उत्तर नारी डेस्क
उत्तराखण्ड को वीरों की भूमि यूं ही नहीं कहा जाता। यहां के लोकगीतों में शूरवीरों की जिस वीर गाथाओं का जिक्र मिलता है, पराक्रम के वह किस्से देश-विदेश तक फैले हैं। यह हमारे लिए गर्व की बात है कि यह देवभूमि हर साल सेना में सबसे अधिक युवाओं को भेजती है। दरअसल, उत्तराखण्डी युवाओं में देशभक्ति का जज्बा कूट-कूट कर भरा हुआ है। देश के लिए सेवा करने का जज़्बा पाले न जाने कितने ही लोग इस देवभूमि से जाते हैं और मातृभूमि की रक्षा करते हैं। और उसके बाद जब हम यह सुनते हैं कि उत्तराखण्ड की बेटियां भारतीय सेना, नौसेना, वायु सेना में बड़े पदों पर काबिज हैं तो गर्व से छाती चौड़ी हो जाती है। ऐसे ही राज्य का नाम रौशन करने वाली पहाड़ की बेटी से आज हम आप सब का परिचय कराएंगे, जो भारतीय सेना में लेफ्टिनेंट बन गई है। बता दें, अल्मोड़ा जिले के ब्लॉक द्वाराहाट के दूनागिरी क्षेत्रांतर्गत सुदूरवर्ती ग्राम पंचायत रतखाल की बेटी प्रियंका राणा बीते मंगलवार को भारतीय सेना में मिलिट्री नर्सिंग सर्विस के तहत लेफ्टिनेंट बनी हैं। प्रियंका ने पूरे गांव, ब्लॉक और जिले का नाम रोशन किया है। उनकी उपलब्धि पर परिवार और पूरे गांव में खुशी की लहर है।
मध्यम वर्ग के परिवार में जन्मीं प्रियंका के पिता केशव सिंह राणा दिल्ली की एक संस्था में कार्यरत हैं। माता नीलम राणा गृहिणी हैं। प्रियंका ने अपनी बारहवीं तक की पढ़ाई यूनिवर्सल कान्वेंट स्कूल द्वाराहाट से 2020 में पूरी की और सितंबर 2020 में उनका चयन भारतीय मिलिट्री नर्सिंग सर्विस के लिए हुआ। करीब चार साल तक इंडियन नेवल हाॅस्पिटल काॅलेज अश्वनी, मुंबई, महाराष्ट्र से बीएससी नर्सिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद बीते मंगलवार को लेफ्टिनेंट के पद पर चयनित होकर भारतीय सेना में शामिल हुईं। अब वह चंडीगढ़ कमांड हॉस्पिटल में अपनी सेवाएं देंगी। वहीं, प्रियंका के दादा स्व. दान सिंह राणा ने भी भारतीय सेना में अपनी सेवाएं दीं। उन्होंने सन 1965 और 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध भी लड़ा। सन 1971 में उन्हें सेना मेडल से भी नवाजा गया।
गौरतलब है कि, प्रियंका ग्राम रतखाल से पहली लड़की है जिसका भारतीय सेना में लेफ्टिनेंट पद पर चयन हुआ है। उन्होंने विश्वास जताया है कि अन्य बेटियों को प्रोत्साहन मिलेगा। लेफ्टिनेंट प्रियंका राणा ने अपने दादा-दादी, माता-पिता, परिजनों और अपने गुरुजनों का सहयोग के लिए आभार जताया है। कहा कि मेहनत, लगन, माता-पिता, परिवार के सदस्यों, गुरुजनों के सहयोग, मार्गदर्शन और आशीर्वाद से ही उन्हें सफलता मिली है।