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आज है पारंपरिक घी संक्रांति पर्व, जानें कब और क्यों मनाते हैं घी संक्रांति पर्व

उत्तर नारी डेस्क

उत्तराखण्ड को देवभूमि कहा जाता है। परन्तु उत्तराखण्ड देवों की भूमि होने के साथ ही त्योहारों की भूमि भी कही जाती है। आज उत्तराखण्ड में घी संक्रांति त्योहार मनाया जा रहा है। जिसका सीधा संबंध प्रकृति से है। जी हाँ आपको बता दें भाद्रपद महीने की सक्रांति को ये त्योहार मनाया जाता है। घी एक ऐसा तत्व है, जो शरीर में ऊर्जा का संचार करता है। स्मरण शक्ति को बढ़ाता है, बुद्धि, बल, ओजस्वी बनाता है।

घी त्यार या घृत संक्रांति फसलों में घी के आगमन का प्रतीक है। यानी हमारी फसलें हमें तेजस्वी, ओजस्वी, शौर्यवान, बुद्धिवान और बलवान बनाएं, इस वजह से हम इस पर्व को मनाते हैं। यह त्यौहार ‘ओलगिया’ नाम से भी जाना जाता है। इस दिन घी, दही, दूध का बहुत महत्व होता है। इस दिन प्रत्येक पकवान में घी का प्रयोग किया जाता है। इस दिन का मुख्य व्यंजन बेडू की रोटी है। (जो उरद की दाल भिगो कर, पीस कर बनाई गई पिट्ठी से भरवाँ रोटी बनती है) और घी में डुबोकर खाई जाती है। अरबी के बिना खिले पत्ते जिन्हें गाबा कहते हैं, उसकी सब्जी बनती है।”

घी संक्रांति का महत्व

घी संक्रांति देवभूमि उत्तराखण्ड में सभी लोक पर्वों की तरह प्रकृति एवं स्वास्थ्य को समर्पित पर्व है। इस दिन पूजा पाठ करके अच्छी फसलों की कामना की जाती है। अच्छे स्वास्थ के लिए, घी एवं पारम्परिक पकवान हर घर में बनाए जाते हैं। उत्तराखण्ड की लोक मान्यता के अनुसार इस दिन घी खाना जरूरी होता है। लोककथा के अनुसार कहा जाता है कि जो इस दिन घी नही खाता है, उसे अगले जन्म में घोंघा (गनेल) बनना पड़ता है। इसलिए लोग इस पर्व के लिए घी की व्यवस्था पहले से ही करके रखते हैं। 

मुख्यमंत्री ने घी संक्रांति पर दी शुभकामना

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने प्रदेशवासियों को घी संक्रांति की शुभकामना दी है। मुख्यमंत्री ने कहा कि हमारे पारंपरिक लोकपर्व सांस्कृतिक विरासत का मजबूत आधार होते हैं। घी संक्रांति राज्य का प्रमुख लोकपर्व होने के साथ ही अच्छी फसलों तथा अच्छे स्वास्थ्य की कामना से जुड़ा पर्व भी है। हमारे पर्व हमें अपनी संस्कृति एवं प्रकृति से जुड़ने की प्रेरणा देते हैं। इन पर्वों की परंपरा से भावी पीढ़ी को जागरूक करना जिम्मेदारी है।

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