्य पर्वतों के निकट स्थित रामगढ़ में मिले एक ईसा से 300 वर्ष पुराने अभिलेख में भी इसका उल्लेख मिलता है। कुछ लोग मानते हैं कि इसी दिन भगवान श्री कृष्ण ने पूतना नामक राक्षसी का वध किया था। इसी ख़ुशी में गोपियों ने उनके साथ होली खेली थी।
फाग महोत्सव सारिणी 2022
05 फरवरी: बसंत पंचमी
10 मार्च: फाग आमंत्रण (सखियों का न्यौता)
10 मार्च: लड्डू होली, बरसाना
10 मार्च: करुणामयी परिवार द्वारा बधाई गायन
11 मार्च: लठामार होली, बरसाना
12 मार्च: लठामार होली, नंदगाँव
14 मार्च: श्री कृष्ण जन्मभूमि, मथुरा
14 मार्च: द्वारिकाधीश होली, मथुरा
14 मार्च: बांकेबिहारी होली, वृन्दावन
16 मार्च: छड़ीमार होली, गोकुल
18 मार्च: होलिका दहन
19 मार्च: धुलेंडी
19 मार्च: श्रीजी के सफेद छतरी में दर्शन
19 मार्च: दाऊजी हुरंगा, बलदेव
20 मार्च: नंदगाँव हुरंगा, नंदगाँव
20 मार्च: जाब हुरंगा, जाब
20 मार्च: चरकुला, मुखराई
21 मार्च: हुरंगा, बठैन
21 मार्च: हुरंगा, गिडोह
23 मार्च: रंगपंचमी, खायरा
पंडित राजेंद्र प्रसाद बेबनी
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