यशोधर डबराल
नेलसन मंडेला ने कहा है कि मुझे ये लगता है कि डर का न होना हिम्मत नहीं है. बल्कि डर पर विजय पाना हिम्मत है. बहादुर वो नहीं जिसे भय नहीं होता, बल्कि बहादुर वह है जो उस भय को मात दे.
वहीं नेपोलियन बोनापार्ट का कथन है कि साहस सिर्फ आगे बढ़ने की शक्ति नहीं है बल्कि ये शक्ति न होते हए भी आगे बढ़ते जाना है, और ये भी सत्य है कि यदि हमने अपने जीवन का लक्ष्य बनाया और उसी के अनुरूप आगे बढे तो निश्चित रूप से हमें सफलता मिलेगी.
जीवन संघर्षों से निकली ज़िन्दगी ही जिंदादिली की बानगी पेश करती है. हमारे आसपास भी कई ऐसे जिंदादिल इंसान हैं जो हमें एक प्रेरणा दे डालते हैं. ऐसे लोगों की फेहरिस्त में एक नाम है ...
वर्षा अग्रवाल का जन्म उत्तर प्रदेश के जनपद बिजनौर के एक छोटे से कस्बे मंडावर में हुआ था. परिवार आर्थिक रूप से बहुत सामान्य था. मगर एक पढ़ा-लिखा परिवार होने के कारण उनके माता-पिता आधुनिक विचारधारा वाले थे. यही कारण था कि परिवार की इस सबसे बड़ी बेटी को अपनी शिक्षा के लिए अच्छा माहौल मिला.
परिवार ने उनको अपने अरमानों के साथ उड़ने की पूरी छूट दी थी. मगर एक लडकी होने के कारण वर्षा को सामाजिक जीवन के संघर्ष से उनके बचपन से ही गुज़रना पड़ा.
इंटरमीडिएट की परीक्षा पास करने के बाद उन्हें उच्च शिक्षा के लिए जाना था. उच्च शिक्षा के लिए आस-पास कोई विद्यालय न होने के कारण उन्हें रोजाना बिजनौर जाना पड़ता था. वर्षा का कहना है कि बस यहीं से उन्हें लगने लगा कि जीवन के लक्ष्यों को पाने के लिए संघर्ष ज़रूरी है.
चित्रकला विषय के साथ बी.ए. करने के बाद उनका लक्ष्य था कि वे चित्रकला में ही एम्.ए. करें. बिजनौर के कॉलेज में ये सुविधा न होने पर उन्होंने जनपद के बाहर कई कॉलेज में फॉर्म भर डाले. आखिर में उन्होंने मेरठ के कॉलेज में एडमिशन ले लिया. क्योंकि वहाँ पर उनके ताऊ जी का परिवार रहता था. एक लडकी के लिए ये ज्यादा अच्छा था कि वो परिवार के बीच रहकर अपनी पढाई जारी रखे. उनके ताऊ जी और ताई जी ने उनकी पढाई में पूरा सहयोग किया.
वर्षा अपने मौन लक्ष्य की ओर बढती जा रही थी. उन्हें मालूम नहीं था कि उनके भविष्य की मंजिल क्या होगी? उस समय उन्हें लगता था कि परीक्षा परिणामों के बाद अंकतालिका में उभरे अच्छे अंक ही सफलता का एक पैमाना हैं. अच्छे रिजल्ट, अच्छी मार्कशीट देख परिवार वाले भी काफी खुश होते थे. लेकिन इतनी ख़ुशी के पीछे वर्षा अग्रवाल का एक दर्द भी छुपा था. वर्षा ने जब- जब अपने छोटे से कस्बे से बाहर निकलकर अपनी उच्च शिक्षा का निर्णय लिया तब - तब समाज ने उन पर फब्तियां भी कसीं. लोग कहते कि ये लड़की अब किसी के साथ भाग जाएगी. लेकिन ऐसे समय में उनके पिता ने उनसे एक ही बात कही---- खुद पर विश्वास करो.
जज्बा और जुनून इंसान को उसकी मंज़िल तक पहुंचा ही देता है. समाज के तानों की न वर्षा ने चिंता की न उनके माता पिता ने. वर्षा के परिवार वालों को उन पर यकीन था और उनको अपनी मेहनत पर....
समय का ऊँट कब किस करवट बैठ जाए? कहा नहीं जा सकता. वर्षा को अभी अपने एम्.ए. के रिजल्ट का इंतज़ार ही था कि उनकी शादी कर दी गयी. पर उनका सौभाग्य था कि उस परिवार में भी उनकी सासू माँ के रूप में एक मार्ग दर्शिका मिल गयी. उनकी सासू माँ ही थीं जिन्होंने उन्हें अंग्रेज़ी विषय के साथ एम. ए. करने के साथ - साथ पी. एच डी. करने की हिम्मत भी दे डाली.
