उत्तर नारी डेस्क
आषाढ़ गुप्त नवरात्रि 2022 तिथि
प्रतिपदा तिथि का आरंभ - 29 जून 2022, सुबह 8 बजकर 21 मिनट
प्रतिपदा तिथि का समाप्ति - 30 जून 2022, सुबह 10 बजकर 49 मिनट
गुप्त नवरात्रि शुभ मुहूर्त
अभिजित मुहूर्त - 30 जून 2022, सुबह 11 बजकर 57 से 12 बजकर 53 मिनट तक
घट स्थापना मुहूर्त - 30 जून 2022, सुबह 5 बजकर 26 मिनट से 6 बजकर 43 मिनट तक
दुर्गा अष्टमी, 7 जुलाई 2022 गुरूवार
सन्धि पूजा
सन्धि पूजा प्रारम्भ 07:04 PM पर
सन्धि पूजा समाप्त 07:52 PM पर
गुप्त सिद्धियां पाने करते हैं विशेष साधना
गुप्त नवरात्रि पौराणिक ग्रंथाें के अनुसार चैत्र और शारदीय नवरात्रि में सात्विक और तांत्रिक दोनों प्रकार की पूजा की जाती है, लेकिन गुप्त नवरात्रि में मां दुर्गा की पूजा भी गुप्त तरीके से की जाती है। इसका सीधा मतलब है कि, इस दौरान तांत्रिक क्रिया कलापों पर ही ध्यान दिया जाता है। इसमें मां दुर्गा के भक्त आसपास के लोगों को इसकी भनक नहीं लगने देते कि वे कोई साधना कर रहे हैं। ऐसी मान्यता है कि इस दौरान जितनी गोपनीयता बरती जाए उतनी ही अच्छी सफलता मिलेगी। गुप्त नवरात्री सिर्फ तांत्रिको की पूजा हैं इसमें उग्र शक्ति व दसमहाविद्याएं की साधना होती है। नवरात्रि में नौ देवियों की उपासना होती है और गुप्त नवरात्रि में दस महाविद्याओं की साधना की जाती है। चैत्र और अश्विन माह में पड़ने वाली नवरात्रि को प्रकट नवरात्रि सात्विक होती है इस में गृहस्थ जीवन वाले साधना पूजन करते हैं।
माघ और आषाढ़ माह में पड़ने वाली नवरात्रि को गुप्त नवरात्रि तामसिक होती है। साधक सन्यासी, सिद्धि प्राप्त करने वाले तांत्रिक-मांत्रिक के लिए है। सात्विक गृहस्थ वालो को नहीं करनी चाहिए "यहा श्मशान प्रमुख हे" दशमहाविधाएँ दस का रहस्य संसार मे दस दिशायें स्पष्ट है। इसी भाँति से दश की संख्या भी पूर्णतः पूर्ण ब्रह्म का सूचक है। किसी भी रहस्य का शुभारंभ शुन्य से होता है शुन्य अर्थात आदि अन्त रहित संख्या जिससे जुडे उसे महान बना दे और स्वमं एक क्रम प्रवाहित कर दे ऐसा शुन्य का स्वभाव। इसके बाद एक दो तीन से नौ तक संख्यायें होती है शून्य से ही सृष्टि होती है जब कुछ नही था उस समय शुन्य था। इस शून्य का अर्थ शून्य नही अपितु पुर्ण है।
इसी से नौ संख्याओं का विराट् प्रस्तुत हुआ करता है जो कि एक से नौ तक होता है। यही रहस्य क,च,ट,प,त,य,क्ष,त्र तथा ज्ञ का है क्या कि यही आध अक्षर है इन्ही से अन्य शब्दो का प्रादुर्भाव हुआ करता है। प्रत्येक मनुष्य की देह पर नौ द्वार स्पष्ट है और दशवाँ द्वार अदृश्य है क्योकि वह शून्य रूपी विराट है जहाँ से समस्त संख्या रूपी भावनाओं का श्री गणेश हुआ करता है। शिरोमण्डल प्रदेश में शून्य सर्वदा कार्यरत है।
