उत्तर नारी डेस्क
मुझे खुशी है कि महिला फिल्म निर्देशक सृष्टि लखेरा ने ‘एक था गांव’ नामक अपनी पुरस्कृत फिल्म में एक 80 साल की वृद्ध महिला की संघर्ष करने की क्षमता का चित्रण किया है। महिला चरित्रों के सहानुभूतिपूर्ण और कलात्मक चित्रण से समाज में महिलाओं के प्रति संवेदनशीलता और सम्मान में वृद्धि… pic.twitter.com/hefrB7WCEZ
— President of India (@rashtrapatibhvn) October 17, 2023
जैसा कि फिल्म के नाम से ही पता लग रहा है फिल्म उत्तराखण्ड की सबसे बड़ी समस्या, पलायन को दर्शा रही है। वह गांव जो कभी लोगों से आबाद हुआ करता था, अब पूरी तरह से सूना पड़ गया है। इस फिल्म में पहाड़ों की मौजूदा हकीकत और घोस्ट विलेज की कहानियों को दिखाया गया है। साथ ही इस फिल्म में पयायन और पहाड़ से जुड़े दूसरे मुद्दों को भी दिखाया गया है।
पलायन के मौजूदा हालातों को बयां करती फिल्म "एक था गांव"
एक था गांव फिल्म एक बुजुर्ग और एक किशोर पर आधारित फिल्म है। इसमें पहाड़ की कठिनाइियों से साथ ही मौजूदा हालातों को बयां किया गया है। इसमें 80 वर्षीय लीला देवी और 19 वर्षीय गोलू मुख्य भूमिका में हैं। बुजुर्ग लीला गांव में अकेली रहती है। इसकी बेटी की शादी हो चुकी है, जो देहरादून जाने की जिद करती है।
लीला इसके लिए तैयार नहीं होती। उसे अपने गांव से प्यार है। जिसके कारण वह यहां रहना चाहती है। वहीं, इस फिल्म का दूसरा किरदार गोलू पहाड़ों से निकलकर अपना जीवन जीना चाहती है। उसे पहाड़ों में कोई भविष्य नजर नहीं आता। जिसके कारण वह मैदानों की ओर जाना चाहती है। फिल्म में आखिर में लीला मजबूरी में देहरादून चली आती है। गोलू भी पढ़ाई के लिए मैदानों की ओर पहुंच जाती है, जिसके कारण गांव सूना हो जाता है। इस फिल्म के माध्यम से दिखाया गया कैसे कोई या तो मजबूरी में या फिर जरूरत के लिए पहाड़ से निकलता है। जिसके कारण पहाड़ दिनों दिन खाली हो रहे हैं।