उत्तर नारी डेस्क
देवभूमि उत्तराखण्ड वन सम्पदा के क्षेत्र में बहुत ही समृद्ध है। इसके साथ ही यहां चीड़ के वन भी प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। उत्तराखण्ड में 500 से 2200 मीटर की ऊॅचाई पर यह बहुतायत से पाये जाने वाले यह चीड़ के पेड़ों की पत्तियां यानि पिरूल अक्सर जमीन में बिखरी पड़ी रहती है। जिसे बेकार समझी जाने वाली चीजों में से एक माना जाता है। जो पिरूल हमारे जंगलो के लिए कभी अभिशाप बना रहता था, तो आज कुछ हुनरमंद लोगों ने उसे अपनी मेहनत से वरदान में बदल दिया है। आज हम आपको राज्य की एक और ऐसी प्रतिभाशाली बेटी से रूबरू कराने जा रहे हैं जिसने पढ़ाई के साथ-साथ चीड़ की पत्तियों से गिरने वाले पिरूल को इस्तेमाल कर घरों में सजावट का सामान बनाकर रोजगार का साधन बनाया है। हम बात कर रहे है नैनीताल जिले के रामगढ़ ब्लॉक के ध्वेती गांव निवासी भारती जीना की। जिसने अन्य लोगों को भी स्वरोजगार की राह को अपनाने के लिए प्रेरित किया है।
बता दें, भारती जीना मूल रूप से रामगढ़ ब्लॉक के ध्वेती गांव की रहने वाली है। वह हल्द्वानी से संगीत विषय में बीए कर रही हैं। उनके पिता तेज सिंह किसान और मां कमला जीना आंगनबाड़ी केंद्र में कार्यरत हैं। भारती के द्वारा पिरूल से टोकरियां, फ्लावर पॉट समेत अन्य उत्पाद तैयार किए जा रहे हैं। ये उत्पाद सैलानियों के साथ ही स्थानीय लोगों को भी बेहद पसंद आ रहे हैं। जिससे वह अच्छी आय अर्जित कर रही है। वहीं, भारती का कहना है कि जिस पिरुल को लोग अभिषाप मानते हैं, उसे उन्होंने आय का जरिया बना लिया है। भारती ने ये अनोखी कला अपने दादा से सीखी थी। उनके द्वारा पिरुल से तैयार उत्पादों की प्रदर्शनी में भी लगाई जाती है। भारती का मानना है कि सरकार और प्रशासन के सहयोग से पिरूल के उत्पादों को बड़े स्तर पर बाजार मिल सकता है। इस के कारण स्थानीय लोगों में रोजगार भी बढ़ेगा।