उत्तर नारी डेस्क
साहित्य अकादमी सम्मान से सम्मानित वरिष्ठ पत्रकार कवि एवं लेखक मंगलेश डबराल का बीते दिन बुधवार को निधन हो गया था। वे 72 साल के थे और कोरोना से संक्रमित थे। कई हस्तियों ने उन्हें श्रद्धांजलि दी।
कवि-लेखक मंगलेश डबराल समकालीन हिंदी के चर्चित कवियों में शुमार थे। उनके निधन से साहित्य जगत स्तब्ध है। इसी कड़ी में भारतीय सूचना सेवा के अधिकारी अनिल दत्त शर्मा ने भी उनको अपने तरीके से उनकी रचित कविता पाठ करके श्रद्धांजलि दी।
बची हुई जगहें
रोज़ कुछ भूलता कुछ खोता रहता हूँ
चश्मा कहाँ रख दिया है क़लम कहाँ खो गया है
अभी-अभी नीला रंग देखा था वह पता नहीं कहाँ चला गया
चिट्ठियों के जवाब देना क़र्ज़ की किस्तें चुकाना भूल जाता हूँ
दोस्तों को सलाम और विदा कहना याद नहीं रहता
अफ़सोस प्रकट करता हूँ कि मेरे हाथ ऐसे कामों में उलझे रहे
जिनका मेरे दिमाग़ से कोई मेल नहीं था
कभी ऐसा भी हुआ जो कुछ भूला था उसका याद न रहना भूल गया
माँ कहती थी उस जगह जाओ
जहाँ आख़िरी बार तुमने उन्हें देखा उतारा या रखा था
अमूमन मुझे वे चीज़ें फिर से मिल जाती थीं और मैं खुश हो उठता
माँ कहती थी चीज़ें जहाँ होती हैं
अपनी एक जगह बना लेती हैं और वह आसानी से मिटती नहीं
माँ अब नही है सिर्फ़ उसकी जगह बची हुई है
चीज़ें खो जाती हैं लेकिन जगहें बनी रहती हैं
जीवन भर साथ चलती रहती हैं
हम कहीं और चले जाते हैं अपने घरों लोगों अपने पानी और पेड़ों से दूर
मैं जहां से एक पत्थर की तरह खिसक कर चला आया
उस पहाड़ में भी एक छोटी सी जगह बची होगी
इस बीच मेरा शहर एक विशालकाय बांध के पानी में डूब गया
उसके बदले वैसा ही एक और शहर उठा दिया गया
लेकिन मैंने कहा मेरा शहर अब एक खालीपन है
घटनाएँ विलीन हो जाती हैं
लेकिन जहां वे जगहें बनी रहती हैं जहां वे घटित हुई थीं
जमा होती जाती हैं साथ-साथ चलतीं हैं
याद दिलाती हुईं कि हम क्या भूल गये हैं और हमने क्या खो दिया है।
बता दें, अनिल दत्त शर्मा मूल रूप से उत्तराखंड जौनसार बावर निवासी है और भारतीय सूचना सेवा में शिमला में कार्यरत हैं। आईआईएस में आने से पहले वह आकाशवाणी देहरादून में प्रसारण अधिकारी के पद पर भी चार साल अपनी सेवाएं दे चुके हैं। सरकारी सेवा में आने से पहले वह लम्बे समय तक पत्रारिता से भी जुड़े रहे। कविताएं लिखना और उनका पाठ करना उनका शौक है साथ ही वह स्वयं रचित कविताएं लिखकर उनका पाठ भी करते है।