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उत्तराखण्ड में नजर आई विलुप्त हो चुकी दुर्लभ उड़न गिलहरी, जानें इसकी ख़ास बात

उत्तर नारी डेस्क


उत्तराखण्ड के सोमेश्वर क्षेत्र के फलटा चनोली गांव में करीब 70 वर्षों से विलुप्त हो चुकी वूली गिलहरी दिखाई दी है। बता दें, यह अद्भुत पक्षी कांटों वाले तारों में फंसा हुआ था। जिसे ग्रामीणों द्वारा देखा गया। जिसकी सूचना राहुल नयाल ने सबको दी। जिसको देखने के लिए गांव के लोग जंगल की ओर पहुंचे और  युवाओं ने रेस्क्यू कर उसे कांटों के तार से बचाया। इसके बाद उड़ने में सक्षम वूली गिलहरी ने ऐड़ाद्यो कूप जंगल की ओर उड़ान भर दी।  जब गूगल में सर्च किया तो जानकारी मिली की यह वूली गिलहरी है, जो करीब 70 वर्ष पहले विलुप्त हो चुकी थी। हालांकि विलुप्त होने के बाद 2004 में पाकिस्तान के साईं घाटी में यह गिलहरी दिखाई दी थी। इसके बाद देहरादून वाइल्ड लाइफ इंडस्ट्री वैज्ञानिकों ने उत्तरकाशी में विलुप्त वूली गिलहरी मादा देखी। अब सोमेश्वर के चनोली में भी इसे देखा गया। माना जा रहा है कि वूली गिलहरी का दिखना जैव विविधता के लिए बेहतर संकेत माने जा रहे हैं। 

एक रिपोर्ट के अनुसार यह गिलहरी ओक, देवदार और शीशम के पेड़ों पर अपने घोंसले बनाती हैं। ये गिलहरियां भूरे रंग की होती हैं। यह गिलहरी इसलिए भी खास है क्योंकि यह उड़ सकती है। इसलिए इसका नाम उड़न गिलहरी है। इसका शरीर ऊन की तरह झब्बेदार होता है। इसे ऊनी उड़न गिलहरी भी कहा जाता है। यह अधिकतम एक बार में 40 फुट तक उड़ सकती हैं। साधारण गिलहरियों के मुकाबले इनका आकार एक फुट तक ज्यादा होता है। पूरे भारत में उड़न गिलहरियों की लगभग 12 प्रजातियां पाई जाती हैं। 

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