देवी देवताओ का अपना अधिकार क्षेत्र है अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर वह अपने भक्तो की याचना स्वीकार नही करते इसलिये पुराणो मे बताया गया है कि जो चीजें जिस देवी देवता के अधिकार क्षेत्र मे हो उसी की याचना करनी चाहिये।
सुर्य से आरोग्य की अग्नि से उर्जा की शिव से ज्ञान की विष्णु से मोक्षकी दुर्गा से रक्षा की हनुमान व भैरव से कठिनाइयो से पार पाने की सरस्वती से विधा की लक्ष्मी से ऐश्वर्य की पार्वती से सौभाग्य की कृष्ण से संतान की और गणेश से सभी वस्तुओ की याचना करनी चाहिए।
गुप्त नवरात्रि की देवियां : - मां काली, तारादेवी, त्रिपुर सुंदरी, भुवनेश्वरी माता, छिन्न माता, त्रिपुर भैरवी मां, धुमावती माता, बगलामुखी, मातंगी और कमला देवी।
सौम्य में त्रिपुरसुंदरी, भुवनेश्वरी, मातंगी और महालक्ष्मी (कमला) है (सतोगुण)
तारा तथा भैरवी को उग्र तथा सौम्य दोनों माना गया हैं (रजोगुण)
उग्र में काली, छिन्नमस्ता, धूमावती और बगलामुखी है (तमोगुण)
देवी के वैसे तो अनंत रूप है पर इनमें भी तारा, काली और षोडशी के रूपों की पूजा, भेद रूप में प्रसिद्ध हैं।
दस महाविद्या किसकी प्रतीक
प्रतिपदा तिथि घटस्थापना एवं देवी काली पूजा-30 जून 2022 बृहस्पतिवार।
द्वितीया तिथि देवी तारा 1 जुलाई 2022, शुक्रवार।
तृतीया तिथि देवी बगलामुखी 2 जुलाई 2022, शनिवार ।
चतुर्थी तिथि देवी छिन्न माता पूजा- 3 जुलाई 2022, रविवार।
पंचमी तिथि देवी त्रिपुरसुंदरी पूजा-4 जुलाई 2022, सोमवार।
षष्ठी तिथि देवी पूजा-धूमावती 5 जुलाई 2022, मंगलवार।
सप्तमी तिथि देवी पूजा-त्रिपुरभैरवी 6 जुलाई 2022,बुधवार ।
अष्टमी तिथि देवी कमला -7 जुलाई 2022, बृहस्पतिवार।
सन्धि पूजा प्रारम्भ 07:04 PM पर
सन्धि पूजा समाप्त 07:52 PM पर
नवमी तिथि देवी मातंगी -8 जुलाई 2022,
दशवां दिन- देवी भुवनेश्वरी नवरात्रि का पारण-9 जुलाई 2022,शनिवार
काली ( समस्त बाधाओं से मुक्ति)
तारा ( आर्थिक उन्नति)
त्रिपुर सुंदरी ( सौंदर्य और ऐश्वर्य)
भुवनेश्वरी ( सुख और शांति)
छिन्नमस्ता ( वैभव, शत्रु पर विजय, सम्मोहन)
त्रिपुर भैरवी ( सुख-वैभव, विपत्तियों को हरने वाली)
धूमावती ( दरिद्रता विनाशिनी)
बगलामुखी ( वाद विवाद में विजय, शत्रु पर विजय)
मातंगी ( ज्ञान, विज्ञान, सिद्धि, साधना )
कमला ( परम वैभव और धन)
आराधना का मंत्र
काली तारा महाविद्या षोडशी भुवनेश्वरी।
भैरवी छिन्नमस्ता च विद्या धूमावती तथा।
बगला सिद्धविद्या च मातंगी कमलात्मिका।
एता दश महाविद्या: सिद्धविद्या: प्राकृर्तिता।
एषा विद्या प्रकथिता सर्वतन्त्रेषु गोपिता।।
प्रथम दिन की महा देवी काली स्वरुप हैं।
