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देवभूमि उत्तराखण्ड में स्थित माता के 11 सिद्धपीठ, यहां होती है मनोकामनाएं पूरी

उत्तर नारी डेस्क 

आज 15 अक्टूबर से शारदीय नवरात्रि 2023 की शुरुआत हो गई है, जो कि 23 अक्टूबर तक रहेगी। ऐसे में पूरे 9 दिन माता रानी हम सब के बीच में रहेंगी। शरदीय नवरात्रि में शक्ति देवी के नौ रूपों की उपासना होती है। ये  महालक्ष्‍मी, सरस्‍वती और दुर्गा के नौ रूप हैं। जिसमें नंदा देवी, शैलपत्री, रक्‍तदंतिका, शाकम्‍भरी, दुर्गा, भीमा और भ्रामरी नवदुर्गा समेत अन्‍य नाम से जाना जाता है। जैसे ही आप सब जानते है कि उत्तराखण्ड को देवभूमि कहा जाता है। यहां कहीं पर्वत शिखर पर तो कहीं नदी के तट पर मां दुर्गा अलग-अगल रूपों में विराजती हैं और ये स्थान सिद्धपीठ के रूप में जाने जाते हैं। ये स्थान सिद्धपीठ इसलिए कहलाते हैं क्योंकि यहां भक्तों की मनोकामनाएं माता पूरी करती हैं। यहां ऐसे ही 11 सिद्धपीठों की बात हम करने जा रहे हैं जहां नवरात्र में जाकर आप अपनी मनोकामनाएं पूरी कर सकते हैं। 


1. मनसा देवी मंदिर, हरिद्वार 
हरिद्वार शहर में शिवालिक पर्वत श्रृंखलाओं के मुख शिखर पर स्थित मां मनसा देवी मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है। मनसा का शाब्दिक अर्थ है इच्छा पूर्ण करने वाली देवी। मनसा देवी को भगवान शिव की मानस पुत्री कहा जाता है। इनका प्रादुर्भाव मस्तक से हुआ है इसलिए इनका नाम मनसा पड़ा। इन्हें नागराज वासुकी की बहन के रूप में भी पूजते हैं। 

कहते हैं कि मां मनसा देवी के दर्शन करने से आपके सभी कष्ट और पीड़ाएं दूर हो जाती है। जो भी व्यक्ति मां के मंदिर में आता है वह अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए मंदिर परिसर में स्थित पेड़ की शाखाओं में धागा बांधते हैं। एक बार जब उनकी मनोकामना पूरी हो जाती है तो लोग पेड़ से धागा खोलने के लिए दोबारा इस मंदिर में आते हैं।

2. दूनागिरी मंदिर, द्वाराहाट
मां दूनागिरि मंदिर द्वाराहाट से करीब 14 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस भव्य मंदिर में मां दूनागिरि वैष्णवी रूप में पूजी जाती हैं। वैष्णो देवी शक्तिपीठ के बाद दूनागिरी मन्दिर को दूसरा वैष्णों देवी शक्तिपीठ कहा जाता हैं। 

मान्यता है कि मां भगवती के इस पावन धाम में माँ की दो पिण्डियॉ और महादेव माता पार्वती के साथ विराजमान हैं। 

3. मां पूर्णागिरि मंदिर (चंपावत)
मां पूर्णागिरि मंदिर टनकपुर से लगभग 21 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। मंदिर को शक्तिपीठ माना जाता है और यह 108 सिद्ध पीठों में से एक है। पूर्णागिरि में माँ की पूजा महाकाली के रूप में की जाती है। पूर्णागिरि का मंदिर काली नदी के दाएं ओर स्थित है। 

पौराणिक कथाओं के अनुसार जब माता सती ने आत्मदाह किया, तब भगवान शिव माता की मृत देह लेकर सारे ब्रह्मांड में तांडव करने लगे। भगवान विष्णु ने संसार की रक्षा के लिए माता सती की पार्थिव देह को अपने सुदर्शन चक्र से नष्ट करना शुरू किया। सुदर्शन चक्र से कट कर माता सती के शरीर का जो अंग जहाँ गिरा, वहाँ माता का शक्तिपीठ स्थापित हो गया। इस प्रकार माता के कुल 108 शक्तिपीठ हैं। मान्यता है कि चंपावत के अन्नपूर्णा पर्वत पर माता सती की नाभि भाग गिरा, पूर्णागिरि मंदिर की स्थापना हुई। नवरात्रि के दौरान बड़ी संख्या में भक्त यहां दर्शन के लिए आते हैं।

