उत्तर नारी डेस्क
चारधामों की रक्षक देवी आखिरकार नौ सालों के लंबे इंतजार के बाद आज अपने मूल स्थान पर विराजमान हो गई। सिद्धपीठ मां धारी देवी की प्रतिमा शिफ्टिंग की प्रक्रिया पहले ही शुरू हो गई थी। इसके लिए 24 जनवरी से महानुष्ठान भी शुरू हो गया था, जो कि 28 जनवरी तक जारी रहा। महानुष्ठान के लिए 21 पंडितों को आमंत्रित किया गया। आज 28 जनवरी की सुबह शुभ मुहूर्त में धारी देवी, भैरवनाथ और नंदी की प्रतिमाएं अस्थायी परिसर से नवनिर्मित मंदिर परिसर में स्थापित की गई।
आपको बता दें, उत्तराखण्ड राज्य की रक्षा कर रही मां धारी देवी पौड़ी गढ़वाल जिले के श्रीनगर से करीब 14 किलोमीटर की दूरी पर अलकनंदा नदी के तट पर स्थित है। वहीं, मंदिर के पुजारी न्यास की ओर से 28 जनवरी को मूर्ति शिफ्टिंग के लिए शुभ मूहर्त निकाला गया, लेकिन इस बीच बड़ा संशय लोगों के मन में बना हुआ था कि अगर एक बार फिर मां धारी देवी की मूर्ति के साथ छेडछाड़ की गई, तो क्या 2013 जैसी प्रलय का लोगों को सामना करना पड़ेगा।
गौरतलब है कि साल 2013 में उत्तराखण्ड में आई भीषण आपदा के पीछे की वजह लोग देवी को मानते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि स्थानीय लोग इसका बड़ा कारण मां धारी देवी की मूर्ति को मूल स्थान से हटाना मानते हैं। जानकारी के अनुसार मां धारी देवी का मंदिर वाला क्षेत्र श्रीनगर जल विद्युत परियोजना के निर्माण के बाद डूब रहा था। जिसके बाद परियोजना संचालित करने वाली कंपनी ने पिलर खड़े कर मंदिर का निर्माण करवाया था और देवी की मूर्ति को जलस्तर को देखते हुए उनके मूल स्थान से हटाया गया था। उसके महज कुछ ही घंटों बाद ही 16 जून 2013 में केदारनाथ भयंकर आपदा आई थी, जिसमें सैकड़ों लोग काल के गाल में समा गए थे।
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