उत्तर नारी डेस्क
श्री बद्रीनाथ धाम के ग्रीष्मकाल के लिए कपाट खुलने की प्रक्रिया का विधिवत शुभारम्भ हो गया है। इसी क्रम में आदिगुरु शंकराचार्य जी की डोली और पौराणिक महत्व की गाडू घड़ा कलश यात्रा आज पूर्ण विधि-विधान और भव्यता के साथ योग ध्यान बद्री, पाण्डुकेश्वर पहुँच गई है।
श्री बद्रीनाथ धाम के कपाट शीतकाल के लिए बंद होने के उपरांत आदिगुरु शंकराचार्य जी की डोली जोशीमठ में प्रवास करती है। आज 2 मई को जोशीमठ से आदिगुरु शंकराचार्य जी की डोली ने पारंपरिक गाडू घड़ा कलश यात्रा के साथ भव्य रूप से प्रस्थान किया। पूर्ण सुरक्षा व्यवस्था के बीच यह यात्रा पाण्डुकेश्वर स्थित योग ध्यान बद्री मंदिर पहुँची।
क्या है गाडू घड़ा कलश यात्रा का महत्व?
बद्रीनाथ धाम के कपाट खुलने के बाद भगवान बद्रीविशाल के महाभिषेक के लिए तिल के तेल का प्रयोग करने की पुरातन परंपरा है। इस पवित्र तेल को टिहरी राजदरबार में सुहागिन महिलाओं द्वारा विशेष पारंपरिक वेशभूषा धारण कर पिरोया जाता है। इस तैयार तेल को डिम्मर गाँव के डिमरी आचार्यों द्वारा लाए गए एक विशेष कलश में भरा जाता है। इसी कलश को 'गाडू घड़ा' कहा जाता है। इस गाडू घड़े को बद्रीनाथ धाम तक पहुँचाने की पूरी प्रक्रिया को गाडू घड़ा कलश यात्रा के नाम से जाना जाता है, जो कपाट खुलने की प्रक्रिया का एक अत्यंत महत्वपूर्ण और पावन चरण है।
आदिगुरु शंकराचार्य जी की डोली भी जोशीमठ से इसी गाडू घड़ा कलश यात्रा के साथ पाण्डुकेश्वर तक पहुँचती है। पाण्डुकेश्वर स्थित योग ध्यान बद्री मंदिर शीतकाल के दौरान भगवान उद्धव जी एवं भगवान कुबेर जी का शीतकालीन प्रवास स्थल है।
अब पाण्डुकेश्वर पहुँचने के बाद, भगवान उद्धव जी एवं भगवान कुबेर जी की डोलियाँ भी आदिगुरु शंकराचार्य जी की डोली और गाडू घड़ा कलश यात्रा के साथ श्री बद्रीनाथ धाम की ओर आगे की यात्रा करेंगी। यह यात्रा बद्रीनाथ धाम के कपाट खुलने के उत्सव का मार्ग प्रशस्त करती है, जिसकी प्रतीक्षा देशभर के श्रद्धालु कर रहे हैं।