उत्तर नारी डेस्क
सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री अजय टम्टा द्वारा "वो साल चौरासी" नमक किताब का विमोचन 4 जुलाई को सर्वे ऑफ इंडिया के सभागार देहरादून में किया गया। लेखक वरिष्ठ पत्रकार मनोज इष्टवल की पुस्तक "वो साल चौरासी" समीक्षा- "वो साल चौरासी" अतृप्त प्रेम का आत्म संस्मरण है।
पुस्तक अनावरण पर मुख्य अतिथि अजय टम्टा ने कहा कि वरिष्ठ पत्रकार मनोज इष्टवाल जी को बतौर पत्रकार हम लंबे अरसे से जानते है अब साहित्य के क्षेत्र में इनकी विद्या से भी परिचित हो गए हैं।
वन व तकनीकी शिक्षा मंत्री सुबोध उनियाल ने कहा कि "वो साल चौरासी" जैसी ऑटो बायोग्राफी लिखना साहस की बात है। मनोज इष्टवाल की लड़कपन की प्रेम गाथा का जैसा और जो भी वर्णन समीक्षा के दौरान सुनने व जानने को मिला वह लगभग 40 साल पूर्व के लोकसमाज के मर्म को छूने जैसा एक प्रयास है।
पुस्तक की समीक्षा वरिष्ठ पत्रकार गणेश खुगशाल 'गणी' व प्रेम पंचोली ने की। वरिष्ठ पत्रकार गणेश खुगशाल 'गणी' ने वो साल चौरासी के बारे में बताया कि उम्र के पहले पड़ाव में अक्सर सभी को अनुराग की अनुभूति होती है और उस निश्चल प्रेम में अतृप्त प्रेमी की वेदना को यह किताब पुनर्जीवित करती है। उस प्रेम का देश काल और परिस्थिति भिन्न हो सकते हैं लेकिन संवेदनाएं एक सी होती है।
पत्रकार प्रेम पंचोली के अनुसार "वो साल चौरासी" नामक पुस्तक
प्रेमी और प्रेमिका के प्रसंग को माध्यम बनाते हुए लेखक ने पहाड़ का जो दृश्यांकन किया है वह अद्भुत है। यह चार दशक पूर्व की सिर्फ़ प्रेमी प्रेमिका की कहानी नहीं है अपितु इस पुस्तक में पहाड़ के लोक समाज की वह जिजीविषा शामिल है, जो लोक लाज, मान मर्यादा का एक ऐसा दर्पण है जो वर्तमान की नौजवान पीढ़ी के लिए एक सुखद सन्देश देता है व उन्हें प्रेम के सच्चे मायने समझाता है। उत्तराखंड के पहाड़ को अगर आपको समझना है तो मनोज इष्टवाल की यह पुस्तक " वो साल चौरासी" आपके लिए एक दस्तावेज के समान है।
ज्ञात हो कि "वो साल चौरासी" का लोकार्पण विगत दिन देर शाम तक तक चला। उसके बावजूद भी पुस्तक गूगल के साहित्य पेज पर खूब छाई हुई है। इस पर कई साहित्यकारों की अपनी समीक्षाएं सोशल साइट पर लिख चुके हैं। जिनमें अरुण कुकसाल, जे पी पंवार, एस पी शर्मा, अशोक पांडे इत्यादि प्रमुख हैं।
यह पुस्तक विगत शताब्दी के अस्सी के दशक में गढ़वाल के निम्न मध्यमवर्गीय पहाड़ी किशोर के माध्यम से उस दौर के युवाओं की मनोभावनायें, दोस्ती की अंतरंगता, उनके संघर्ष, लोक जीवन से उनका लगाव, समर्पण, माता-पिता की परेशानियों को समझने की प्रवृत्ति, ग्रामीणों के अपने-अपने संघर्ष, उनके रिश्ते, आपसी मनमुटाव, ईष्या, पिता-पुत्र के आपसी रिश्तों का तनाव एवं लगाव, संयुक्त परिवारों का बाहुल्य, खेती-किसानी, शहरी प्रवासियों की मनोवृत्ति, महानगरों में उनकी मजबूरियाँ, किशोर-किशोरियों के आपसी संवाद, युवाओं के एक-दूसरे प्रति आकर्षण के तौर-तरीके, उनके लड़ाई-झगड़े, शिक्षकों एवं विद्यार्थियों के रिश्ते, विद्यालयों का अनुशासन, शहर से गाँव में आये कुटम्बजन के स्वागत की परम्परा, तीज-त्यौहार, उत्सव, मेलों का परिदृश्य आदि को 16 अध्यायों में जीवन्त तरीके से सार्वजनिक करती है।
इस किताब प्रेम के सभी आयाम है, इसमें प्रेम भी है, प्रेम का मर्म भी और प्रेम का धर्म भी है। जिसमें प्रेमी - प्रेमिका, घर-परिवार, समाज, लोक-लाज न जाने कितने पहलू का बखूबी ख्याल रखा है। पहाड़, प्रकृति, संयुक्त परिवार और पहाड़ी समाज के प्रति आपका अगाध प्रेम, जिसमें गाय - बैल, खेत - खलिहान, नदी -गदेरे समेत पहाड़ की संपूर्ण संस्कृति समाहित है। मां की ममता, पिता का विश्वास, बहनों का प्यार और दोस्तों की यारी सबका चित्रण है। पुस्तक के लोकार्पण का आयोजन उत्तराखंड श्रमजीवी पत्रकार यूनियन व विचार एक नई सोच सामाजिक संगठन के तत्वाधान में किया गया।
इस अवसर पर उत्तराखंड सरकार के कैबिनेट मंत्री सुबोध उनियाल, सूचना महानिदेशक बंशीधर तिवारी, राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष कुसुम कंडवाल, डॉ आशुतोष सयाना, डॉ एस डी जोशी, अरुण शर्मा, राकेश बिजल्वाण, अरुण चमोली, अवधेश नौटियाल, रमन जयसवाल, गणेश काला, अमित अमोली, हरीश कंडवाल, उमाशंकार कुकरेती, अरुण पांडे, शिवराज सिंह, अखिलेश रावत, हिमानी रावत, मोहन पुरोहित इत्यादि भी उपस्थित रहे।