उनकी सासू माँ ने उन्हें जीवन की सफलता का एक सूत्र दिया..... बाहर निकलो. मतलब अपनी प्रतिभा को और मुखर करो. आपके पास जितनी शक्ति है उसे अपने व्यक्तित्व को निखारने में लगा दो. वर्षा अग्रवाल को लगा मानों उनकी कल्पनाओं और इच्छाओं की अमर बेल को कोई मजबूत सहारा मिल गया हो.
नियति के खेल को समझ पाना एक इंसान के लिए नामुमकिन है. वर्षा भी एक आम इंसान ही थी. वक्त अपनी राह पर एक निश्चित गति से आगे बढ़ता चला जा रहा था. लेकिन अचानक उनके जीवन के गहरे समुद्र में धीरे-धीरे तूफ़ान उठना शुरू हुआ. उनका मानना है कि सन् २००४ उनके जीवन में संघर्षों की शुरुवात लेकर आया. ज्यों-ज्यों जीवन लक्ष्य बढते गए, उसी अनुपात में जीवन संघर्ष भी बढ़ते गए.
वर्षा अग्रवाल से डॅाक्टर वर्षा अग्रवाल तक का सफ़र तय करने वाली एक महिला अजीब उहापोह की स्थिति में थी. अपने करियर और पारिवारिक ज़िम्मेदारी में से किसे चुना जाए? जयपुर के एक कॉलेज में उनकी नियुक्ति हो चुकी थी. मगर सासू माँ के गंभीर रूप से बीमार होने पर वो वहाँ न जा सकीं. एक तरफ जीवन लक्ष्य की प्राप्ति. दूसरी ओर एक बहू होने का फ़र्ज़. ऐसी स्थिति में डॅाक्टर वर्षा अग्रवाल को निजी स्वार्थ को त्याग अपने सामाजिक और पारिवारिक जीवन को महत्व देना पड़ा. थोडा ही समय बीता था कि उनकी सासू माँ ने उन्हें फिर अपने करियर पर ध्यान देने के लिए कह डाला. उनका संघर्ष और सासू माँ का आशीर्वाद उन्हें सरकारी नौकरी की ओर ले गया. उन्हें मनपसंद नौकरी तो मिली लेकिन तभी पूरे दुनिया को दहला देने वाले कोरोना की महामारी ने सब कुछ बदल दिया. मानों किसी हरे भरे मैदान में अचानक रेगिस्तान उभर आया हो.......यही वक्त था जब डॅाक्टर वर्षा अग्रवाल के जीवन में एक-एक कर कई परेशानियों ने दस्तक दे डाली. पति का व्यापार प्रभावित हुआ तो जीवन में आर्थिक तंगी बन गयीं. ... इधर डॅाक्टर्स ने वर्षा को बता दिया कि उनको कैंसर की चौथी स्टेज है........
डॅाक्टर वर्षा अग्रवाल का जीवन एक कांच की मानिंद हो चुका था. जब टूटना शुरू हुआ तो हर रोज़ किरची-किरची होता चला गया. खुद कैंसर से झूझी. अचानक चार माह बाद पिता की मृत्यु हो गयी. अभी सात माह बीते भी न थे कि पति का स्वर्गवास हो गया...... हर दिन नया दुःख ... हर दिन नया दर्द..... ऐसे वक़्त में भी डॅाक्टर वर्षा अग्रवाल अपने बच्चों और अपने लिए बड़ी मजबूती से खड़ी रही. उस वक़्त का दर्द उन्हें कई वर्षों तक सालता रहा.
डॅाक्टर वर्षा को अब घर की दहलीज़ भी परायी सी लगने लगी थी. बच्चे उच्च शिक्षा के लिए बाहर निकल चुके थे. घर में कोई ऐसा न बचा था जो उनका इंतज़ार करे या फिर वे किसी का इंतज़ार करें......जीने के लिए, घर की दीवारों पर केवल यादों की तस्वीरें टंगी रह गयीं थीं. नियति ने जो दिया था उसको स्वीकारना अब डॅाक्टर वर्षा की मजबूरी थी. आज वे एक सफल शिक्षिका हैं. अध्यापन का पेशा उन्हें अपने विद्यार्थियों और किताबों के बीच समेटने में लग गया. अपने स्कूली दिनों से ही उन्हें लिखने का शौक था. उन्होंने उसी शौक को मुखर कर डाला. कविताओं के लेखन के साथ ही उन्होने चित्रकला पर एक पुस्तक भी लिख डाली.
जीवन में तमाम झंझावातों में बार-बार टूटना और फिर ख़ुद को मज़बूत करना.. ये कला अगर सीखनी हो तो डॅाक्टर वर्षा अग्रवाल जैसे किरदार को अपने जीवन की प्रेरणा बनाना चाहिए...इतने संघर्षो के बाद भी डॅाक्टर वर्षा अग्रवाल कह डालती हैं कि कभी भी परिस्थितियों से हारना नहीं चाहिए.....