उत्तर नारी डेस्क
दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र से जुड़ी पुरातत्व व इतिहास के शोधार्थियों ने बड़ी सफलता हासिल की है। शोधार्थियों ने दावा किया है कि उन्होंने उत्तरकाशी के देवल गांव से पत्थर की महिष (भैंसा) मुखी चतुर्भुज मानव प्रतिमा खो निकली है। जिसके लाक्षणिक गुण शिव प्रतिमा के अनुरूप है और जिसे इस प्रतिमा के खोजकर्ता सिंधु घाटी सभ्यता से प्राप्त 'आदि शिव' की प्रतिमा से जोड़कर देख रहे हैं। शुक्रवार को शोध केंद्र में निदेशक प्रोफेसर बीके जोशी ने ये दावा किया।
उन्होंने कहा कि पूर्व में पुरातत्वविदों द्वारा पुरातात्विक साक्ष्यों के आधार पर सिंधु घाटी सभ्यता एवं उत्तराखण्ड के पारस्परिक संबंधों को रेखांकित रेखांकित करती है। इस दुर्लभ प्रतिमा का प्रकाशन रोम से प्रकाशित प्रतिष्ठित शोध पत्रिका ईस्ट एंड वेस्ट के नवीनतम अंक में हुआ है, जो इसके पुरातात्विक महत्व को दर्शाता है। दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र के शोधार्थी एवं इतिहासकार प्रो. महेश्वर प्रसाद जोशी ने बताया कि उत्तराखण्ड यमुना घाटी पुरासंपदा की दृष्टि से अत्यंत समृद्ध है। उत्तराखण्ड की यमुना घाटी में पहले भी सिंधु घाटी सभ्यता से जुड़े अवशेष मिल चुके हैं। यहां कालसी स्थित अशोक महान का शिलालेख जगतग्राम एवं पुरोला की अश्वमेघ यज्ञ की ईंटों की वेदियां तथा लाखामण्डल के देवालय समूह विश्वविख्यात हैं। प्रेसवार्ता के दौरान पुरातत्व के शोधार्थी डॉ. प्रहलाद सिंह रावत भी उपस्थित थे।
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