उत्तर नारी डेस्क
तीन साल की कड़ी मशक्कत के बाद आख़िरकार कॉर्बेट टाइगर रिजर्व देश का पहला ऐसा टाइगर रिजर्व बना गया है, जिसे वन्यजीवों को ट्रैंक्यूलाइज कर रेस्क्यू करने के लिए कारगर विदेशी औषधि प्राप्त हों गयी है।
बताते चलें की इस दवा के लिए कॉर्बेट टाइगर रिजर्व की ओर से 2017 से ही प्रयास किए जा रहे थे, और हाल ही में ये दवाइयां सीटीआर को उपलब्ध हों गयी है। सीटीआर को मिली यह विदेशी औषधि मैक्सिको और अफ्रीका से मिली है। जिनकी कीमत 20 लाख रुपये से अधिक बताई जा रही और यह दवाई दिसंबर मध्य में कॉर्बेट को प्राप्त हुई है।
कॉर्बेट पार्क के पशु चिकित्सक डॉ. दुष्यंत शर्मा ने बताया कि 23 दिसंबर को बिजरानी रेंज में बाघिन और आठ जनवरी को झिरना रेंज के लालढांग में बाघ को रेस्क्यू करने में इस दवा इस्तेमाल किया गया था। जो की सफल हुआ था और इन औषधियों के साथ कॉर्बेट को उनके एंटीडॉट भी मिले हैं। इन विदेशी दवाओं में एट्रोफाइन का एंटी डोट नेलट्रेक्जोन, मेडीटोमाइडीन का एंटी डोट एटिपएमेजोल और केरविडाइन का एंटी डोट टोलाजोलाइन हैं।
वहीं पशु चिकित्सक बताते है कि पहले जब किसी वन्यजीव को रेस्क्यू करना होता था तो ट्रैंक्यूलाइज करने के बाद काफ़ी मशकत करनी पड़ती थी और वन्यजीव को बेहोश होने में भी बीस मिनट तक लग जाते थे। फ़िर बेहोश वन्यजीव तलाशना चुनौती भरा होता था, क्योंकि वह झाड़ियों में चला जाता था। इस दौरान उसके हमलावर होने का भी अंदेशा रहता था। अब विदेशी औषधि से महज कुछ मिनट में वन्यजीव बेहोश जाता है और आसानी से पकड़ में आ जाता है। हालंकि भारतीय वन्यजीव संस्थान के पास यह औषधि पहले से ही है।
चलिए आपको बताते है की इस औषधि की खासियत क्या है। इस औषधि से किसी भी वन्यजीव को ट्रैंक्यूलाइज करने पर वह दो मिनट में ही बेहोश हो जाता है। इसी औषधि का प्रयोग करते हुए हाल ही में कॉर्बेट पार्क के पशु चिकित्सकों ने एक बाघिन और एक बाघ को ट्रैंक्यूलाइज कर सकुशल राजाजी नेशनल पार्क में छोड़ा है।