उत्तर नारी डेस्क
उत्तराखण्ड में सियासी हलचल बढ़ने से विपक्षी दल हमलावर हो गए है। एक बार फिर से उत्तराखण्ड में नेतृत्व परिवर्तन होने से कई तरह की चर्चाएं भी शुरू हो गई हैं। इसी क्रम में अब पूर्व सीएम हरीश रावत ने भी सीएम बदले जाने पर भाजपा पर हमला बोला है। हरीश रावत ने कहा कि इससे बड़ा झूठ क्या हो सकता है कि कोरोना संक्रमण की वजह से उपचुनाव नहीं हो सकते और संविधानिक बाध्यता के कारण मुख्यमंत्री इस्तीफा दे रहे हैं।
2017 में सत्तारूढ़ हुई उत्तराखण्ड भाजपा ने अपने दो नेताओं की स्थिति हास्यास्पद बना दी है, दोनों भले आदमी हैं। त्रिवेंद्र सिंह रावत जी को बजट सत्र के बीच में बदलने का निर्णय ले लिया, जबकि वित्त विभाग भी उन्हीं के पास था, बजट पर चर्चा और बहस का जवाब उन्हीं को देना था, बजट उन्हीं को पारित करवाना था। सब हबड़-तबड़ में बजट भी पास हुआ और त्रिवेन्द्र सिंह जी की विदाई भी हो गई और उतने भले ही आदमी तीरथ सिंह रावत जी मुख्यमंत्री बने और तीरथ सिंह जी की स्थिति कुछ उनके बयानों ने और जितनी रही-सही कसर थी, वो भाजपा के शीर्ष द्वारा उनके चुनाव लड़ने के प्रश्न पर निर्णय न लेने कारण हास्यास्पद बन गई, वो मजाक के पात्र बनकर के रह गये। लोग कह रहे हैं कि हमारे मुख्यमंत्री को जब इसी बात ज्ञान नहीं था कि उनको कब चुनाव लड़कर के विधानसभा पहुंचना है तो, ये व्यक्ति हमारा क्या कल्याण करेगा!
साथ ही कहा कि वर्तमान मुख्यमंत्री न केवल एक हास्यास्पद व्यक्तित्व बनकर रह गये, बल्कि सारी भाजपा की सरे चौराहे भद हुई है। मुख्यमंत्री जी इस्तीफा दिया अपने राष्ट्रीयअध्यक्ष को और अब वो गर्वनर को इस्तीफा देेंगे, खैर ये उनकी दलगत निष्ठा की बात हो सकती है। लेकिन एक बात स्पष्ट है न वो पहले संवैधानिक आवश्यकता को समझ पाए और न अब संवैधानिक आवश्यकता को समझ रहे हैं। भाजपा ने इन लगभग साढ़े 4 साल के अंदर राज्य को भयंकर बेरोजगारी दी, अर्थव्यवस्था छिन्न-भिन्न कर दी, विकास के काम ठप पड़े हुए हैं, कानून व्यवस्था की स्थिति में निरंतर गिरावट आ रही है और कोरोना संक्रमण को नियंत्रित करने में राज्य सरकार पूरी तरीके से फेल हो गई, और तो छोड़िए टेस्टिंगघोटाला जो हरिद्वार में हुआ, उसने हमारे राज्य की साख को भी बट्टा लगाने का काम किया। भाजपा को इन सवालों का जवाब उत्तराखण्ड के लोगों को देना पड़ेगा, चाहे वो किसी को मुख्यमंत्री बना लें।