उत्तर नारी डेस्क
कहते हैं कि कठिन परिश्रम और आत्मविश्वास से ही सफलता की राह बनती है। इस बात को सच कर दिखाया है पौड़ी गढ़वाल के ग्राम डुंगरी गांव की रहने वाली रोशमा देवी ने। एक साधारण कृषक परिवार में जन्मी रोशमा देवी ने अपने जीवन में कई चुनौतियों का सामना किया, लेकिन कभी हार नहीं मानी। 12 दिसंबर 1991 को ग्राम गमड़ु (गगनपुर), ब्लॉक खिर्सू में जन्म लेने वाली रोशमा देवी ने विवाह के बाद खेती और पशुपालन को ही अपने जीवन का आधार बनाया। अपनी मेहनत और लगन से उन्होंने न केवल आत्मनिर्भरता हासिल की बल्कि क्षेत्र की अन्य महिलाओं के लिए भी प्रेरणा का स्रोत बन गयीं। उनके उत्कृष्ट कार्य और सामाजिक योगदान को देखते हुए रोशमा देवी को वर्ष 2024-25 के लिए राज्य स्तरीय तीलू रौतेली पुरस्कार हेतु चयनित किया गया है। यह उपलब्धि न केवल उनके व्यक्तिगत परिश्रम का परिणाम है, बल्कि पूरे पौड़ी गढ़वाल जिले के लिए गर्व का विषय है।
पिछले 15 वर्षों से कृषि और पशुपालन में सक्रिय रोशमा देवी ने सब्ज़ी उत्पादन, पहाड़ी अनाज, तिलहन, दलहन, मशरूम उत्पादन तथा डेयरी में उल्लेखनीय कार्य किया है। उनके पास जर्सी, बद्री और एचएफ नस्ल की गायें हैं और वे प्रतिदिन 30 से 35 लीटर दूध का उत्पादन करती हैं। साथ ही पनीर और देसी घी का भी उत्पादन कर अतिरिक्त आय अर्जित कर रही हैं। सब्ज़ी उत्पादन में वे आलू, प्याज, मटर, बीन्स, शिमला मिर्च, पत्तागोभी, फूलगोभी, लौकी, कद्दू, टमाटर, तोरी और भिंडी जैसी कई फसलें उगाती हैं। इस वर्ष उन्होंने 8 क्विंटल आलू का जैविक उत्पादन कर ₹40 प्रति किलो के भाव से बेचते हुए लागत घटाकर लगभग ₹20,000 का शुद्ध लाभ अर्जित किया।
रोशमा देवी पहाड़ी खेती की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए गहत, भट्ट, मडुआ, झंगोरा जैसे अनाज का उत्पादन कर रही हैं। इसके अलावा उन्होंने दलहन उत्पादन में मसूर, सोयाबीन और तूर दाल की खेती कर अच्छी पैदावार प्राप्त की। मसूर की फसल से उन्हें ₹180 से ₹200 प्रति किलो का मूल्य मिला। तिलहन उत्पादन में उन्होंने लगभग 2 क्विंटल सरसों का उत्पादन किया, जिससे सरसों के तेल से घरेलू और व्यावसायिक दोनों स्तरों पर लाभ मिला।
कृषि के साथ-साथ रोशमा देवी ने समाज में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उन्होंने जय माँ लक्ष्मी महिला समूह और माँ बालमातेश्वरी मधुरस स्वयंसेवी संस्था के माध्यम से ग्रामीण महिलाओं को आधुनिक कृषि तकनीक अपनाने के लिए प्रेरित किया। उनके नेतृत्व में मनरेगा के अंतर्गत 1200 पौधों का रोपण किया गया। उनके प्रयासों से न केवल महिलाओं को आत्मनिर्भर बनने का अवसर मिला बल्कि क्षेत्र में पलायन रोकने में भी मदद मिली।
उनकी मेहनत और उपलब्धियों को देखते हुए उन्हें कई सम्मान मिले हैं। उन्होंने उद्यान विभाग द्वारा श्रीनगर गढ़वाल में आयोजित बैकुंठ चतुर्दशी मेले की प्रदर्शनी में सब्ज़ी उत्पादन के लिए प्रथम पुरस्कार प्राप्त किया।
ग्रामीण रोजगार प्रशिक्षण संस्थान, पौड़ी द्वारा भी उन्हें सम्मानित किया गया। इसके अलावा 2013 में उन्होंने ग्रेटर नोएडा में इंस्टीट्यूट ऑफ हॉर्टिकल्चर टेक्नोलॉजी द्वारा आयोजित राष्ट्रीय स्तर के कार्यक्रम में प्रतिभाग किया। रोशमा देवी की सफलता यह साबित करती है कि यदि संकल्प मजबूत हो तो सीमित संसाधनों में भी बड़े सपने पूरे किए जा सकते हैं।
जिला कार्यक्रम अधिकारी देवेन्द्र थपलियाल ने बताया कि रोशमा की उपलब्धि देखते हुए उनका चयन राज्य स्तरीय तीलू रौतेली पुरस्कार हुआ है। इससे अन्य महिलाओं को भी प्रेरणा मिलेगी।
