उत्तर नारी डेस्क
उत्तराखण्ड को यूं ही देवभूमि नहीं कहा जाता। यहां आदिकाल से ही नारी शक्ति की पूजा की परंपरा रही है। यहां तक की उत्तराखण्ड राज्य गठन में भी हमारी नारी शक्ति का अहम योगदान रहा है। इसी क्रम में आज आठ अगस्त को उत्तराखण्ड में वीरांगना तीलू रौतेली की जयंती धूम धाम से मनाई गयी। साथ ही जयंती के मौके पर सरकार ने 22 महिलाओं को तीलू रौतेली पुरस्कार से भी नवाजा है। यूँ तो उत्तराखण्ड में हमेशा ही नारी का सम्मान होता आया है। परन्तु उत्तराखण्ड की कुछ ऐसी महिलाएं भी है। जिन्होंने अपने सम्मान के साथ ही देश-दुनिया में भी देवभूमि का मान बढ़ाया है और हर बार यही प्रदर्शित किया है कि नारी गौरव और सम्मान का प्रतीक हैं।
आइये आज हम आपको उत्तराखण्ड की एक ऐसी वीरांगना महिला के बारे में बताएंगे। जिन्हें गढ़वाल की झांसी की रानी नाम से जाना जाता है। जो केवल 15 वर्ष की उम्र में रणभूमि में कूद पड़ी थी और सात साल तक जिसने अपने दुश्मन राजाओं को कड़ी चुनौती दी थी। जी हाँ वीरों की भूमि गढ़वाल में आठ अगस्त, 1661 को चौंदकोट परगना के गुराड़ तल्ला में तत्कालीन गढ़वाल नरेश फतेहशाह के सभासद भूपसिंह गोर्ला (भुप्पू रौत) व मैणावती के घर महान वीरांगना वीरबाला तीलू रौतेली का जन्म हुआ था।
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तीलू रौतेली का मूल नाम तिलोत्तमा देवी था और उनके पिता भूप सिंह गढ़वाल नरेश फतहशाह के दरबार में सम्मानित थोकदार थे। जिस कारण उन्होंने 15 वर्ष की उम्र में ईडा, चौंदकोट के थोकदार भूम्या सिंह नेगी के पुत्र भवानी सिंह के साथ धूमधाम से तीलू की सगाई कर दी थी। जहां मात्र 15 वर्ष की उम्र में ही उन्होंने गुरु शिबू पोखरियाल से घुड़सवारी और तलवार बाजी सीखी।
उस समय गढ़नरेशों और कत्यूरियों में पारस्परिक प्रतिद्वंदिता चल रहा था। कत्यूरी नरेश धामदेव ने जब खैरागढ़ पर आक्रमण किया तो गढ़नरेश मानशाह वहां की रक्षा की जिम्मेदारी भूप सिंह को सौंपकर खुद चांदपुर गढ़ी में आ गया। भूप सिंह ने डटकर उन सभी आक्रमणकारियों का मुकाबला किया। परंतु इस युद्ध में वे अपने दोनों बेटों और तीलू के मंगेतर के साथ वीरतापूर्वक लड़ते हुए शहीद हो गए। मंगेतर भवानी सिंह के युद्धभूमि में इस वीरगति के बाद तीलू रौतेली ने कमान संभाली और महज 15 वर्ष की उम्र में ही तीलू रौतेली ने कत्यूरी आक्रांताओं की सेना के खिलाफ युद्ध का बिगुल फूंककर अपनी वीरता का लोहा मनवाया।
इस युद्ध में तीलू की दो सहेलियां देवकी और बेला, जो तल्ला गुराड़ में ब्याही थीं और उम्र में तीलू से छोटी थीं। उन्होंने भी तीलू का साथ दिया। वह दोनों तीलू को रौतेली कहकर पुकारती थी। जिस वजह से यहीं से वीरांगना का नाम तीलू रौतेली नाम से प्रचलित हुआ।
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आपको बता दें तीलू रौतेली की स्मृति में उनके शहीद स्थल कांडा मल्ला बीरोंखाल में उनकी प्रतिमा स्थापित की गई है। इन्हीं वीरांगना तीलू रौतेली की आज आठ अगस्त को जयंती है। इस मौके पर राज्य स्त्री शक्ति को नमन करते हुए सर्वे चौक स्थित आइआरडीटी सभागर में सरकार ने चयनित राज्य की 22 महिलाओं को तीलू रौतेली पुरस्कार से नवाजा है। जहां वंदना कटारिया समेत 23 को तीलू रौतेली पुरस्कार एवं 22 महिलाओं को आंगनबाड़ी कार्यकत्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। तीलू रौतेली पुरस्कार के तहत 31 हजार रुपये जबकि आंगनबाड़ी कार्यकत्री पुरस्कार के तहत 21 हजार रुपये की सम्मान राशि एवं प्रशस्ति पत्र प्रदान किया गया।
तीलू रौतेली पुरस्कार से इनको किया गया सम्मानित - डॉ.राजकुमारी भंडारी चौहान, श्रीमती श्यामा देवी, श्रीमती अनुराधा वालिया, डॉ. कंचन नेगी, रीना रावत, वन्दना कटारिया, चन्द्रकला तिवाड़ी, नमिता गुप्ता, बिन्दुवासिनी, रूचि कालाकोटी, ममता मेहता, कु. अंजना रावत, पार्वती किरौला, कु. कनिष्का भण्डारी, भावना शर्मा, गीता जोशी, बबीता पुनेठा, दीपिका बोहरा, कु. दीपिका चुफाल, रेखा जोशी, रेनू गडकोटी, पूनम डोभाल।
राज्य स्तरीय आंगनबाड़ी कार्यकर्ती पुरस्कार से सम्मानित - गौरा कोहली, पुष्पा प्रहरी, पुष्पा पाटनी, गीता चन्द, कुमारी गलिस्ता, अंजना, संजू बलोदी, कु. मीनू, ज्योतिका पाण्डेय, सुमन पंवार, राखी, सुषमा गुसांई, आशा देवी, दुर्गा बिष्ट, सोहनी शर्मा, वृंदा, प्रोन्नति विस्वास, हंसी धपोला, गायत्री दानू, हीरा भट्ट, सुषमा पंचपुरी, सीमा देवी।
इस अवसर पर विधायक खजानदास, सचिव हरि चन्द्र सेमवाल, अपर सचिव प्रशांत आर्य एवं गणमान्य मौजूद थे।
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