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उत्तराखण्ड : पिता किसान, मां आंगनबाड़ी सेविका और बेटा बना सेना में अफसर

उत्तर नारी डेस्क

उत्तराखण्ड के होनहार युवाओं का भारतीय सेना में जाना बचपन से देखा एक सपना होता है। भारतीय सेना में शामिल होने के सपने को साकार करने के लिए कई युवा जी तोड़ मेहनत कर सेना में जगह बनाते है और राज्य का नाम गौरवान्वित करते हैं। आज ऐसे ही एक किसान पिता के बेटे ने अफसर बन अपने पिता का सम्मान बढ़ाया है। आपको बता दें गैरसैंण ब्लॉक के खंसर घाटी के कंडारीखोड़ गांव निवासी कृष्णा सिंह ने सेना में अफसर बन कर गैरसैंण विकासखंड का मान सम्मान बढ़ाया है। जिन्होंने अपने घर की आर्थिक स्थिति को अपनी सफलता के आड़े आने नहीं दिया और कड़ी मेहनत और प्रशिक्षण कर सेना में अफसर बने हैं। कंडारीखोड़ गांव में जन्में कृष्णा सिंह रावत के पिता सुरेन्द्र रावत खेती एवं दुकानदारी करते हैं वहीं माता शांति देवी आंगनबाड़ी सहायका हैं। कृष्णा के दादा अमर सिंह बीएसएफ से रिटायर्ड सूबेदार हैं। एमएलटीई सैन्य अकादमी मऊ से पासआउट होकर कृष्णा भारतीय सेना का अंग बन गए हैं। घर में मां शांति देवी और पिता सुरेंद्र सिंह को बधाई देने वालों का तांता लगा हुआ है। तो वहीं उनके पिता सुरेंद्र सिंह रावत के चेहरे पर गर्व साफ तौर पर देखा जा रहा है।

बताते चलें गैरसैंण ब्लॉक के दूरस्थ खनसर घाटी के कंडारीखोड गांव में 14 जुलाई 1999 को सामान्य परिवार में जन्मे कृष्णा की प्रारंभिक शिक्षा दिवागाड़ विद्या मंदिर में हुई। कक्षा आठ पास करने के बाद वह गैरसैंण आ गए। कृष्णा ने हाई स्कूल में 89 प्रतिशत अंक हासिल कर पूरे ब्लॉक में दूसरे स्थान पर रहे। जबकि राइंका गैरसैंण से इंटर की परीक्षा 87 प्रतिशत अंकों से उत्तीण की। पढ़ाई के बाद कृष्णा मामा हवलदार वीरेंद्र सिंह के साथ रुड़की आ गए। 

कैंट एरिया में रोजाना सैनिकों की परेड व अनुशासन को देख कृष्णा ने मन ही मन सैन्य अधिकारी बनने का सपना देख लिया। रुड़की कैंट के सैनिकों ने उसे एनडीए परीक्षा के लिए प्रेरित किया। उसके बाद कृष्णा सैन्य अधिकारी का सपना पूरा करने में जुट गए। 2016 में एनडीए के समकक्ष टेक्निकल एंट्री स्कीम के साक्षात्कार में स्क्रीन आउट हुए, लेकिन वे निराश नहीं हुए। 2017 में उन्होंने दोबारा परीक्षा दी और 17 जुलाई को ओटीए में ज्वाइन किया। जहां एक वर्ष के बेसिक सैन्य प्रशिक्षण के बाद टेक्निकल ट्रेनिग में लिए एमएलटीई मऊ में तीन वर्ष तक जमकर पसीना बहाया। आखिरकार 12 जून को वह दिन आ गया, जब वे सेना का अंग बना। लेफ्टिनेंट  कृष्णा सिंह रावत ने इस मुकाम तक पहुंचने में अपने माता पिता, दादा एवं अध्यापकों को इसका श्रेय दिया है।


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