तान्या रावत
ज्वाल्पा देवी की पौराणिक कहानी :-
केदारखन्ड एवं स्कन्द-पुराण के अनुसार सतयुग में एक दैत्य हुआ करता था जिसका नाम पुलोम था। दैत्य पुलोम की एक कन्या शची थी। जो मन ही मन मे देवताओं के राजा इन्द्र को पति के रुप में पाने की इच्छा रखने लगी, और इसी प्रबल इच्छा को पूरी करने के लिए वह “ज्वालपाधाम” में हिमालय की “अधिष्ठात्री देवी पार्वती” की तपस्या वर्तमान स्थित ज्वाल्पा धाम मे करने लगी। माँ पार्वती ने शची की तपस्या से प्रसन्न होकर उसे दीप्त ज्वालेश्वरी (एक तीव्र ज्योति) के रूप में दर्शन दिये और साथ ही उन्हें इंद्रदेव की पत्नी होने के वरदान के साथ ये भी वर दिया की आज के बाद जो कोई भी इस धाम में सच्चे मन से वर कामना लेके आयेगा उसकी यह इच्छा जरूर पूरी होगी। तबसे देवी पार्वती का “दैदीप्यमान ज्वालपा” के रूप में प्रकट होने के प्रतीक स्वरूप अखण्ड दीपक निरंतर मन्दिर में प्रज्वलित रहता है। इसी दिव्य महत्त्व के कारण ज्वाल्पा देवी मन्दिर नवविवाहितों के लिए खास माना जाता है और यहां अविवाहित कन्याएं सुयोग्य वर की कामना लेकर आते हैं। यह मन्दिर वर्तमान मे विवाह के लिए भी बहुत प्रसिद्ध है जहा आसपास के क्षेत्रों के लोग आकर माता के मन्दिर में विवाह करते हैं तथा माता ज्वालपा का आशीर्वाद पाते हैं।
ज्वाल्पा मंदिर से जुड़ीं स्थानीय लोक कथा :-
माता ज्वाल्पा की मूर्ति स्थापना की एक स्थानीय दंतकथा भी प्रचलित है जिसके अनुसार यह स्थल प्राचीनकाल में अमेटी के नाम से विख्यात था।अमेटी आस पास के गावों वालों का इधर उधर जाते समय विश्राम करने का स्थल था। अर्थात पहले लोग पैदल ही जाते थे, तब लोग थोड़ी देर यहां पर बैठ कर जाते थे। एक बार कफोला बिष्ट नामक व्यक्ति नमक का कट्टा लेकर यहाँ पर आया। उसने थोड़ी देर विश्राम के लिए यहाँ रुक गया और अपने नमक के कट्टे के ऊपर कब उसकी आंख लग गई पता भी नही चला। जब उसकी आंख खुली तो उसने अपना कट्टा उठाया, लेकिन उठा नही पाया। जब उसने कट्टा खोल के देखा तो उसमें माता की मूर्ति थी। वह उस मूर्ति को वही छोड़कर भाग गया। तब बाद में नजदीकी गाव अणेथ गाव के दत्ताराम नामक व्यक्ति को सपने में माता ने दर्शन और वही मंदिर बनाये जाने की इच्छा जताई।
कैसे पहुंचे ज्वाल्पा देवी मंदिर
माँ ज्वाल्पा देवी मंदिर तक पहुंचने के लिए सड़क मार्ग सबसे प्रचलित मार्ग है। ज्वाल्पा देवी पौड़ी से करीब 30 किमी और कोटद्वार से लगभग 72 किमी दूरी पर कोटद्वार-पौड़ी राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित है। जहां कोटद्वार-सतपुलि-पाटीसैण और श्रीनगर-पौड़ी-परसुंडाखाल होते हुए पहुंचा जा सकता है। राजमार्ग से मात्र 200 मीटर नीचे उतरकर माँ का दिव्य धाम है।
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