प्रतिपदा तिथि घटस्थापना एवं देवी काली पूजा-30 जून 2022 बृहस्पतिवार। इनकी साधना साधक को उत्तर की ओर मुख करके करनी चाहिए। इनका महा मंत्र – क्रीं ह्रीं काली ह्रीं क्रीं स्वाहा। इस मंत्र का कम से कम ११०० बार जाप करना चाहिए तथा विशेष सिद्धि के लिए विशेष जाप की आवशकता होती है। दस महाविद्या की साधना करनेवाले सभी साधको को ९ दिन फलहार में रहना चाहिए तथा किसी एक रंग के वस्त्र को नौ दिन धारण करना चाहिए। रंगों में तीन रंग प्रमुख हैं- काला (उत्तम ), लाल (मध्य ), सफ़ेद (निम्न)। इस प्रकार का साधना विशेष साधको के लिए है। परन्तु सामान्य भक्तजन न्यूनतम सुबह शाम इस म़हामंत्र का जाप 108 बार करें तो उनके घरमें सुख शान्ति बनी रहती है और आकाल मृत्यु नही होती है.
द्वितीय दिन: माँ तारा की साधना
द्वितीया तिथि देवी तारा 1 जुलाई 2022, शुक्रवार।
दूसरे दिन की महा देवी माँ तारा स्वरुप हैं। इनकी साधना साधक को ईशान कोने की ओर मुख करके करनी चाहिए। ईशान कोन उत्तर पूर्व दिशा के बीच के कोन को कहते हैं। इनका महा मंत्र -क्रीं ह्रीं तारा ह्रीं क्रीं स्वाहा। इस मंत्र का कम से कम ११०० बार जाप करना चाहिए तथा विशेष सिद्धि के लिए विशेष जाप की आवशकता होती है।सामान्य भक्तजन न्यूनतम सुबह शाम इस महा मंत्र का जाप १०८-१०८ बार करें तो उनके पुत्र के कष्टों का नाश होता है। अथवा अगर पुत्रहीन स्त्रियाँ यह जाप करें तो उन्हे पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है। इस मन्त्र के जाप से दुश्मनों पर विजय की प्राप्ति भी होती है।
तृतीया तिथि देवी बगलामुखी 2 जुलाई 2022, शनिवार
तृतीया दिन की महा देवी माँ बंगलामुखी स्वरुप हैं। इनकी साधना साधक को भंडार कोन की ओर मुख करके करनी चाहिए। भंडार कोण पश्चिम और उत्तर दिशा के बीच का कोण होता है।इनका महा मंत्र – क्रीं ह्रीं बंगलामुखी ह्रीं क्रीं स्वाहा: है। इस मंत्र का कम से कम ११०० बार जाप करना चाहिए तथा विशेष सिद्धि के लिए विशेष जाप की आवशकता होती है।सामान्य भक्तजन न्यूनतम सुबह शाम इस महा मंत्र का जाप १०८-१०८ बार करें। माँ बंगलामुखी का जाप ऐसे व्यक्ति को करना चाहिए जिनके ऊपर किसी तांत्रिक क्रिया को कराया जा रहा हो और जिस से वो परेशान हो। इस मंत्र का जाप करने से वैसे दुष्ट व्यक्तियों का नाश होता है। इनका जाप करते समय साधक को पीला वस्त्र धारण करना चाहिए और पीले माला से जाप करना चाहिए। उस माला को जाप ख़त्म होने के बाद किसी पीपल के पेड़ पर टांग देना चाहिए।
चतुर्थी तिथि देवी छिन्न माता पूजा- 3 जुलाई 2022, रविवार