4. नंदा देवी मंदिर, कुरुड़ (चमोली)
कुरुड़ में मां नंदा देवी का मंदिर गांव के शीर्ष पर देवसरि तोक पर स्थित है। यहां मां नंदा देवी अपने चतुर्भुज शिलामूर्ति के रूप में विराजमान है। कुरुड़ धाम में मां नंदा देवी की डोली दो रूपों में निवास करती है। मां नंदा कुरुड़-मां नंदा कुरुड़-दशोली की डोली व राजराजेश्वरी की डोली। उत्तराखण्ड में मां नंदा को बहन, मां, बेटी के रूप में पूजा जाता है। सिद्धपीठ कुरुड़ में नवरात्रों पर सुबह-शाम मां नंदा देवी की पूजा अर्चना होती है। श्रद्धालुओं के लिए दिनभर मंदिर के कपाट खुले रहते हैं। यह मंदिर सालभर पूजा अर्चना के लिए खुला रहता है।

5- अखिलतारिणी मन्दिर (लोहाघाट, चम्पावत)
मां अखिलतारणी मंदिर को उप शक्तिपीठ माना जाता है जो घने हरे देवदार वनों के बीच में स्थित है। मान्यता के अनुसार यहां पांडवों ने घटोत्कच का सिर पाने के लिए मां भगवती से प्रार्थना की थी।

6- चैती बाल सुंदरी मंदिर (काशीपुर)
माता चैती (बाल सुंदरी) मंदिर काशीपुर में स्थित है। यहां चैती मेला के नाम से चैत्र मास में प्रसिद्ध मेला लगता है। आदिशक्ति की बाल रूप में पूजा होने के कारण इसे बाल सुंदरी मंदिर कहा जाता है।

7- नैना देवी मंदिर, नैनीताल
नैना देवी मंदिर नैनीताल में नैनी झील के उत्तरी किनारे पर स्थित है। इस पवित्र मंदिर में देवी को उनकी दो आंखों से दर्शाया गया है। यहां सती के शक्ति रूप की पूजा की जाती है। 

हिंदू धर्मग्रंथ में नैना देवी मंदिर का ऐतिहासिक महत्व है। 51 शक्ति पीठों में से एक के रूप में माना जाने वाला ये मंदिर, वो जगह है जहां देवी सती की आंखें गिरी थीं। इसलिए यहां देवी की आंखों के रूप में पूजा की जाती है। 

8- कसार देवी मंदिर, अल्मोड़ा
अल्मोड़ा में कसार पर्वत पर स्थित कसार देवी मंदिर अद्वितीय और चुंबकीय शक्ति का केंद्र माना जाता है। यहां देवी मां साक्षात अवतार में आई थीं। कहते हैं कि भारत की ये एक एकलौती ऐसी जगह है, जहां चुंबकीय शक्तियां मौजूद हैं। मंदिर के आसपास कई जगह हैं, जहां धरती के अंदर बड़े-बड़े भू-चुंबकीय पिंड हैं।

9- चण्डी देवी, हरिद्वार
धर्मनगरी हरिद्वार में प्रख्यात मां चंडी देवी का मंदिर नील पर्वत के शिखर पर स्थित है। यह प्रसिद्ध शक्तिपीठों में से एक है। मान्यता है कि इस मंदिर की मूर्ति को महान संत आदि शंकराचार्य ने आठवीं शताब्दी में स्थापित किया था।

10- चन्द्रबदनी मंदिर, देवप्रयाग
देवप्रयाग में स्थित मां चन्द्रबदनी मंदिर शक्तिपीठों और माता सती के पवित्र स्थलों में से एक है। यह शक्तिपीठ चंद्रकूट पर्वत के ऊपर स्थित है। चंद्रबदनी मंदिर में सती के धड़ की पूजा की जाती है, हालांकि श्रद्वालुओं को धड़ के दर्शन नहीं कराए जाते हैं। यहां माता की मूर्त नहीं यंत्र रूप में पूजा होती है। 

11- सुरकंडा देवी मंदिर, कद्दूखाल, टिहरी
सुरकंडा देवी मंदिर टिहरी क्षेत्र में सुरकुट पर्वत पर लगभग 2757 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह प्रसिद्ध शक्तिपीठों में से एक है। इस मंदिर में माता काली की प्रतिमा स्थापित है। माता सती का सिर जिस स्थान पर गिरा उसे सिरकंडा कहा गया है। यही सिरकंडा आगे चलकर सुरकंडा के नाम से प्रसिद्ध हुआ। 




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