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पौड़ी गढ़वाल : हर सच्चे मन की मनोकामना पूरी करने वाली माँ ज्वाल्पा देवी की पौराणिक कहानी

तान्या रावत 

उत्तराखण्ड की पवित्र धरा में आपको कदम कदम पर वो मंदिर दिखेंगे, जिनके रहस्यों और कहानियों का कोई अंत नहीं। आज हम आपको उत्तराखण्ड के एक ही ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसके बारे में कहा जाता है कि यहां माँ भगवती के जो एक बार दर्शन कर ले फिर वो खाली हाथ नहीं लौटता। यहां पौड़ी-कोटद्वार मार्ग पर नयार नदी के किनारे स्थित है माँ ज्वाल्पा देवी का मंदिर। माँ ज्वाल्पा देवी का पौराणिक महत्व विशाल है। इस पवित्र धाम के बारे में कहा जाता है कि यहां सच्चे मन से माँ भगवती की आराधना करने पर मन की हर इच्छा पूरी होती है। माँ ज्वालपा भगवती थपलियाल और बिष्ट लोगों की कुलदेवी हैं। माँ ज्वाल्पा देवी की सदैव अपने भक्तों पर विशेष अनुकंपा रहती है। 


ज्वाल्पा देवी मंदिर की स्थापना 
माँ ज्वाल्पा देवी मंदिर के मुख्य शक्तिपीठों में से एक है। यह मंदिर पौड़ी-कोटद्वार सड़क मार्ग से 200 मीटर नीचे नयार नदी के किनारे स्थित है। इस मंदिर की शोभा देखते ही बनती है। यह मंदिर माता पार्वती का मुख्य रूप “माँ दुर्गा” को समर्पित है। इसकी स्थापना वर्ष 1892 में हुई थी। मंदिर की स्थापना स्व. दत्तराम अण्थवाल और उनके पुत्र बूथा राम अण्थवाल ने की। सदियों से इस मंदिर में माता ज्वाल्पा, एक ज्योत (दीप) के रूप में स्थित है जो दिन रात जलती रहती है। मंदिर परिसर में यज्ञ कुंड भी है। माँ के धाम के आस-पास हनुमान मंदिर, शिवालय, काल भैरव मंदिर, माँ काली मंदिर भी स्थित हैं। वहीं, केदार खंड के मानस खंड में कहा गया है कि इस स्थान पर दानव राज पुलोम की पुत्री सुची ने भगवान इंद्र को वर के रूप में पाने के लिए माँ भगवती की कठोर तपस्या की थी। सूची के तप से माँ ने खुश होकर ज्वाला के रूप में उन्हें दर्शन दिए। तब से माँ ज्वाल्पा अखंड ज्योति के रूप में अपने सभी भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण करती है।

ज्वाल्पा देवी की पौराणिक कहानी :-

केदारखन्ड एवं स्कन्द-पुराण के अनुसार सतयुग में एक दैत्य हुआ करता था जिसका नाम पुलोम था। दैत्य पुलोम की एक कन्या शची थी। जो मन ही मन मे देवताओं के राजा इन्द्र को पति के रुप में पाने की इच्छा रखने लगी, और इसी प्रबल इच्छा को पूरी करने के लिए वह “ज्वालपाधाम” में हिमालय की “अधिष्ठात्री देवी पार्वती” की तपस्या वर्तमान स्थित ज्वाल्पा धाम मे करने लगी। माँ पार्वती ने शची की तपस्या से प्रसन्न होकर उसे दीप्त ज्वालेश्वरी (एक तीव्र ज्योति) के रूप में दर्शन दिये और साथ ही उन्हें इंद्रदेव की पत्नी होने के वरदान के साथ ये भी वर दिया की आज के बाद जो कोई भी इस धाम में सच्चे मन से वर कामना लेके आयेगा उसकी यह इच्छा जरूर पूरी होगी। तबसे देवी पार्वती का “दैदीप्यमान ज्वालपा” के रूप में प्रकट होने के प्रतीक स्वरूप अखण्ड दीपक निरंतर मन्दिर में प्रज्वलित रहता है। इसी दिव्य महत्त्व के कारण  ज्वाल्पा देवी मन्दिर नवविवाहितों के लिए खास माना जाता है और यहां अविवाहित कन्याएं सुयोग्य वर की कामना लेकर आते हैं। यह मन्दिर वर्तमान मे विवाह के लिए भी बहुत प्रसिद्ध है जहा आसपास के क्षेत्रों के लोग आकर माता के मन्दिर में विवाह करते हैं तथा माता ज्वालपा का आशीर्वाद पाते हैं।

बता दें, इस पुण्य परम्परा को चलाये रखने के लिए, नजदीकी पट्टीयों मवाल्सयूँ, कफोलस्यु, खातस्यू, रिनवाडस्यू, आदि के गावों से तेल एकत्रित किया जाता है और माँ के अखंड दीप को जलाए रखने की व्यवस्था की जाती है। कहते हैं कि गढ़वाल राजवंश ने इस मंदिर को 20 एकड़ से अधिक जमीन दी है।

ज्वाल्पा मंदिर से जुड़ीं स्थानीय लोक कथा :-

माता ज्वाल्पा की मूर्ति स्थापना की एक स्थानीय दंतकथा भी प्रचलित है जिसके अनुसार यह स्थल प्राचीनकाल में अमेटी के नाम से विख्यात था।अमेटी आस पास के गावों वालों का इधर उधर जाते समय विश्राम करने का स्थल था। अर्थात पहले लोग पैदल ही जाते थे, तब लोग थोड़ी देर यहां पर बैठ कर जाते थे। एक बार कफोला बिष्ट नामक व्यक्ति नमक का कट्टा लेकर यहाँ पर आया। उसने थोड़ी देर विश्राम के लिए यहाँ रुक गया और अपने नमक के कट्टे के ऊपर कब उसकी आंख लग गई पता भी नही चला। जब उसकी आंख खुली तो उसने अपना कट्टा उठाया, लेकिन उठा नही पाया। जब उसने कट्टा खोल के देखा तो उसमें माता की मूर्ति थी। वह उस मूर्ति को वही छोड़कर भाग गया। तब बाद में नजदीकी गाव अणेथ गाव के दत्ताराम नामक व्यक्ति को सपने में माता ने दर्शन और वही मंदिर बनाये जाने की इच्छा जताई।


कैसे पहुंचे ज्वाल्पा देवी मंदिर 

माँ ज्वाल्पा देवी मंदिर तक पहुंचने के लिए सड़क मार्ग सबसे प्रचलित मार्ग है। ज्वाल्पा देवी पौड़ी से करीब 30 किमी और कोटद्वार से लगभग 72 किमी दूरी पर कोटद्वार-पौड़ी राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित है। जहां कोटद्वार-सतपुलि-पाटीसैण और श्रीनगर-पौड़ी-परसुंडाखाल होते हुए पहुंचा जा सकता है। राजमार्ग से मात्र 200 मीटर नीचे उतरकर माँ का दिव्य धाम है। 

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