चौथा दिन की महा देवी माँ छिन्मस्तिका काली स्वरुप हैं। इनकी साधना साधक को दक्षिण कोन की ओर मुख करके करनी चाहिए। इनका महा मंत्र -क्रीं ह्रीं छिन्मस्तिका ह्रीं क्रीं स्वाहा: है। इस मंत्र का कम से कम ११०० बार जाप करना चाहिए तथा विशेष सिद्धि के लिए विशेष जाप की आवशकता होती है।सामान्य भक्तजन न्यूनतम सुबह शाम इस महा मंत्र का जाप १०८-१०८ बार करें तो दुष्टों का नाश होता है तथा उस व्यक्ति के तमो गुन और रजो गुन का भी नाश होता है। साथ ही साथ जो पुरूष या महिला इस मंत्र का जाप करते हैं उनके काम वासना को नियंत्रित करता है।
पंचमी तिथि देवी त्रिपुरसुंदरी पूजा-4 जुलाई 2022, सोमवार
पांचवा दिन की महा देवी माँ षोडशी स्वरुप हैं। इनकी साधना साधक को अग्नि कोन की ओर मुख करके करनी चाहिए। अग्नि कोन पूर्व दक्षिण दिशा के बीच के कोन को कहते हैं।-क्रीं ह्रीं षोडशी ह्रीं क्रीं स्वाहा: इस मंत्र का कम से कम ११०० बार जाप करना चाहिए तथा विशेष सिद्धि के लिए विशेष जाप की आवशकता होती है।सामान्य भक्तजन न्यूनतम सुबह शाम इस महा मंत्र का जाप १०८-१०८ बार करें तो उनका यौवन बना रहता है तथा उस व्यक्ति मैं आकर्षण की शक्ति बढती है। साथ ही साथ जो पुरूष या महिला इस मंत्र का जाप करते हैं उन्हें कार्तिक के सामान वीर पुत्र की प्राप्ति होती है।
षष्ठी तिथि देवी पूजा-धूमावती 5 जुलाई 2022, मंगलवार
छठे दिन की महा देवी माँ धूमावती स्वरुप हैं। इनकी साधना साधक को पश्चिम कोन की ओर मुख करके करनी चाहिए। इनका महा मंत्र – क्रीं ह्रीं धूमावती ह्रीं क्रीं स्वाहा: है। इस मंत्र का कम से कम ११०० बार जाप करना चाहिए तथा विशेष सिद्धि के लिए विशेष जाप की आवशकता होती है।सामान्य भक्तजन न्यूनतम सुबह शाम इस महा मंत्र का जाप १०८-१०८ बार करें तो उनके घर से रोग, कलह, दरिद्रता का नाश होता है।
सप्तमी तिथि देवी पूजा-त्रिपुरभैरवी 6 जुलाई 2022,बुधवार
सातवें दिन की महा देवी माँ भैरवी स्वरुप हैं। इनकी साधना साधक को नैरित कोन की ओर मुख करके करनी चाहिए।नैरित कोण दक्षिण और पश्चिम दिशा के बीच का कोण होता है।इनका महा मंत्र -क्रीं ह्रीं भैरवी ह्रीं क्रीं स्वाहा: है। इस मंत्र का कम से कम ११०० बार जाप करना चाहिए तथा विशेष सिद्धि के लिए विशेष जाप की आवशकता होती है।सामान्य भक्तजन न्यूनतम सुबह शाम इस महा मंत्र का जाप १०८-१०८ बार करें तो दुष्टों का नाश होता है तथा अकाल मृत्यु , दुष्टात्मा के प्रभाव से बचाव होता है।
अष्टमी तिथि देवी कमला -7 जुलाई 2022, बृहस्पतिवार
