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कोटद्वार : तीन दिवसीय सिद्धबली मेले से जगमग रहेगा शहर, साथ ही जानिए सिद्धबली बाबा की कहानी

उत्तर नारी डेस्क 


सिद्धों के डांडा के रूप में जाना जाने वाला सिद्धबली मंदिर अगले 3 दिनों तक भव्य मेले से जगमग रहेगा। बात अगर मेले की दिव्यता और भव्यता की करें तो इसकी प्रशंसा कोटद्वार में ही नहीं बल्कि देश विदेशों में भी है। 

संकटमोचन भगवान हनुमान के कारण ही कोटद्वार क्षेत्र एक अलग पहचान से दुनिया भर में परिचित है। करोड़ो लोगों की यह अटूट आस्था ही तो है जो उन्हें इस पवित्र धाम की ओर खींच लाती है। सिद्धबली बाबा के भक्त उनकी स्थान देवता, भुम्याल देवता के रूप में अखाध आस्था के साथ पूजा करते है। सिद्धबली मंदिर साल भर अपने भक्तों से जगमग रहता है। 

उत्तराखण्ड के लोग विशेष रूप से कोटद्वार वासी हर साल दिसम्बर माह में सिद्धबली मेले को लेकर काफ़ी उत्साहित रहते है। 

आईये आपको इस से जुड़ी कथा से अवगत कराते है,

मान्यता है कि सिद्धबली का इतिहास रामायण काल से भी जुड़ा हुआ है साथ ही प्रसिद्ध मंदिर सिद्धबली का संबंध कत्युर वंश से भी है। 

सबसे पहले बात करते है कत्युर वंश की, मान्यताओं के अनुसार सिद्धबली खुद कत्युर वंश के राजा का पुत्र था, जिसे गुरु गोरखनाथ के आशीर्वाद से सिद्धि प्राप्त हुई थी। कत्युर वंश के राजा कुंवर की छह रानियां थी लेकिन संतान नहीं होने पर दुखी था। अपने ईष्ठ गोरखनाथ से संतान प्राप्ति की मन्नत के लिए वह गोरछपीठ जा रहा था। रास्ते में उनको दो बड़ी भैंसें लड़ती नजर आई जिसे कोई छुड़ा नहीं पा रहा था। कुंवरपाल ने एक झटके में दोनों भैंसों को अलग-अलग दिशा में फेंक दिया। जिसकी वह भैंसें थी उसकी लड़की विमला ने भी पहले इन भैंसों की लड़ाई छुड़ाने के लिए उनको इसी तरह इधर-उधर फेंक दिया था। कहा जाता है कि उसी वक्त विमला के पिता ने इतने ही ताकतवर वर से उसका विवाह कराने की कही थी। विमला को राजा कुंवर को दे दिया गया। कुछ दिनों बाद विमला ने पुत्र को जन्म दिया। कहा जाता है कि छह रानियों ने ईर्ष्यावश साजिश रचकर रानी को पुत्र के साथ घर से बाहर निकलवा दिया। 

विमला जंगल छोलिया उडियार (गुफा) में चली गई और वहीं बच्चे को पाला और उसका नाम हरपाल रखा। उस वक्त ढाक (राशन का व्यापार) चला करती थी। राजा की ढाक को हरपाल लूटने लगा। उसकी मां को पता चलने पर उसने उसे मौके पर जाकर पकड़ लिया। राजा के सैनिकों ने विमला को पहचानते हुए पूरी कहानी कुंवरपाल को बताई। निसंतान कुंवर उसे वापस लाना चाहता था, लेकिन उसने दो शर्त रखी, पहली क्षेत्र में नरभक्षी बाघ मारना और कालूमल सूबेदार से राजा के लुटे घोड़ों को वापस लाना।

कहते हैं कि हरपाल ने बाघ को न सिर्फ पकड़ा बल्कि उसमें सवार होकर राजमहल आ गया। लेकिन कालूमल को हराने के बाद जब वह वापस लौट रहा था तो कालूमल ने रास्ते में खाई खोदकर उसमें बरछे रख दिए। हरपाल घोड़े सहित खाई में गिर गया और बरछा घोड़े को चीरता हुआ उसके सीने में घुस गया जिससे हरपाल की मौत हो गई। यह सुनकर राजा, उसके सैनिक और हरपाल की मां विमला भी जंगल की ओर दौड़ी। विमला शुरू से ही गोरखनाथ की भक्त थी। उसकी पुकार सुनकर गोरखनाथ वहां प्रकट हुए और हरपाल को जीवित कर दिया। लेकिन हरपाल को राजा को देने से इनकार करते हुए कहा कि तूने इस बालक की शक्ति को नहीं पहचाना, इसलिए गोरखनाथ ने उसे सिद्धप्राप्त कराकर अपने साथ रख लिया। बलवान होने के चलते उसे सिद्धबली के नाम से जाना गया। 