उत्तराखण्ड : तीलू रौतेली पुरस्कार के लिए 13 महिलाओं का चयन
उत्तराखण्ड को यूं ही देवभूमि नहीं कहा जाता। यहां आदिकाल से ही नारी शक्ति की पूजा की परंपरा रही है। यहां तक की उत्तराखण्ड राज्य गठन में भी हमारी नारी शक्ति का अहम योगदान रहा है। इसी क्रम में उत्तराखण्ड सरकार द्वारा महिला सशक्तिकरण को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से दिए जाने वाले प्रतिष्ठित तीलू रौतेली पुरस्कार के लिए इस वर्ष 13 महिलाओं का चयन किया गया है। यह पुरस्कार चार सितंबर को एक विशेष कार्यक्रम के दौरान वितरित किया जाएगा।
यह जानकारी महिला सशक्तिकरण एवं बाल विकास मंत्री रेखा आर्या ने दी। उन्होंने बताया कि इसके साथ ही 33 आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों को भी राज्य स्तरीय पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा। पुरस्कार वितरण समारोह आईआरडीटी सभागार में आयोजित होगा, जिसमें मंत्री रेखा आर्या समेत कई गणमान्य अतिथि शामिल होंगे। मंत्री रेखा आर्या ने कहा कि प्रदेश की आंगनबाड़ी कार्यकत्रियां अपनी सामर्थ्य से बढ़कर कार्य कर रही हैं। उन्होंने समाज के विभिन्न क्षेत्रों में महिला सशक्तिकरण के लिए सराहनीय योगदान दिया है।
उन्होंने कहा, “महिला सशक्तिकरण का असली काम हमारी आंगनबाड़ी बहनें कर रही हैं। उन्हें इसका पूरा श्रेय मिलना चाहिए। सरकार का दायित्व है कि ऐसे प्रयासों को सम्मानित और सशक्त किया जाए। इस कार्य में सरकार पीछे नहीं हटेगी।”
तीलू रौतेली पुरस्कार उत्तराखण्ड सरकार द्वारा दिया जाने वाला एक राज्य स्तरीय सम्मान है, जो उन महिलाओं को प्रदान किया जाता है जिन्होंने समाज, शिक्षा, स्वास्थ्य, खेल, कला, या सामाजिक कार्य जैसे क्षेत्रों में उल्लेखनीय उपलब्धियां हासिल की हों। यह पुरस्कार उत्तराखंड की वीरांगना तीलू रौतेली की स्मृति में दिया जाता है, जिन्होंने कम उम्र में ही अपने साहस और नेतृत्व से दुश्मनों को पराजित किया था।
मंत्री रेखा आर्या ने कहा कि सरकार महिलाओं के आर्थिक, सामाजिक और मानसिक सशक्तिकरण के लिए निरंतर प्रयासरत है। उन्होंने कहा कि महिलाओं को हर क्षेत्र में आगे लाना सरकार की प्राथमिकता है और इसके लिए विभिन्न योजनाएं चलाई जा रही हैं।
40 साल की महिला लापता, पति को अपने जिगरी दोस्त पर है शक
हल्द्वानी के राजपुरा क्षेत्र में 40 साल की महिला अपनी 10 साल की बेटी को लेकर अचानक लापता हो गई। पति को शक है कि उसका जिगरी दोस्त उसकी पत्नी और बेटी को बहाल फुसलके भागा ले गया है।
बता दें, दमुवाढूंगा निवासी एक मजदूर ने कोतवाली पुलिस को तहरीर देकर कहा कि वह बीते पांच माह से राजपुरा में किराए के कमरे में रह रहा है। उसकी 40 साल की पत्नी और 10 साल की बेटी 28 जून से लापता हैं। वह मजदूरी करता है, जबकि पत्नी नैनीताल रोड स्थित एक होटल में काम करती थी। 28 जून को वह बेटी के साथ रोज की तरह काम पर निकली लेकिन वापस नहीं लौटी।
पीड़ित ने काफी खोजबीन की लेकिन उसे वह नहीं मिली। उसकी शिकायत पर पुलिस ने पत्नी व बेटी की गुमशुदगी दर्ज कर दोनों की तलाश शुरू कर दी है। इस बीच, पति का कहना है कि उसे अपने जिगरी दोस्त पर गहरा शक है जिसने उसकी पत्नी और बेटी को बहला-फुसलाकर भगा दिया। हालांकि, उसने यह बात पुलिस को दी तहरीर में साफ-साफ नहीं लिखी।
पुलिस जांच में खुलासा हुआ है कि लापता मां-बेटी को आखिरी बार रोडवेज स्टेशन हल्द्वानी में देखा गया था। वे वहां एक टैंपो से पहुंचे थे। कोतवाल राजेश यादव ने बताया कि शिकायत के आधार पर महिला और बेटी की तलाश तेज कर दी गई है।