उत्तर नारी डेस्क
उत्तराखण्ड में पहाड़ का जीवन आज भी पहाड़ जैसी चुनौतियों से भरा पड़ा है। उत्तराखण्ड राज्य गठन के बाद सरकारें बदलीं। मुखिया बदले। मगर नहीं बदली तो दूर गांवों की तस्वीर व तकदीर। आज भी सीमा छोर के गांवों की तस्वीर और तकदीर जस की तस है। चुनाव आते ही विकास के नाम पर सियासत करने वाले राजनीतिक दल और उनके नुमाइंदे भले ही लाख दावे करते हों; परंतु आज भी पहाड़ की तलहटी में बसे कुछ गांव के लोगों को सड़क तक आने के लिए कई किमी तक पथरीले, संकरे और खतरनाक रास्तों को पैदल पार करना पड़ता है।
ग्रामीण मरीजों को आज भी डोली में लेकर अस्पताल पहुँचाना पड़ता हैं। ऐसे में अक्सर कई बार गंभीर रूप से बीमार मरीजों की समय से इलाज ने मिलने के कारण मौत भी हो जाती है ।
इसी क्रम में ऐसे ही विकास के दावों की पोल खोल रहा है; सुदूर पर्वतीय क्षेत्र का मुनस्यारी तहसील के दूरस्थ गांव क्वीरीजीमिया। जहां एक बीमार युवक को गांव के युवाओं ने अपनी जान पर खेल कर डोली से आठ किमी दूर सड़क तक पहुंचाया है और फिर पंद्रह किमी वाहन से चल कर रोगी को प्राथमिक उपचार मिल सका है।
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बता दें मुनस्यारी का जैविक आलू और राजमा उत्पादक गांव क्वीरीजीमिया तहसील मुख्यालय से 23 किमी की दूरी पर है। गांव सड़क से आठ किमी की पैदल पूरी पर है। विगत 2001 से मानसून काल में प्रतिवर्ष आपदा आने से मार्ग बुरी तरह क्षतिग्रस्त है। जिसका आज तक निर्माण नहीं हो सका है। ग्रामीण आज भी चट्टानों से होकर गुजरते हैं। इसी गांव का निवासी धीरु रावत विगत दिनों से बुखार से पीडि़त था। आसपास उपचार की व्यवस्था नहीं होने से उसकी स्थिति गंभीर हो गई। जिस पर बीते रविवार को गांव के चार युवा गंगा सिंह, भगवान बृजवाल, भूपाल सिंह और तेज सिंह टोलिया बीमार को डोली पर रख कर आठ किमी दूर सड़क तक लाए। जहां से फिर 15 किमी वाहन से चल कर सायं को मुनस्यारी सीएचसी पहुंचे। जहां बीमार युवक का इलाज हुआ। वहीं इस संबंध में बीमार को डोली से लाने वाले युवाओं ने बताया कि गांव से लगभग पांच किमी मार्ग जानलेवा बना है। इस मार्ग पर खुद को बचाते हुए बीमार को कंधे पर लाना चुनौती था। आठ किमी मार्ग तय करने में तीन घंटे के आसपास समय लगा है। ग्रामीण सड़क की मांग को लेकर मतदान का बहिष्कार तक कर चुके हैं। परन्तु अब तक उनके गॉव में सड़क निर्माण के लिए वित्त्तीय स्वीकृति नहीं मिली है।
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