मान्यता है कि सिद्धबाबा ने इसी स्थान पर कई सालों तक तप किया था। -------------

अब आपको उस किंवदंती के में बारें में बतातें है, जहाँ सिद्धबली मंदिर के इतिहास को रामायण काल से भी जोड़ा जाता है, जब रामायण काल में माता सीता की खोज के दौरान राम रावण का युद्ध चल रहा था उस संग्राम में भगवान लक्ष्मण घायल होकर मूर्छित हो गए थे। वहाँ वैद्य ने भगवान लक्ष्मण को चेतना में लाने के लिए तथा उनके उपचार के लिए श्री हनुमान जी को उत्तराखण्ड के चमोली स्तिथ द्रोणागिरी पर्वत से संजीवनी बूटी मंगवाई। 

जब हनुमान जी वायु मार्ग से द्रोणागिरी पर्वत की ओर बढ़ रहे थे। तो रास्ते में उनकी भेंट एक शक्तिशाली राक्षस से हुई और दोनों के बीच घन्घोर युद्ध हुआ।  तब हनुमान को एहसास हुआ कि यह राक्षस नहीं बल्कि दिव्या शक्ति है, भगवान हनुमान ने उन्हें अपने वास्तविक रूप में आने को कहा, और वह दिव्या शक्ति यानी सिद्ध बाबा अपने वास्तविक रूप में आए। सिद्ध बाबा ने हनुमान जी से इसी स्थान में बसने तथा इस स्थान पर आने वाले सभी श्रद्धालुओं की मनोकामना को पूर्ण करने का वचन लिया और यह वचन हनुमान जी ने सिद्ध बाबा को दिया तभी से इस स्थान पर भगवान हनुमान और सिद्ध बाबा की पूजा की जाती है। 

आपको बता दें, इस भव्य तीन दिवसीय मेले के आयोजन से पहले झांकियाँ निकाली जाती है। 

 इन झांकियों की रौनक बेहद ख़ूबसूरत होती है जिसे देखने के लिए कोटद्वार वासी एकत्रित हो जाते है। 

सिद्धबली मेले के अवसर पर पौड़ी जिले की जनता बढ़ चढ़ कर मेले में शिरक़त करती है सिद्धबली बाबा वार्षिक अनुष्ठान महोत्सव का शुभारंभ कल से होने जा रहा है। जिसको लेकर हर कोई उत्साहित है, इस बार हालांकि कोरोना काल में कार्यक्रम काफी साधारण रूप से किये जायेंगे।

"उत्तर नारी टीम "के वार्ता के दौरान मुख्य पुजारी 'श्री कृष्णानंद शास्त्री ' ने आयोजन की प्रक्रिया बताई उन्होंने कहा -

पहले दिन 4 दिसम्बर को प्रातः पिंडी महाभिषेक, मंदिर परिक्रमा एवं ध्वज पूजा, एकादश कुंडीय यज्ञ होगा। जिसके बाद शाम 4 बजे कोटद्वार नगर में बाबा का डोला प्रारंभ होगा, जिसका समापन गोविंद नगर के गुरुद्वारे में होगा। 

अगले दिन 5 दिसम्बर को प्रातः पिंडी महाभिषेक, एकादश कुंडीय यज्ञ व सुंदर काण्ड होगा तथा अंतिम दिन 6 दिसम्बर को प्रातः पिंडी महाभिषेक, एकादश कुंडीय यज्ञ, श्री सिद्धबली बाबा का जागर व सवामन रोट प्रसाद वितरण किया जाएगा।

कोरोना काल को ध्यान में रखते हुए इस वर्ष महोत्सव के सभी कार्यक्रम सूक्ष्म रूप से होंगे।

सभी भक्तजन कोरोना संक्रमण को लेकर प्रशासन व सरकार द्वारा तय किये गए नियमों का पालन करते हुए ही मंदिर परिसर में प्रवेश करेंगे। 


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