उत्तर नारी डेस्क
नमस्यामि सदा तेषां ध्यानिनां दिव्यचक्षुषाम् ।।
पितृपक्ष में पितरों की आत्मसंतुष्टि के लिए श्रद्धापूर्वक जो कुछ भी किया जाता है, उसे श्राद्ध कहते हैं. श्रद्धा का अर्थ है विश्वास. इस वर्ष पितरों का श्राद्ध कर्म 10 सितंबर से 25 सितंबर तक रहेगा. श्राद्ध पितरों की तिथि के अनुसार किया जाता है. लेकिन बड़ा सवाल यह है कि श्राद्ध किसी को करना चाहिए या महिलाओं को श्राद्ध करना चाहिए. आइए जानते हैं-
क्या महिलाएं पिंड दान दे सकती है?
बहुत सारे लोगों के पुत्र नहीं होते हैं या उम्र से पहले स्वर्गवास हो जाते हैं तो ऐसे परिवार में स्त्री भी पिंडदान कर सकती है. आज समाज में बहुत सारे धर्म ग्रंथों में स्पष्ट लिखा है समय के अनुसार सभी परिवर्तन करना पड़ता है शिवज्योति जाग्रति संस्थान उन सभी परिवारों को अवगत कराएगी जिनके पुत्र ना होने के कारण या स्वर्गवास होने के कारण अवश्य उन परिवारों में महिला पिंड दान करें धर्म सिंधु ग्रंथ के साथ ही मनुस्मृति, मार्कंडेय पुराण और गरुड़ पुराण में भी बताया गया है कि महिलाओं को तर्पण और पिंडदान करने का अधिकार है. इनके अलावा वाल्मीकि रामायण में भी बताया गया है कि सीताजी ने राजा दशरथ के लिए पिंडदान किया था. गरुड़ पुराण: श्राद्ध और पिंडदान पुरुषों के द्वारा ही किया जाता है, लेकिन कुछ विशेष स्थितियों में महिलाएं भी श्राद्ध और पिंडदान कर सकती हैं.
गरुड़ पुराण: गरुड़ पुराण में श्राद्ध का विशेष महत्व बताया गया है. श्राद्ध के जरिए हम अपने पूर्वजों के किए अहसान के प्रति अपना सम्मान व्यक्त करते हैं. कहा जाता है कि जिस घर में पितरों की श्राद्ध श्रद्धापूर्वक की जाती है, वहां परिवार फलता-फूलता है. परिवार में यश, कीर्ति, सफलता, संतान और धन-धान्य आदि बना रहता है. पितर संतुष्ट होते हैं और अपने बच्चों को आशीर्वाद देते हैं. श्राद्ध पितरों के प्रति श्रद्धा और कृतज्ञता अभिव्यक्त करने तथा उन्हें याद करने के लिए किया जाता है. यह पूर्वजों के प्रति सम्मान होता है. मान्यता है कि इसी से पितृ ऋण भी चुकता होता है. श्राद्ध कर्म से पितृगण के साथ देवता भी तृप्त होते हैं. श्राद्ध के बारे में अक्सर ये कहा और सुना जाता है कि केवल पुत्र ही श्राद्ध कर सकता है.पुत्र नहीं तो पुत्री करती है श्राद्ध और पिंडदान ये सवाल उठता है कि जिस व्यक्ति का कोई पुत्र नहीं है, उसका श्राद्ध कौन करेगा? गरुड़ पुराण के अनुसार ऐसी स्थिति में महिलाएं अपने पितरों का श्राद्ध अथवा पिंडदान कर सकती हैं. गरुड़ पुराण में इस बात का स्पष्ट उल्लेख है कि जिस किसी इंसान का कोई पुत्र नहीं है और उनकी संतान कन्या है. ऐसी स्थिति में कन्याएं अपने पितरों के निमित्त श्राद्ध और पिंडदान करती हैं. अगर कन्याएं श्रद्धापूर्वक ढंग से अपने पितरों के निमित्त श्राद्ध और पिंडदान करती हैं, तो पितर उसे स्वीकार कर लेते हैं और कन्या को आशीर्वाद देते हैं. गरुड़ पुराण में कहा गया है कि बहु या फिर पत्नी भी श्राद्ध अथवा पिंडदान कर सकती हैं.
महिलाएं श्राद्ध करते समय रखें इसका ध्यान
जानकारों के अनुसार महिलाएं श्राद्ध कर्म करते समय कुछ विशेष बातों का ध्यान रखें. श्राद्ध करते समय महिलाएं केवल सफेद अथवा पीले सादे वस्त्र धारण करके ही श्राद्ध कर्म करें, क्योंकि सफेद शांति का और पीला रंग वैराग्य का प्रतीक है. श्राद्ध करते समय कुश और जल के साथ तर्पण न करें. साथ ही काले तिल से भी तर्पण न करें। ऐसा करने का महिलाओं को अधिकार नहीं है. ध्यान रखें कि केवल विवाहित महिलाएं ही श्राद्ध करने की पात्र हैं. यदि पूर्वजों की तिथि याद नहीं है तो बच्चे का पंचमी को, बुजुर्ग महिला और पुरुष का नवमी को श्राद्ध किया जा सकता है.
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