आठवां दिन की महा देवी माँ कमला स्वरुप हैं। इनकी साधना साधक को आकाश की ओर मुख करके करनी चाहिए।इनका महा मंत्र – क्रीं ह्रीं कमला ह्रीं क्रीं स्वाहा: है। इस मंत्र का कम से कम ११०० बार जाप करना चाहिए तथा विशेष सिद्धि के लिए विशेष जाप की आवशकता होती है।सामान्य भक्तजन न्यूनतम सुबह शाम इस महा मंत्र का जाप १०८-१०८ बार करें। माँ कमला का जाप दसो महाविद्या में सबसे श्रेष्ठ बताया गया है। इनका जाप करने वाले जीवन में कभी भी दरिद्र नही होते। शास्त्रों में कहा गया है की जो माँ कमला की साधना करते हैं उन्हे सभी प्रकार के भौतिक सुख प्राप्त होते हैं।
नवमी तिथि देवी मातंगी -8 जुलाई 2022,शुक्रवार
नौवे दिन की महा देवी माँ मातंगी स्वरुप हैं। इनकी साधना साधक को पृथ्वी की ओर मुख करके करनी चाहिए। इनका महा मंत्र – क्रीं ह्रीं मातंगी ह्रीं क्रीं स्वाहा: है। इस मंत्र का कम से कम ११०० बार जाप करना चाहिए तथा विशेष सिद्धि के लिए विशेष जाप की आवशकता होती है।सामान्य भक्तजन न्यूनतम सुबह शाम इस महा मंत्र का जाप १०८-१०८ बार करें। माँ मातंगी का जाप ऐसे व्यक्ति को करना चाहिए जिनके जीवन में माता के प्रेम की कमी हो अथवा उनकी माता को कोई कष्ट हो। जो किसान आकाल या बाढ़ से पीड़ित होते है वे भी माँ मातंगी का अगर सामूहिक रूप से जाप करे तो अकाल या बढ़ का प्रभाव कम होता है।
दशवां दिन- देवी भुवनेश्वरी नवरात्रि का पारण-9 जुलाई 2022,शनिवार
दसवां दिन की महा देवी माँ भुवनेश्वरी स्वरुप हैं। इनकी साधना साधक को पूरब की ओर मुख करके करनी चाहिए।
इनका महा मंत्र क्रीं ह्रीं भुवनेश्वरी ह्रीं क्रीं स्वाहा। इस मंत्र का कम से कम ११०० बार जाप करना चाहिए तथा विशेष सिद्धि के लिए विशेष जाप कीआवशकता होती है। सामान्य भक्तजन न्यूनतम सुबह शाम १०८ -१०८ बार इस मंत्र का जाप करें तो भुवन के सभी प्रकार की सुख सुविधाएँ उसे प्राप्त होती हैं तथा दरिद्र व्यक्तियों का इनकी आराधना करना सबसे उचित माना गया है।
तंत्र के क्षेत्र में सबसे प्रभावी हैं दस महाविद्या। उनके नाम हैं-काली, तारा, षोडषी, भुवनेश्वरी, भैरवी, छिन्नमस्ता, धूमावती, बगला, मातंगी और कमला। गुण और प्रकृति के कारण इन सारी महाविद्याओं को दो कुल-कालीकुल और श्रीकुल में बांटा जाता है। साधकों का अपनी रूचि और भक्ति के अनुसार किसी एक कुल की साधना में अग्रसर हों। ब्रह्मांड की सारी शक्तियों की स्रोत यही दस महाविद्या हैं। इन्हें शक्ति भी कहा जाता है। मान्यता है कि शक्ति के बिना देवाधिदेव शिव भी शव के समान हो जाते हैं। भगवान विष्णु की शक्ति भी इन्हीं में निहित हैं। सिक्के का दूसरी पहलू यह भी है कि शक्ति की पूजा शिव के बिना अधूरी मानी जाती है। इसी तरह शक्ति के विष्णु रूप में भी दस अवतार माने गए हैं। किसी भी महाविद्या के पूजन के समय उनकी दाईं ओर शिव का पूजन ज्यादा कल्याणकारी होता है। अनुष्ठान या विशेष पूजन के समय इसे अनिवार्य मानना चाहिए।
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