उत्तर नारी डेस्क
दुनियाभर में दिवाली के पांच पर्वों की शृंखला में प्रथम पर्व धनतेरस की शुरुआत हो चुकी है। इस दिन धन के देव कुबेर देव और भगवान धनवंतरी की पूजा का विधान है। हिंदू पंचांग के अनुसार कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि पर धनतेरस का त्यौहार आता है। जो कि इस वर्ष दो नवंबर को मनाया जा रहा है।
दिवाली के एक दिन पहले धनतेरस का त्यौहार मनाया जाता है। पांच दिनों तक चलने वाले दिवाली महापर्व में धनतेरस सबसे पहले मनाया जाता है और दिवाली का त्यौहार धनतेरस से शुरु होकर भाई दूज पर समाप्त होता है। जिसमें पहले धनतेरस, नरक चतुर्दशी, दिपावली, गोवर्धन पूजा और भैया दूज का त्यौहार मनाया जाता है। पुराणों के अनुसार इस दिन भगवान धनवंतरी, कुबेर की पूजा की जाती है और कुछ नया खरीदने की परम्परा होती है। ख़ास तौर पर पीतल या सोना चांदी। इसी दिन रात में यम दीप भी जलाया जाता है। यह दीपक यमराज के लिए जलाया जाता है ऐसी मान्यता है, की यम दीपक जलाने से यमराज खुश होते है और परिवार के सदस्यों की अकाल मृत्यु से सुरक्षा प्रदान करते है।
धनतेरस का रहस्य
हिंदू पौराणिक मान्यता के अनुसार धनतेरस की तिथि पर भगवान धन्वंतरि का जन्म हुआ था। जोकि समुद्र मंथन के दौरान ही अमृत कलश के साथ प्रकट हुए थे। भगवान धन्वन्तरी चुकि कलश लेकर प्रकट हुए थे इसलिए ही इस अवसर पर बर्तन खरीदने की परम्परा है। कहीं कहीं लोकमान्यता के अनुसार यह भी कहा जाता है कि इस दिन धन (वस्तु) खरीदने से उसमें 13 गुणा वृद्धि होती है। इस अवसर पर धनिया के बीज खरीद कर भी लोग घर में रखते हैं। दीपावली के बाद इन बीजों को लोग अपने बाग-बगीचों में या खेतों में बोते हैं।
भगवान धन्वंतरि को आयुर्वेद और अच्छी सेहत के देवता के रूप में भी पूजा जाता है। दिवाली पर धनतेरस के दिन भगवान धन्वंतरि की पूजा उपासना करने से जीवन में सुख-समृद्धि, ऐश्वर्य और अच्छी सेहत की प्राप्ति होती है। साथ ही धनतेरस पर खरीदारी करना बहुत ही शुभ माना जाता है।
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देवताओं के वैद्य हैं धन्वन्तरि
धन्वन्तरि देवताओं के वैद्य हैं और चिकित्सा के देवता माने जाते हैं इसलिए चिकित्सकों के लिए धनतेरस का दिन बहुत ही महत्व पूर्ण होता है। धन्वंतरि ईसा से लगभग दस हज़ार वर्ष पूर्व हुए थे। वह काशी के राजा महाराज धन्व के पुत्र थे। उन्होंने शल्य शास्त्र पर महत्त्वपूर्ण गवेषणाएं की थीं। उनके प्रपौत्र दिवोदास ने उन्हें परिमार्जित कर सुश्रुत आदि शिष्यों को उपदेश दिए इस तरह सुश्रुत संहिता किसी एक का नहीं, बल्कि धन्वंतरि, दिवोदास और सुश्रुत तीनों के वैज्ञानिक जीवन का मूर्त रूप है। धन्वंतरि के जीवन का सबसे बड़ा वैज्ञानिक प्रयोग अमृत का है। उनके जीवन के साथ अमृत का कलश जुड़ा है। वह भी सोने का कलश।
अमृत निर्माण करने का प्रयोग धन्वंतरि ने स्वर्ण पात्र में ही बताया था। उन्होंने कहा कि जरा मृत्यु के विनाश के लिए ब्रह्मा आदि देवताओं ने सोम नामक अमृत का आविष्कार किया था। सुश्रुत उनके रासायनिक प्रयोग के उल्लेख हैं। धन्वंतरि के संप्रदाय में सौ प्रकार की मृत्यु है। उनमें एक ही काल मृत्यु है, शेष अकाल मृत्यु रोकने के प्रयास ही निदान और चिकित्सा हैं। आयु के न्यूनाधिक्य की एक-एक माप धन्वंतरि ने बताई है। पुरुष अथवा स्त्री को अपने हाथ के नाप से 120 उंगली लंबा होना चाहिए, जबकि छाती और कमर अठारह उंगली। शरीर के एक-एक अवयव की स्वस्थ और अस्वस्थ माप धन्वंतरि ने बताई है। उन्होंने चिकित्सा के अलावा फसलों का भी गहन अध्ययन किया है। पशु-पक्षियों के स्वभाव, उनके मांस के गुण-अवगुण और उनके भेद भी उन्हें ज्ञात थे। मानव की भोज्य सामग्री का जितना वैज्ञानिक व सांगोपांग विवेचन धन्वंतरि और सुश्रुत ने किया है, वह आज के युग में भी प्रासंगिक और महत्त्वपूर्ण है।
धनतेरस का महत्व
धनतेरस के दिन खरीदारी का महत्व होता है। इस दिन सोना, चांदी, पीतल की चीजें और झाड़ू खरीदना शुभ माना जाता है। लेकिन धनतेरस पर ऐसी चीजें भूलकर भी न खरीदें जैसे - काले रंग की वस्तुएं, कांच, एल्युमीनियम और लोहे से बनी चीजें।
शुभ मुहूर्त
इस बार, धनतेरस 2 नवम्बर को है। 2 नवम्बर को प्रदोष काल सांय:काल 05 बज-कर 37 मिनट से रात्रि 08 बजकर 11 मिनट तक रहेगा। वहीं वृषभ काल सांयकाल 06 बजकर 18 मिनट से रात्रि 08 बजकर 14 मिनट तक रहेगा। धनतेरस के दिन पूजन मुहूर्त सांयकाल 06 बजकर 14 मिनट से रात्रि 08 बजकर 14 मिनट तक रहेगा। इस दिन अपने घर और प्रतिष्ठान के लिए नई झाड़ू अवश्य लेनी चाहिए।
यम दीपम
प्रदोष काल - संध्या 05:51 से रात्रि 08:21 तक
वृषभ काल - संध्या 06:30 से रात्रि 08:30
धनतेरस पर ऐसे करें पूजन
धनतेरस की शाम को उत्तर दिशा में कुबेर, धनवंतरि और माता लक्ष्मी की पूजा करें। घर के पुराने और नए आभूषणों व बर्तन को एक बड़ी थाल में सजाकर उस पर रोली, अक्षत, पुष्प चढ़ाएं। उसके बाद घी का दीपक जलाएं। कुबेर को सफेद, भगवान धनवंतरि को पीला मिष्ठान अर्पित करें। इसके बाद 'ओम ह्रीं कुबेराय नम:' मंत्र का जाप करें। फिर धनवंतरि स्तोत्र का पाठ करें। इसके बाद भगवान गणेश और माता लक्ष्मी की पूजा करें।
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