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महाभारत में ही भारत समाया है-प्रो. गोपबन्धु मिश्र

उत्तर नारी डेस्क

हरिद्वार : श्री भगवानदास आदर्श संस्कृत महाविद्यालय, हरिद्वार में आयोजित द्विदिवसीय वेबीनार के द्वितीय दिवस पर सोमनाथ संस्कृत विश्वविद्यालय, गुजरात के पूर्व कुलपति व बी.एच.यू. के संस्कृत विभाग के प्रोफेसर डॉ. गोपबन्धु मिश्र ने कहा कि महाभारत में ही सम्पूर्ण भारत समाहित है। उन्होंने कहा कि महाभारत के विषय में कहा जाता है कि यन्न भारते तन्न भारते अर्थॎत् जो ज्ञान महाभारत में नहीं है, वह आपको भारत में अन्यत्र कहीं नहीं मिलेगा। प्रत्येक विषय के ज्ञान का समावेश महाभारत में है। प्रो. मिश्र ने कहा कि महाभारत शान्त रस से युक्त ग्रन्थ है। इससे हमें यह शिक्षा भी मिलती है कि पारस्परिक ईर्ष्या-द्वेष व व्यक्तिगत इच्छाओं के कारण राष्ट्र को कितनी हानि हो सकती है। डॉ. रवीन्द्र कुमार ने महाभारत के वन पर्व के यक्ष युधिष्ठर संवाद की प्रासंगिकता पर चर्चा करते हुए कहा कि महाभारत का यह प्रकरण व्यक्ति को चिन्तन की नई दिशा प्रदान करता है। महाभारत के इस प्रकरण में भ्रातृत्वप्रेम का अनुपम उदाहरण विद्यमान है। महाभारत में कहा कि व्यक्ति वृद्धों की सेवा से बुद्धिमान् बनता है। हमें प्रयत्नपूर्वक सदाचार का पालन करना चाहिए। जो व्यक्ति सदाचार से पतित हो जाता है, वह स्वयं ही नष्ट हो जाता है। डॉ. रवीन्द्र कुमार ने कहा कि हमें निरन्तर सत्य शास्त्रॊं का स्वाध्याय अवश्य करना चाहिए। जिससे हम असत्य से सत्य की ओर चल सकें। 

वेबीनार के समापन सत्र में राष्टिपति पुरस्कार से पुरस्कृत प्रो. राधाबल्लभ त्रिपाठी ने कहा कि महाभारत को हमें नवीन दृष्टिकोण से पढ़ना होगा। तभी हम महाभारत की शिक्षाओं को समझ सकते है। राष्टपतिपुरस्कृत प्रो. वेद प्रकाश उपाध्याय ने कहा कि मैं जब-जब महाभारत पढता हॅू तो मुझे उससे एक नयी ऊर्जा और नया ज्ञान मिलता है। इस अवसर पर महाविद्यालय के प्रभारी प्राचार्य ने उपस्थित सभी विद्वानों एवं प्रतिभागियों का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि इस वेबीनार से प्रेरित होकर लोग महाभारत को पढने के लिए प्रेरित होंगे। कार्यक्रम की संयोजिका डॉ आशिमा श्रवण ने कहा कि इस वेबिनार में आठ रिसोर्स पर्सन और 24 प्रतिभागियों ने महाभारत से सम्बन्धित अपने शोधपत्र व विचॎर प्रस्तुत किये हैं। इस अवसर पर डॉ- निरंजन मिश्र, डॉ. श्वेता अवस्थी, डॉ. मंजू पटेल, डॉ. मनोज कुमार, डॉ. रिचा जोशी पाण्डेय, डॉ. अन्ध्रूति शाह आदि उपस्थित रहें।

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